विकेंद्रीकरण के चक्कर में केंद्र सरकार भी विकेन्द्रित होते -होते गाँव की एक पंचायत सी होकर रह गयी है | चर्चा केवल गाँव के विकास की है | उसी के श्रेय के बल पर प्रदेश में सरकारें बन रही हैं [बिहार , गुजरात ] | केंद्र का भी आधार वही होगा | कह सकते हैं ,इसमें आपत्ति जनक क्या है ? लेकिन ,पंचायत पंचायत है ,तो केंद्र को कुछ केंद्र होना चाहिए | फिर जब ७३ वें संशोधन से गाँव का ज़िम्मा गाँव का है तो उसमे केंद्र सरकार इतना चक्कर में क्यों पड़े ? देखिये ,इस से नुक्सान यह हो रहा है की केंद्र ओनी जिम्मेदारियां नहीं निभा रहा है ठीक से | राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय महत्वपूर्ण मसलों पर उसका गंभीर ध्यान नहीं है | और देश तो अपनी पंचायतों के विकास में डूबा हुआ है, नरेगा के भ्रष्टाचार में | उसे देश की बातों से कोई लेना -देना नहीं है |
३ -हंसी
एक दोस्त बड़ा उदास दिख रहा था .
दूसरे ने पूछा –क्या बात है भाई ?
--क्या बताऊँ बहुत दिनों से मुझे हँसी आ ही नहीं रही है |
दूसरे ने तजवीज़ बतायी – किसी अख़बार में या वेब पर जाकर किसी उलूम का कोई फतवा क्यों नहीं पढ़ लेते !
फिर भी न आये तो खाप पंचायत का फैसला सुन लो
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संवाद * यू आर ब्यूटीफुल ,किम |.
= तो क्या मुझसे शादी करोगे ?
* मैं सुन्दरता को क़ैद करने के पक्ष में नहीं हूँ |
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१ - - आप क्या काम करते है ,भाई साहब ?
= मै सांसद हूँ |
- अच्छा है | अब तो वेतन - भत्ते भी अच्छे हो गए है |
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