रविवार, 17 जून 2012

बोलो बोलो , जल्दी बोलो


[ कविता ]
बोलो बोलो , क्या बोलते हो 
जल्दी बोलो 
प्रेस पर कोई प्रतिबंध नहीं है
कोई इमरजेंसी नहीं लगी है 
जितना चाहो उतना बोलो 
खूब अख़बार हैं और टी वी चैनल 
तुम्हारी बातें दूर दूर तक 
पहुँचाने के लिए 
फिर क्यों नहीं बोलते ?
बोलो कि तुम्हारी बहन बेटी को 
गुंडे उठा ले गए और 
क्या क्या करके उसकी लाश 
सड़क किनारे छोड़ गए हैं ,
बोलो कि अपने लड़के की 
पढ़ाई के लिए डोनेशन -केप्शन 
तुम नहीं दे सके ,
चीखो कि तुम्हारे माता -पिता 
मँहगे इलाज के अभाव में मर गए ,
चिल्लाओ कि मँहगाई की मार से 
घर गिरवी  पड़ा है | 
और यदि यह हाल तुम्हारा नहीं है 
तो अपनी ही हाँको - बघारो 
कि तुम बड़े सुख - चैन , अमन से हो |

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