शनिवार, 7 जुलाई 2012

लहना सिंह

* ज़िन्दगी भर
नाचना ही नाचना
नाचता तो हूँ !

* याद आ गया
उसने ही तो कहा था -
लहना सिंह -- !

* कहीं भी अब 
मिलने की जगह
असुरक्षित |

* प्यास बुझाता
पनघट तो प्यासा
किसको चिंता !

* माने ही नहीं
मेरे निवेदन को
वे चले गए ,
अब क्या करूँ
जब नहीं रुके तो
क्या जान दे दूँ ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें