यादें बहुत हैं , लिखनी हैं | पर अभी तिवारी जी और इमरजेंसी पर लिखता हूँ जिसका विवाद शायद ' काफी हॉउस ' पर उठा था | विश्वास किया जाय कि मैं हूबहू वही लिख रहा हूँ जैसा उनसे सुना और उनको देखा , और इसमें अपना कोई विचार नहीं जोड़ रहा हूँ | वह इसकी प्रशंसा करते थे कि सरकारी कार्यालय चुस्त हो गए थे और कर्मचारी समय से आने लगे थे | अनुचित वह संजय गांधी के कारनामों को मानते थे | तिवारी जी संभवतः पूरी इमर्जेसी जेल में थे [ठीक स्मरण नहीं क्योंकि मैं उस काल का चश्मदीद नहीं था, हम बाद में उनके संपर्क में आये ] जहाँ वह चन्द्रशेखर जी के साथ थे | उनमें घनिष्ट्ता का प्रमाण हमें तब मिला जब लखनऊ के एक सम्मलेन में शेखर जी ने उन्हें देखते ही गले लगा लिया | तिस पर भी वह जय प्रकाश आन्दोलन का ख़ास कारण यह बताते थे कि इंदिरा गांधी ने जे पी को मिलने के लिए घंटों बिठाये रखकर इंतज़ार कराया , और क्या ? और मेरी दल विहीन राजनीति के प्रति आसक्ति पर उनकी टिप्पणी नकारात्मक थी | उनका कहना था कि उन्होंने इसका कोई खाका नहीं दिया | अंततः , फिर पिछले किसी [ माया या मुलायम के ] शासन ने जब दूसरी आजादी के सेनानियों को कुछ पुरस्कार या पेंसन देना चाहा तो जैसा हम उम्मीद करते थे और उन्होंने ऐसा पहले कहा भी कि वह नहीं लेंगे | लेकिन बाद में पता चला कि अत्यंत अस्वस्थता के बावजूद वे उसके लिए लाइन में लगे थे | एक घटना और यहाँ रोचक एवं उल्लेखनीय है कि जब शेखर जी पी एम बने तो उन्होंने मेरे सामने ही चार आने के पोस्ट कार्ड पर बधाई लिखी | बल्कि मैंने कहा भी कि यह उचित नहीं है , लिफाफे में रखकर कायदे से पत्र भेइए | लेकिन उनका जवाब था कि ' क्या करना है , थोडा ही तो लिखना है ' |
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