शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

ayodhya notes ,oct,2010

0=मंदिर का साइज़ थोडा छोटा  हो गया ,मस्जिद का आकार कुछ सिकुड़ गया ,फिर भी लोग कहते है कि सरकार ने कुछ किया ही नहीं |
0= सरकार कि लापरवाही से बाबरी मस्जिद टूटी थी ,अब उसका कर्त्तव्य है कि वह उसे
बनवाकर ,तैयार करके दे ,उसी ज़मीन पर जो हाईकोर्ट ने इसके लिए दिया है |
0=अपराध का इरादा / कुछ लोग कोर्ट पर बड़े इलज़ाम लगा रहे है .इरफ़ान हबीब ,रोमिला थापर एवं वाम -विचारक तो हैं ही ,जब मुलायम सिंह जैसे विद्वान ऐसा कह रहेहैं तो बात  जरूर दम होगा |मेरा तो छोटा सा निवेदन यह होना था कि अपराध के मामलों में अपराधी की नीयत का बड़ा महत्व होता है | इस केस में कोर्ट की नीयत बड़ी पाक और साफ है ,और देश के हित में है |
0 =ध्यान दें कि मा०न्याय ०एस .यू.खान ने जिला अदालत के ताला खोलने के निर्णय पर कहा है कि उसमे यह ख्याल नहीं किया गया कि न्याय में न्याय होते दिखना भी चाहिए |सचमुच खान साहेब [और उनके दो साथियों ]के ताज़ा निर्णय में न्याय होता स्पष्ट दिख रहा है |क्या यह कुछ कम है ?
0 =पूरी ज़मीन इनको दी जाती तो क्या न्याय हो जाता ? और पूरी ज़मीन यदि उनको दी जाती तो क्या न्याय हो जाता ?क्या वह होने पाता ?क्या वह व्यवहार में आता ?आने पाता ?फिर वह कैसा न्याय होता ?
0 =एक और प्रश्न है कि राजनेताओं द्वारा जहाँ इतना ख्याल मुस्लिम वोटों का रखा जाता है ,वहीं हिन्दू वोटों की इतनी उपेक्षा क्यों कर दी जाती है ?यह समस्या  केवल कथित धर्म निरपेक्ष पार्टियों
के साथ ही नहीं है ,भाजपा भी इसकी गंभीरता से शिकार है |इसकी समीक्षात्मक ,आलोचनात्मक खोज कोई नैतिक नहीं  'राज'-नैतिक विद्वान ही कर सकते हैं |  
0=इस मामले में यदि आस्था को भी थोड़ी जगह दी गयी तो लोगों को बड़ी परेशानी है | अन्य जगहों पर कोशिशें यह की जातीं हैं कि शरिया कानून लागू हो |
0 =मा० आज़म खां का बयान है कि "१९४७ में सरहदें खुली थी जिन्हें जाना था वे चले गए |जो यहाँ रुके ,उन्होंने जिन्ना का नारा खारिज कर दिया था |" अब महा सवाल यह है कि क्या किसी सच्चाई को कभी या यूँ ही खारिज किया जा सकता है ?या क्या सच्चाई  कुछ लोगों के कह देने भर से खारिज हो सकती है ? और यह भी मियां ,कि जाने और रुकने के वजूहात और भी कई हो सकते हैं ,रहे होंगे |यह सोचना सच न होगा कि जो पाकिस्तान गए वे सब जिन्ना के समर्थक या धुर मज़हबी जुनूनी और फिरकापरस्त -साम्प्रदायिक  थे,और जो भारत में रह गए वे सारे के सारे  दूध के धुले हैं |पर अब ये बाते ख़त्म होनी चाहिए |मुक़दमे को हिन्दू -मुस्लिम से फर्क नज़रिए से व्यापक राष्ट्रहित और अमन कीआशा -आकांछा के साथ देखना चाहिए |मलाल की बात यही है कि हिंदुस्तान से येही नजरिया गायब  है |  # # #

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