सोमवार, 9 जुलाई 2012

यह तो हुई दलित की बात


अपशब्द , दिनांक  - ९/७/१२ | नीलाक्षी जी संदीप एवं अन्य सभी मित्रो,जो इससे अपने को सम्बंधित समझते हों ! मैं आज सुबह से बहुत गुस्से में हूँ | कल इतना उद्विग्न था कि नींद की गोली खाकर ही सो पाया |  मेरे प्रातिभज्ञान [intuition] में यह पहले से ही था और उसे व्यक्त भी करता रहता था ,पर मुझे कहीं से सप्रमाण समर्थन प्राप्त नहीं था , और प्रबुद्ध साथियों  के निरंतर विरोध कारण एकाकीपन महसूस कर रहा था | लेकिन कल जब तवलीन सिंह को एक्सप्रेस में पढ़ा तो विश्वास हो गया कि मैं गलत नहीं,सही था | इस पर बस मैंने इतना किया कि उसे काटकर fb पर पोस्ट करना चाहा | टेक्निकली नहीं कर सका तो लिख दिया कि कृपया उस लेख को epaper  में पढ़ लें | काफी हाउस ग्रुप में मैं पोस्ट्स पर प्रतिक्रिया भले दे दूं पर मैं अपना कोई पोस्ट उस पर नहीं डालता , इस धारणा के भयवश कि इसमें बहुत बड़े बुद्धिपूर्ण लोग हैं , कौवे की तरह चालाक और होशियार जो सवेरे सवेरे गू खोदता है | कहें भले कि केवल राजनेता झूठ बोलते हैं पर बुद्धिजीवी भी केरियर या प्रतिष्ठा के लिए political correctness के तहत तमाम झूठ बोलते हैं और तमाम सत्य छिपाते हैं , सब मेरी तरह मूर्खता नहीं करते |
तिस पर भी आज सुबह जब ग्रुप खोला तो मुझे मेरी भी लाइनें गायब मिलीं तो मेरा पारा आसमान पर चढ़ गया | [यद्यपि बाद में वह दिखा जब बिपेंद्र जी ने पेपर कटिंग लगा दी | अब तो यह ग्रुप ओपन भी कर दिया गया पर मैं किसी घर में क्यों घुसूँ भले उसका दरवाज़ा खुला हो ?] लेकिन क्रोध / अवसाद का क्या , जो चढ़ गया तो चढ़ गया | वह बना रहा क्योंकि किसी ने उसे पढ़ा नहीं | इतनी फुर्सत किसे है ? वैसे ही वे इतना पढ़ लिए हैं कि ज्ञान साला छलका पड़ रहा है | और यह तो तय है कि देश किसी के अजेंडे पर नहीं है | जीवन और कर्म का कोई मकसद हो तब न वह सार्थक हो ? तो नीलाक्षी जी , भले आप की बात में सच्चाई ( सच्चाईयां भी एबसोलुट नहीं रिलेटिव होती हैं मैडम !) हो , पर मैं आप के हाथों "मूर्ख " का खिताब पाने की लालच में उसे सिरे से नकारने की धृष्टता करना चाहता हूँ | तो भी मैं "विप्र सकल गुन हीना " पूज्य हूँगा क्योंकि - - - -
जब देखो तब वही दलित , वही ब्राह्मण , वही जातिवाद , आरक्षण -अगड़ा पिछड़ा ! क्या और कोई विषय / समस्या नहीं दिखती ? हरदम सर पर ढोते फिरते हैं मानो कभी सामान्य आदमी नहीं होते | जातिवाद ख़त्म नहीं हुआ , तो यह कहाँ नहीं है ? वहाँ भी है जहाँ नहीं होनी चाहिए, जिनकी किताबें बड़ी पाक साफ़ हैं  | मुस्लिमों में कितनी जातियां हैं और उनमे कितना फर्क ,भेदभाव है क्या आप जानते है ? वहाँ भी सबकी अलग अलग टोपियाँ है और अलग मस्जिदें | नहीं जानेंगे क्योंकि दूर से फर्जी समर्थक हैं | सुबूत स्पष्ट है कि इसी कारण वहाँ से भी