ब्राह्मणवाद कितने सूक्ष्म तरीके से मनुष्य के भीतर काम करता है कि उसे कुछ पता ही नहीं चलता | उसको पकड़ पाना बहुत मुश्किल होता है | इसीलिये तो ब्राह्मणवाद के नाम में 'ब्रह्म' मिश्रित है ! इसे केवल तीब्र धार सतर्क मानववाद से ही काटा जा सकता है | देखें , यह भी ब्राह्मणवाद है, ये नैतिकता के कथित मूल्य उन्ही के दिए हुए हैं कि यदि किसी ने किसी से मित्रता कर ली तो वह व्यभिचारी हो गया[यी] , , किसी ने किसी को चूमकर अभिवादन कर लिया तो वह अपवित्र हो गया[यी] ,किसी ने चार विवाह कर लिया तो वह म्लेक्ष हो गया या कोई किसी के साथ सो गया तो वह अगांधी हो गया, गाँधी नहीं रह गया | चिंतनीय विषय है कि किसी के sexual orientation [यौनिक अभिरुचि?] से उसके चरित्र का क्या वास्ता , यदि ब्राह्मणवादी व्यवस्था को सही न मान लिया जाय तो ? कोई स्त्री /पुरुष कितनी बार किस तरीके से सम्भोग द्वारा तुष्टि पाते हैं, इससे हमें क्या मतलब ?क्या लेना देना , यदि हम ब्राह्मण नहीं हैं तो ? और देखिएगा , ब्राह्मणवाद का पुख्ता सुबूत ,कि मेरी इस बात पर अभी मेरी आलोचनाओं की भरमार लग जायगी |
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