डायरी -नोटबुक २/७/१२
* [व्यक्तिगत] :- आखिर मैं अपने मन का दर्द किससे कहूँ ?-------------------लेकिन सोचता हूँ किसी से न कहूँ |
* मुझे लगता है मैं अपने ऊपर आने वाले सपनों के कारण कहीं एक दिन इन पर विश्वास न करने लग जाऊं ?
* यदि किसी ने मूर्ख बने रहने की बिलकुल ठान ही न रखी हो , तो ,वह कोई भी हो , बड़ी आसानी से बुद्धिमान बन सकता है |
* अद्भुत बात है , संस्कृतियाँ अलग होते हुए भी फर्क नहीं होतीं | आज २ जुलाई है , कोई कहे अषाढ़ का अमुक तिथि है , कोई अपने कलेंडर से कुछ बताये तो क्या फर्क पड़ता है | है तो वह आज ही | कोई आइ लव यू कहे या प्रेम इश्क करे , क्या फर्क ?
* ज़िन्दगी आदर्श सिद्धांतों पर चलने में असफल है , और यह ऐसी ही सदैव रहेगी | बहुत जटिल है जीवन और कुटिल है समाज | इसलिए इसमें सुरक्षित जीने के लिए ऐसे व्यवहार करने पड़ते हैं कि उन्हें लिखकर देना भी अनुचित होगा |
* कविता -
एक सुबह सोकर उठता हूँ
और देखता हूँ कि
मेरी शादी हो गयी है ,
बाल बच्चेदार हो गया हूँ
मेरी नौकरी लग गयी है |
मुझे कुछ महसूस करने की
ज़रुरत नहीं हुई
कि औरत कैसी है , बच्चे
कितने लड़के कितनी लडकियाँ हैं
मुझे भोजन मिल गया और
मैं अपने काम पर निकल गया |
* उसकी कोई मूर्ति
नहीं हो सकती ,
तो उसका कोई
मस्जिद भी
नहीं हो सकता |
* मुझे छूकर
ईश्वर को प्रणाम करो
मैं ही हूँ
जो ब्रह्मा के पैर से पैदा
ब्रह्मा का पैर हूँ |
* लोग सलाह देते हैं - राजनीति में आओ | राजनीति में सभी तो सक्रिय हैं , क्या शिक्षक , क्या मिसाइल वैज्ञानिक , क्या लोकायुक्त , क्या सैन्य जनरल ! कहाँ कमी है राजनीतिकर्मियों की ? फिर उनमे हमारी क्या विसात ? तब भी हम राजनीति में तो हैं ही ! तभी तो कहता हूँ - अच्छा हुआ जनरल का कार्यकाल समाप्त हो गया , अच्छा हुआ कलाम को दुबारा राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार नहीं बनाया गया , अच्छा हुआ लोकायुक्त को उनके द्वारा माँगी गयी अकूत शक्तियाँ नहीं दी गयीं |
अब स्थिति यह हो गयी है कि किसी को बुरा भी कहने का मन नहीं होता [ यह संभवतः मेरे भीतर का ब्राह्मण था जो किसी को बुरा -भला बनाता था ] | अब मैं न अच्छाई ढूँढता हूँ न बुराई | बस आदमी को आदमी की तरह ही देखता हूँ - अच्छाई बुराई का पुंज या फिर इनसे हीन - मैं उनमें शून्य देखता हूँ , शून्य भाव से | सोचता हूँ , यही रास्ता है समता का और इंसानियत का !
* नागरिक जी
तकलीफ में तो हैं
पर क्या करें ?
* हम चमार
आपको श्रीमान जी
क्या ऐतराज़ ?
* बड़े - बड़े हों
अवगुण जिनमे
वह ब्राह्मण |
* अच्छी -बुरी क्या ?
इसी का तो नाम है
यह दुनिया !
* मैं कहता हूँ -
मैं दलित नहीं हूँ
मैं ब्राह्मण हूँ
मैं असली ब्राह्मण
तुम क्या कर लोगे ?
मैं कहता हूँ
तुम ब्राह्मण नहीं
तुम दलित |
* हर धनिक
पापी ही नहीं होता
सही भी होता |
* हाँ , यह तो है
बदलनी चाहिए
जग की रीति |
* आज युवा का
आदर्श कोई नहीं
वह खुद हो |
* कह तो दिया
कितना कह जाऊँ
जो तुम जागो ?
[ अभी इतना पोस्ट करता हूँ फिर रात में लिखूँगा ]
आज मेरा नाम है - अदृश्य शक्तियाँ | यह लिखना मेरा नहीं है |
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