शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

खुल जा सिमसिम 5 up


६ - मैंने वह किया जो मुझे नहीं करना चाहिए था | जो काम मेरे जिम्मे नहीं था , जिसे करने में मैं प्रशिक्षित / प्रवीण नहीं था | फिर भी मैंने किया , एक मनुष्य की हैसियत  से | कवितायेँ लिखना , विचार करना , धर्म  और  राजनीति  में दखल   देना इत्यादि | अब भला उसे मैं कितना कर पाया हूँगा , वह तो सबके सामने है |
गैर ज़रूरी ही सही , मैंने तो किया  |

५ - दिमाग न फिर जाये , कहीं मैं पागल न हो जाऊं | इसलिए लिखता , उदघाटित करता रहता हूँ मन कि बातें -कविता , कहानी . लेख -आलेख , व्यक्तिगत विचार | कदमताल द्वारा मानसिक , सामाजिक , राजनीतिक कार्यक्रम |
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४ *  मैं किसी के साथ नहीं रह सकता |. Adjust ही नहीं कर पाता.|  अकेलापन ,एकांत या कहें भीड़ में  गुम रहना अच्छा  लगता है मुझे |
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   ३ *  लोग बोलते है तो मै चुप रहता हूँ | जानता हूँ ,बकवास करते है वे | तब भी मै उन्हें बोलने देता हूँ |
       मै जानता हूँ  उनके कहने से कुछ नहीं होने वाला , न मेरे विरोध करने से कुछ बदलने वाला |
       न जाने कैसे यह ,कहें कि डेमोक्रेटिक व्यवहार मुझमे कब ,कब से घर कर गया है |
       मुझे अच्छा लगता है | लोग हांकते रहे है ,मै मुस्कराता रहता हूँ |
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   2* पूरे माहोल से निस्पृह रहना , हो जाना मेरी अंतरात्मा का शगल है |
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१ *  मुझे अच्छा लगता है जब कोई मेरे मुंह से मेरा निवाला छीन लेता है |
       मुझे  भ्रम होता है कि वह  मुझसे प्यार  और   मुझ   पर भरोसे के कारण ऐसा कर रहा है |
       इसका मतलब उसे पता होता है कि मैं उस  पर नाराज़ नहीं हूँगा |
       इस विश्वास को कायम रखता हु मै
      |मैं ऐसे झूठे भी  प्यार के भ्रम में जीना चाहता हूँ
      तभी  |मै अनुभव  कर पाता  हूँ कि मै मानवता की कोई एक भले लघुतम किन्तु अद्भुत  थाती जी रहा हूँ |
      यह कोई   दूसरी दुनिया में जाने जैसा अनुभव होता है भाई
      |इसीलिये इसे आप से शेयर करना ,बाँटना चाहता हूँ
|      सचमुच  तभी मै   महसूस करता  हूँ कि मै तो मनुष्य हूँ   |
      किसी के सुख के लिए एक सीमा तक कष्ट सहना कितना  आनंददायक होता है मै कैसे बताऊँ  ?
      यह तो महसूस करने की बात है ,और अपने में मगन रहने की |
     | यह अपनी बडाई नहीं ,केवल विनम्र आत्मस्वीकृति है |  ##

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