शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

मैं भी दोषी 4

४ - धर्मों की बड़ाई सुनो तो तो कानों पर हाथ रख लो | बोल दो , हमारे लिए इसे सुनना पाप है |
३  - Secularism means सच्ची धार्मिकता | निरपेक्षता के चक्कर में सारा बेडा गर्क हुआ | पंथ निरपेक्षता क्या निगेटिव नहीं जिसकी वकालत हिंदी - हिन्दू -हिंदुस्तान वाले करते हैं ? लेकिन वे भी क्या करते , उन्हें
धार्मिकता की न कोई समझ है ,न उन्हें उससे कोई लेना - देना है | उन्हें तो सिर्फ राजनीति की रोटी सेंकनी है | [ हम नागरिकों द्वारा इस पर विषद चिंतन और तरजीह देने की आवश्यकता है ] | हम यदि इसे
धार्मिकता के रूप में लें तो देखेंगे कि व्यक्ति और समाज में कितना क्रन्तिकारी परिवर्तन आता है !
         Secularism  में निहित मूलमंत्र यह है कि धार्मिक या ईश्वरीय या लोकिक  या प्राकृतिक , कोई भी सत्य कहीं किसी एक जगह नहीं छिपा है | सेकुलर व्यक्ति उसे सभी जगह तलाश करता है और उसमे कुछ अपना
भी जोड़ता घटाता है अपने विवेक से | वह पूरा का पूरा किसी किताब का नहीं होता , कोई भी समझदार व्यक्ति किसी ग्रन्थ या गुरू का गुलाम नहीं हो सकता  | तो फिर वह हिन्दू मुसलमान कैसे हो सकता है | उसे बुरा लगता  है अपने को इन छोटे छोटे नामों से संबोधित करना  | बस इसी समझदारी का नाम  सेकुलरिज्म है | बहुत आसान है यह | बहुत साधारण आदमियों का काम है यह जिसकी नीयत दुरुस्त हो , आत्मा परिशुद्ध हो | इसमें संगठित  होने की भी आवश्यकता  नहीं है , इसीलिये इसके कोई संगठन नहीं होते  आध्यात्मिक स्तर पर | जो कुछ दिखाई सुनाई पड़ रहे है वे कुछ राजनीतिक उद्देश्य के लिए होते हैं जिसकी भी लोकतंत्र में आवश्यकता पड़ती है | पर अकेले व्यक्ति के लिए तो बस थोड़ा  सा दिमाग लगाने  और उसे सम्वेदना के साथ हमेशा साथ रखने  की  ज़रुरत होती है |अकेले आदमी का अलग अलग व्यक्तिगत  धर्म है यह | इसीलिये  यह अन्य धर्मों कि तरह धर्म नहीं हुवा , न है और न होगा | फिर ,ऐसे  अकेले -अकेले  जन कितने उत्कृष्ट जनतांत्रिक समाज का निर्माण करेंगे  इसकी कल्पना ही रोमांचक और स्वर्ग तुल्य है | इसी कोशिश में लगे हैं हम लोग |

 


२ - शूद्र के लिए भगवान की आराधना , पूजा- पाठ ,दर्शन- चढ़ावा मना है | और देखा जाए तो पूरा कर्मशील भारत तथा
पूरा संसार ही एक प्रकार से शूद्र है | निष्कर्ष यह कि अब उसे भी ईश्वर की प्रार्थना बंद कर देनी चाहिए | ब्राह्मण   का कहना
माना जाना चाहिए |
  
१  *   इस मामले में तो मैं भी पुराने संतों की तरह दोषी हूँ , जो मै भी ईश्वर के होने -हवाने की बात करता हूँ |ईश्वर जो सचमुच तो है नहीं ,पर उसे मान लेने की वकालत करता हूँ | एक तो कारण यह हो सकता है की चूंकि उसे ९० से ज्यादा प्रतिशत जनता मानती है तो उसे समाप्त करने से पहले उसे ही रेशनलाइज़ क्यों न किया जाये ? बड़ी असफलता से छोटी सफलता ही भली | यह भी तो बुद्धिमत्ता ,समझदारी की बात .बुद्धिवाद के अंदर की बात है / होगी |
          संतों से अलग पहले तो मेरा काम यही है कि संतई का बाना छोड़ दिया जाय ,कोई धार्मिक यूनीफोर्म न धारण किया जाय | बहरहाल आगे की बातें होती रहेंगी पर अभी तो ईश्वर को मान लेने ,उससे खेलने ,उसके साथ जीने का अपराध स्वीकार करता हूँ | मेरे ख्याल से सही नीति वही है जिसमे अपने अलावा सब का भला होने की गुंजाईश हो |

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