शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

सकल पदारथ, a gon-zo magazine [contd]

डायरी २ अक्तूबर , १- ठीक है कि मुसलमानों के साथ ज्यादा या पूरा  न्याय नहीं हुआ , लेकिन शांति और सद्भाव के लिए मेरे विचार से उन्हें हाई कोर्ट का ,निर्णय न सही ,प्रस्ताव मान लेना चाहिए | इसी में सबकी भलाई है | इससे उनके मान -सम्मान में कोई कमी नहीं आयेगी बल्कि और बढ़ोतरी ही होगी कि उन्होंने अमन के लिए यह कुर्बानी दी ,जो कि इस्लाम -परस्ती की निशानी भी है | झगडा  बढ़ाने से कोई फ़ायदा नहीं है और इससे मुसलमानों की बदनामी ही होगी | एक नास्तिक सेकुलर की तो  भाई यही राय है |

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