शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

ख्यालों में गुम


* ख्यालों में गुम
देख ही नहीं पाए
हम आपको !

* व्यंग्य को छोड़
लेखक के अधीन
बचा ही क्या है ?

* न कोई दर्द
न कहीं कोई पीड़ा
फिर भी कुछ !

* मतलब है
पढ़ने -लिखने का
बुद्धि खुलना |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें