मंगलवार, 3 जुलाई 2012

घरजमाई


* [व्यक्तिगत] :- मुझे इस बात का कोई दुःख नहीं है कि मैं कुछ प्रबंधित ढंग से नहीं लिख पाया | मुझे इस बात का कोई दर्प भी नहीं है कि मैंने इतना सारा छिटपुट लिख डाला |

* बताना चाहते हैं कि हम स्पष्तः प्रयोगात्मक रूप के किस तो ब्राह्मणवाद से बचना , उसका विरोध और आलोचना करना चाहते हैं ? उसके अंदर जो भरा है वह तो अपनी जगह पर है , लेकिन जब वह कहता है अंडा मांस मछली न खाओ खासकर मंगल बृहस्पति को , बिना नहाये पानी न पियो , सोम शनीचर पुरुब न चालू , उत्तर सिरहाना करके मत सोओ, इन इन दिनों दाढ़ी न बनाओ, देखो जेठ से छू न जाये, जूता उतार कर कमरे में आओ इत्यादि | तब बड़ी कोफ़्त होती है | ज़िन्दगी नर्क बना देते हैं ये |  

* अच्छे भले चार पढ़े लिखे लोग बातें कर रहे हों और बीच में आरक्षण का विषय आ जाय तो खटास आने लगती है | किसी को महसूस होने लगता है कि सामने वाला आरक्षित वर्ग का है और वह साला बिलावजह बाभन बन जाता है | ऐसे में यदि वह संपन्न है तो उसमे दया भाव का उदय होगा, लेकिन यदि गरीब हुआ तो द्वेष से घिर जायगा | कहना न होगा ये दोनों ही प्रवृत्तियाँ घातक हैं | कह सकते हैं ,यदि वे समझदार समतावादी हैं तो उन्हें आरक्षण का समर्थन करना ही चाहिए | ठीक है , यदि वे ऐसा करते भी हैं तो वे विश्वसनीय कहाँ होते हैं ? दलित सोचता है - देखो हरामजादा सहानुभूति में मुंहदेखी झूठ बोल रहा है | ऐसे में एक मीठा कार्यक्रम यह बनता है कि गोष्ठी में यदि लगे भी कि कोई ब्राह्मणवादी मानसिकता का है तो उसे वैसा घोषित करके गाली न दें , और यदि किसी को लगे कि कोई दलित भाषा बोल रहा है तो भी उसे दलित कहकर अपमानित न करें | कोशिश करें कि विषय ही बदल जाए , क्योंकि यह सीमित मात्र में नौकरियों के लिए दलितों और सरकारों के बीच का रिश्ता है | उसमे सवर्ण दखल न दें |बहस से कुछ होने- बदलने वाला नहीं है सिवा रिश्तों में खटास आने के | न भलमनसाहत दिखाने की ज़रुरत है न विरोध करने की | सांस्कारिक अभिव्यक्ति से ज़रूर बचने की ज़रुरत है |

* एक बहुत बड़ा छद्म बड़ी सफाई से फैलाया जा रहा है जो प्रियं ब्रूयात के हिसाब से तो ठीक है पर उसका पोल समझना ज़रूरी भी तो है | कहा जाता है कि अँगरेज़ तो हिंदुस्तान से धन दौलत लूट कर इंग्लैण्ड ले गए जबकि मुसलमान इसी मुल्क के होकर रह गए | कथन में सफाई और चालाकी कुछ भाँप रहे हैं आप ? एक चोर कुछ उठाकर ले जाने लायक सामान एकबार लेकर भाग जाता है उससे घर को ज्यादा नुकसान हुआ या उस मेहमान से जो घरजमाई बनकर बैठ गया ? फिर संपत्ति को उसे ले जाने की क्या ज़रुरत ? वह तो घर का समूचा मालिक ही हो गया |

* आशा व्यर्थ है
बड़े लोग सच तो
नहीं बोलेंगे |

         सत्यवचन
         बड़े लोग कभी भी
         नहीं बोलते
         लीपापोती करके    
         नाक बचाते |

सच बयानी
बड़े लोग करेंगे
सोचना मत |

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