मंगलवार, 10 जुलाई 2012

" मान्यतावाद "

और वैशेषिक ही क्यों , सांख्य , योग , मीमांसा , न्याय {शायद कुछ अन्य भी , प्रमुख नौ दर्शनों में लगभग  छः दर्शन | बौद्ध -जैन भी एक तरह से नास्तिक दर्शन ही हैं } तब भी नास्तिक दर्शन थे , जिनकी हम दुहाई दिया करते थे , लेकिन कितनों ने नास्तिकता स्वीकार की ? इस्लाम पर इस अद्भुत खोज का क्या कोई प्रभाव प्रत्याशित है ? जिसका जो मन होता है मानता था , मानता है , मानता रहेगा | इसलिए हम बहुत दिनों से विज्ञानंवाद का नाम न लेकर " मान्यतावाद " का सहारा लेने लगे हैं | " ईश्वर है या नहीं है ईश्वर को मत मानो " जैसे आह्वान और अविरल प्रचार का | समझाने से नहीं मानता मनुष्य , उसे आदेश चाहिए , अन्धविश्वास चाहिए | हमारे [कम से कम मेरे] लिए तो ईश्वर का न होना एक अन्धविश्वास के सामान है | और मैं दृढ़तापूर्वक सुकून से हूँ |

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