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From: Ugra Nath Srivastava <priyasampadak@gmail.com>
Date: 2012/7/7
Subject: अंतर्विरोध - A Personal Confession
To: pramod joshi <pjoshi23@gmail.com>
From: Ugra Nath Srivastava <priyasampadak@gmail.com>
Date: 2012/7/7
Subject: अंतर्विरोध - A Personal Confession
To: pramod joshi <pjoshi23@gmail.com>
To Sri Pramod Joshi
अंतर्विरोध
अब इसे लिखना बहुत ज़रूरी हो गया है , confession करना | काफ़ी हॉउस में बहुत पहले आपने एक प्रश्न उठाया था - क्या हम अपने अंतर्द्वंद्व पहचानते हैं ? यद्यपि वह माओ से सम्बंधित था जिसका सन्दर्भ मुझे नहीं पता , लेकिन मुझे लगा कि आपने तो मेरे चोर की दाढ़ी में तिनका पकड़ लिया | मैंने प्रश्न को व्यक्तिगत स्तर पर ले लिया और अंतर्वीक्षण में जुट गया | मैंने पाया कि मैं तो अंतर्विरोधों का ढेर हूँ | जैसे मैं किसी का नाक में उँगली करना पसंद नहीं करता पर स्वयं करता हूँ , सी डी तिवारी जी से भीख न देने के मुद्दे पर सहमत था पर भीख देता हूँ , राजनीति से घृणा करते हुए भी उसमे पूर्णतः लिप्त हूँ , पत्नी -परिवार से कोई लगाव नहीं है पर घर की ज़िम्मेदारियाँ पूरी निभाता हूँ , साहित्य में छंद का महत्व स्वीकारता हूँ पर छंदबद्ध कवितायेँ मुझे दो कौड़ी की लगती हैं , भीतर क्रोध का पारावार है पर लोगों से प्रेमपूर्वक मिलता हूँ , मनुष्य में जन्म से आये व्यवहार की निम्नता को पूर्णतः लक्षित करता हूँ पर उन्हें सत्ता सौंपना चाहता हूँ , स्त्रियों का पूरा आदर -सम्मान करता हूँ पर औरतों के बारे में मेरी कोई अच्छी राय नहीं है , मैं बिलकुल गफलत में नहीं रहता सत्य को ठीक पहचानता हूँ पर अज्ञानी होने की मासूमियत प्रदर्शित करता हूँ , " नहि मानुषात श्रेष्ठतरं हि किञ्चित " मेरे जीवन का साध्य-मन्त्र है लेकिन मनुष्यों से बेहिसाब घृणा करता हूँ , हर क्षण मैं ईश्वर की आराधना में लीन रहता हूँ पर ईश्वर का विरोध करता हूँ , सांगोपांग धार्मिक हूँ पर धर्मों के नाश की रणनीतियाँ बनाता हूँ | इसकी सूची असीम होगी पर ऐसा मैं हूँ | इसका अपराध मैं स्वीकार करता हूँ | अच्छा हुआ आप मिल गए जिससे मैं यह कह सका , वरना मैं आत्मग्लानि से पीड़ित रहता | अब इसकी सफाई मैं अपनी खुशी के लिए यह देता , अपने मन को समझाता हूँ कि मेरा अंतर तो ठीक ही है पर उसके अनुकूल बाह्य जगत में कुछ नहीं मिलता तो वह विरोधाभास का कारण बनता है | बल्कि मैं तो तो कहता हूँ ये विरोधाभास ही मेरी उपलब्धियाँ हैं | इसलिए मैं शांत - संयत और स्थितप्रज्ञ रहता हूँ | सत्यतः , मुझे कोई भी शोक विचलित नहीं करता , कोई भी उत्सव मुझे आह्लाद नहीं देता | और फिर अंतर्विरोध- कि इसका विलोम भी फलित होता है | आपको धन्यवाद यदि आपने इसको पूरा पढ़ा | देखता हूँ , और अच्छा ही करते हैं कि आप फेसबुक पर अनावश्यक हम लोगों की तरह सक्रिय होकर समय नहीं गवाँते , इसलिए इस पोस्ट पर भी आपके कमेन्ट की चाह मुझे नहीं करनी चाहिए | मैं तो इसे आपके पास send करके ही पापमुक्त हो गया |
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