आरक्षण कि माँग है | मैं unka विरोध नहीं कर रहा हूँ | सबकी अपनी मजबूरियाँ है | उनकी वकालत भी नहीं कर रहा हूँ पर खूबी तो है कि वे विभेदों के साथ जीने - रहने के आगे एकजुट भी रहना जानते है, वरना वहाँ भी अल्लाह , मोहम्मद और कुरान पर सह मति के साथ तमाम असहमतियां हैं | अन्य धर्मों की भी यही हालत है | तो क्या केवल हमीं हैं जो हर वक्त सिर्फ विभेदों का रोना रोयेंगे और उनके  साथ जीवन को  जियेंगे नहीं ? क्या किसी भी दशा में सबके साथ निर्वाह संभव नहीं है | अभी तक तो हो रहा था , अब ऐसा क्या हो गया ?अख़बारों में ही देखिये "चमार " , 'कूर्मी ' आदि श्रेणियों के भी वैवाहिक विज्ञापन छपते हैं | वैसे भी चमार भंगी पासी कोहाँर कुर्मी अहीर कोई भी जाति बाहर विवाह नहीं करता /करना चाहता | सब अपने मानस -संस्कार के गुलाम हैं ,तो ब्राह्मण भी है | वह भी दरिद्र है ,आप की दया का पात्र है | कोई ब्राह्मण लड़की आपके घर क्यों आयेगी जब सुहागरात में पहले तो उसके बाप की जाति को १८ गालियाँ सुनाएँगे, उसका मूड उखड जायगा | फिर उसका पैर भी  नहीं सहलायेंगे कि "साली , तुम कोई ब्राह्मण नहीं हो " ? तो क्या वह आजीवन कुँवारी रहने और तिरस्कार सहने के लिए तुम्हारे घर आयेगी ? इस प्रकार के द्वेषभाव से तो कोई समाज नहीं बनता ,न बना है , तरक्की तो दूर | युद्ध / गृहयुद्ध की स्थिति भले आ जाय | तो जिसमे आपका भला हो वही कीजिये हुज़ूर क्योंकि  अपने अलावा किसी की ,और आगे कुछ देखने की चाहत तो दिखाई नहीं पड़ती | आरक्षण बहुत कमजोर साथी है और दलित होने के असम्मानजनक पहचान और ख़िताब को खुद उसकी लालच में छोड़ नहीं पा रहे हैं , दलित नामक मैले के टोकरे को कुछ टुकड़ों के चलते फेंक नहीं पा रहे हैं मानो वह हमेशा के लिए व्यवस्था हो ! आंबेडकर के अनुसार तो वह समय सीमा समाप्त है पर नालायक कार्यपालिका के कारण बढ़ाना पड़ा , तो वोट की राजनीति के चलते पिछड़े भी रेवड़ी लेने पहुँच गए | अपनी ईज्ज़त का कुछ ख्याल नहीं, तिस पर कहते  हैं हमारी कोई इज्ज़त नहीं करता {सामाजिक सम्मान के लिए है आरक्षण !} | बताइए जब जन्म से लेकर जीवन भर 'पिछड़ा ' ही होना/ बने रहना है तो "प्रगतिशील" कैसे हो सकते हो ?और तुर्रा यह कि कम्युनिस्ट बनेंगे | अब यह तो आसान है सारी स्थितियों के लिए दो हड्डी  के सींकिया पहलवान ब्राह्मण को दोष देकर छुट्टी पा लीजिये | खुद कुछ करना न पड़े , कोई ज़िम्मेदारी स्वयं न उठानी पड़े यह ब्राह्मणी नीति हो न हो , हिंदुस्तान का तो राष्ट्रीय चरित्र है | इसमें आपका कोई दोष नहीं है | दोष मेरा भी नहीं है जो मैं मूर्ख हूँ |
यह तो हुई दलित की बात , अब ब्राह्मण की सुनिए | लेकिन लगता है पन्ना कुछ बड़ा हो गया | उसे आगे पोस्ट पर लिखता हूँ , यदि नेट ने साथ दिया तो = =

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें