कोई मानता नहीं , वरना मैंने तो सुझाया था कि भारतीय संस्कृति के अनुसार बूर्हों का आदर करते हुए एक दर्ज़न अति बूढ़े भारतीय नागरिकों को चुन कर राष्ट्रपति भवन में ठहरा लिया जाय | वे किसी भी धर्म -जाति -लिंग -संप्रदाय -पार्टी -प्रदेश के हों | आयु क्रम से ज्येष्ठता के अनुसार , या एक के दिवंगत होने के बाद दूसरे को , राष्ट्रपति बनाते रहा जाय | उनकी सेवा सुश्रुषा , खान पान-इलाज सुनिश्चित हो जायगी और वे कई देशों की सभी धर्मों के पवित्र स्थलों की तीर्थयात्रा का पुण्य- लाभ उठा कर सरकारी खर्च पर स्वर्ग जाना भी सुनिश्चित कर सकेंगें | मेरी अतिरिक्त लालच यह भी थी कि इससे मेरा प्रिय पत्रकार लेखक , राजनीति से वाकिफ अराजनीतिक शतकोन्मुख आयु का व्यक्ति खुशवंत सिंह भी लाइन में आ सकता है, जिसकी तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा है | सब राजनीति- राजनीति चिल्लाये जे रहे हैं और हमारी पत्रकारिता के क्षेत्र को इसका देय सम्मान नहीं मिल रहा है | और एक बात मैं स्पष्ट बता दूँ कि खुशवंत जैसा पत्रकार अब भारत में कोई पैदा नहीं होगा | जैसा गाँधी के लिए आइन्स्टीन [?] ने कहा था कि लोग आश्चर्य करेगे कि कोई ऐसा भी व्यक्ति दुनिया में पैदा हुआ था , उसी प्रकार की राय मेरी खुशवंत सिंह के लिए है |
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