शनिवार, 7 जुलाई 2012

मैं देखता हूँ


* ज़िन्दगी को ही
कविता कहता हूँ
कवि हूँ न मैं !

* मैं देखता हूँ
आदमी देखता हूँ
संस्थान नहीं |

[ अपशब्द ] =
*  अगर दलित ब्राह्मणवाद द्वारा प्रदत्त अपनी जातीय निम्नता और दयनीयता से इनकार कर दे , तो कोई माई का लाल नहीं जो उसे दलित कहकर अपमानित कर सके , ब्राह्मणी जाती प्रथा उसे परेशान कर सके |
* दलितों पर सख्ती = मायावती कर सकती थीं , या जब भी दलित शासन में आयें तो उन्हें करना चाहिए | वैसे इसे कोई भी दलित हितकारी राज्य कर सकता है , कि वह दलितों पर उसकी भलाई के लिए थोडा सख्ती से पेश आये | क्योंकि दलित इतने समय तक दबे कुचले रहे हैं कि उन्हें अपना भला नहीं सूझता | इसलिए यह ज़िम्मेदारी लोकतंत्र के संचालकों की है , विशेषकर दलित नेताओं की | जैसे कमाल पाशा ने मुस्लिम तुर्की को आधुनिक और प्रगतिशील बना डाला कि वह आज तक दकियानूसी इस्लामी नहीं बन्ने पाया | इसी की नक़ल पर हम भी भारत को दलित हिन्दू [गैर इस्लामी] राज्य घोषित न भी हो तो भी बनाना चाहते हैं जिससे इनपर सख्ती करके बहुजन - बहुसंख्यक भारतीयों को अन्धविश्वासमुक्त - वैज्ञानिक - आधुनिक प्रगतिशील और मानववादी बना सकें | सम्प्रति दलितों पर सख्ती यह की जानी चाहिए कि वे अपने बच्चों , लड़के और लड़कियों को स्कूल अवश्य भेजें | इसकी बाध्यता और अनुशासन उन पर होना चाहिए | सवर्ण भेजें न भेजें , लेकिन वे तो इसमें सतर्क हैं | जबकि   दलित इसके प्रति अधिक इच्छुक नहीं हैं तमाम सरकारी सुविधाओं के बावजूद , यह सत्य है | थोड़ी ज़बरदस्ती होगी तभी वे लाइन पर आयेंगे | यह बुरा भी नहीं है | इन्हें अभी शिशु के सामान पालन करना चाहिए भारत माँ को |  

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