मैं जिलों , सड़कों ,पार्कों , संस्थाओं के नामों की अदला बदली के सख्त खिलाफ हूँ | क्या मैं परिवर्तन विरोधी हूँ ? नहीं , मैं इसे परिवर्तन के काम में बाधा मानता हूँ | यह एक निरर्थक , नकारात्मकऔर फ़िज़ूल का काम है | कोई सार्थक काम तो है नहीं इनके पास और कुछ मेहनत का काम न करना पड़े तो इन नामलोभी नेताओं के लिए बहुत आसान होता है , कुछ नामपट बदल कर फ़ौरन ख्याति कमा लिया जाय | हर्रे लगी न फिटकिरी ,लो मैंने यह तीर मार लिया | लोग कहते हैं किंग जार्ज का नाम रहने देना गुलाम मानसिकता है | मैं उलट कहता हूँ कि जार्ज का नाम हटाना और इससे यह भ्रम पालनाकि हमारी गुलामी मिट गयी, हम आज़ाद हो गए और इस तरह की अन्य कवायदें करना ही वस्तुतः गुलामी की निशानी है | कवायद ही है , इसलिए कि इससे कुछ भी हासिल नहीं होता | ऐसा करके क्या इस तथ्य को इतिहास से मिटा सकते हैं, या सत्य को झुठला सकते हैं कि भारत पर कभी अंग्रेजों का शासन था ? नहीं | तो रहने दीजिये उनकी यादगार अवशेषों को , जिससे पीढ़ियाँ उन्हें देखकर सबक लें और गुलाम होने से अपने को बचाएँ, बचाए रहने की कोशिशें जारी रखें | कभी गाफिल न रहें | मैं तो यह भी कहने का दुस्साहस रखता हूँ कि आर्य - शक -हूण तमाम तो लोग हिंदुस्तान आये ,मिटाओगे उनकी निशानियाँ ? क्या मिटा सकोगे ? तब तो खुद ही मिट जाओगे | और सचमुच मिटना ही हो तो फिर मुग़लों के स्थापत्य - कुतुबमीनार , इमामबाड़े , ताजमहल को थोडा छू कर तो देखो | वे भी तो मूलतः बाहर से आये आक्रमणकारी थे | पर इन्हें तो सजाया- संवारा- संरक्षित किया जा रहा है | किंग जार्ज का नाम हटाया जा रहा है क्योंकि अंगेज़ यहाँ नहीं हैं | उन्हें जो कुछ करना कराना था कर के चले गए, कोई ज़मीन उठाकर नहीं ले गए | मुग़ल यादगारें इसलिए आदरणीय हैं क्योंकि मुसलमान यहाँ हैं और बाकायदा हैं | क्या यह सोच गुलामी की सोच नहीं है ? यह किसी तर्कशील , न्यायप्रिय , स्वतंत्रमना , लोकतान्त्रिक ,समतावादी समाज की नीति तो नहीं हो सकती | भाई , सबको सामान दृष्टि से देखो , और जो अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए उपस्थित नहीं है उस पर मौत का फरमान न जारी करो | और यदि मारने का ही निर्णय हो चूका है तो सबको मारो जो दोषी रहे हैं |
इसलिए मैं मायावती जी द्वारा जार्ज या पुराने जाने माने , उसी नाम से प्रतिष्ठित संस्थानों के नाम बदले जाने के खिलाफ था | सच थोड़ा कड़वा हो जायगा , लेकिन यह उनकी हीनभावना का द्योतक और नतीजा था | लेकिन फिर अब, जब उसका नाम बदला जा चुका था उसे फिर बदलने का कोई औचित्य नहीं है | कल और कल , कोई और कोई और आयेंगे और कोई रिक्शावाला भी मरीज को सही अस्पताल नहीं पंहुचा पायेगा | प्रश्न है ,यह सिलसिला कब तक चलेगा , कहीं विराम लगेगा या नहीं ? अरे भारत भाग्य विधाताओ, कुछ नया बनाओ तो उसका नया नाम कुछ भी रखो , पुराने से क्यों छेड़- छाड़ करते हो ? इस सम्बन्ध में कोई नए राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए | नहीं तो ये देश -प्रदेश के भी नाम इतनी बार बदलेंगे कि उन्हें पहचाना ही न जा सकेगा | असंभव नहीं कि अपने माता पिता के भी | मेरी तो माँ निहायत साधारण गैर महत्व पूर्ण महिला थीं | मैं उनका वही नाम कायम और याद रखना चाहता हूँ जो देहातीपन , अनपढ़पन का शब्द है | गाँव पर मेरे स्कूल का नाम उसी के नाम है , और उस पर मैं अपनी गरिमा की पहचान टिकाने में गर्व महसूस करता हूँ | ऐसा बिलकुल भय नहीं लगता कि कहीं मैं दकियानूस न माना जाऊँ ? माना करे कोई | हाँ, यह भी हो रहा है कि कुछ नए प्रशासनिक अफसर अपनी देहाती पत्नी को गाँव छोड़ आये हैं और नयी आधुनिक शादी कर ली है | मुझे गर्व है कि मेरी अशिक्षित देहाती पत्नी मेरे साथ है | मैंने उसका नाम तक नहीं बदला , और कुछ लोग कहते हैं , मैं "कवितायेँ अच्छी कर लेता हूँ" |
मैं लोकतान्त्रिक मानस के स्थायित्व का पक्षधर हूँ | मेंढकों का कूद- फांद मुझे अच्छा नहीं लगता | स्वतंत्रता के छद्म मानकों और स्मारकों में मेरा मन नहीं लगता | सचमुच मैं अभिभूत हो जाता हूँ यह सोचकर कि यदि आप 10 , डाउनिंग स्ट्रीट के पते पर एक पोस्टकार्ड भेज दें तो वह श्रीमती मार्गरेट थैचर के पास नहीं ब्रिटेन के प्रधान मंत्री के पास पँहुचेगा | # #
- उग्रनाथ नागरिक - (अनीश्वर भारतीय) २४/७/१२
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