[ कवितायेँ ]
१- कबीर चदरिया
मैं महसूस करता हूँ
एक चादर अपने ऊपर ,
अपने शरीर के ऊपर |
नीचे नहीं किनारे नहीं ,
न सिर के पीछे
न पाँव के नीचे
बस केवल ऊपर
छाया हुआ , लहराता
मेरे ऊपर आक्षादित |
मैं हर तरफ से मुक्त हूँ
बस एक आभास भर है -
मेरे ऊपर एक चादर है |
वह चादर मेरी नहीं है
जो मुझे सृष्टि से मिली होगी
वह चादर कबीर की है ,
मैं चादर को नहीं जानता
लेकिन कबीर को पहचानता हूँ
मेरे ऊपर कबीर की चदरिया है ||
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२ - अपना राजा
मैं अपना राजा
उसे बनाना चाहता हूँ
जो मुझसे दूर हो
मेरे घर - परिवार
सम्बन्ध का न हो
जिससे वह पक्षपात न कर पाए
तभी वह शासन कर पायेगा /
तभी मैं उससे शासित हो पाऊँगा |
मैं दलित को राजा बनाना -
मानना चाहता हूँ
क्योंकि मैं दलित नहीं हूँ
मेरा कोई संबंधी दलितों में नहीं है |
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३ - क्षणिका
आदमी
अपने से
पार पाए ,
तब न कुछ
कर पाए ?
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४ - बिस्तर
मुझे ख़ुशी है कि मैंने
अपना बिस्तर बाँध लिया है
समान सब पैक कर लिया है ,
कुछ भी इधर - उधर
बिखरा नहीं रह गया है
कमरा भी साफ़ कर दिया है
और सामानों को इकठ्ठा
एक जगह रखकर , तैयार होकर
किनारे कुर्सी पर बैठ गया हूँ
बस ऑटो वाले के आने भर की देर है |
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५ - आटा गीला
गरीब हो , मतलब गरीबी है तो
आटा थोड़ा ही गून्थो
ज्यादा तो कनस्तर में ही
पड़ा रहने दो ,
क्योंकि आटा गीला तो
होना ही है , गरीबी में !
यदि अलग कुछ आटा न हुआ
तो उसे कैसे सुखाओगे , माडोगे
कैसे रोटी बनाओगे ?
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६ - सत्यवान
तुम मुझे क्यों
खींचे लिए जा रहे हो ?
मैं कोई सत्यवान नहीं जो
कोई सावित्री मुझे तुमसे
छुड़ा ले जायेगी ,
वस्तुतः मैं तुम्हारे साथ
जाऊँगा ही नहीं
मेरे पास इतना काम है कि
मुझे मरने की फुर्सत नहीं |
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७ - दिलफेंक
यदि तुम दिल -
- फेंकना ही चाहते हो
तो फेंक दो
वह किसी भी चेहरे पर जाकर
फिट हो जायगा
यदि तुम दिलफेंक हो तो !
जैसे एन जी ओज़ के बारे में
प्रचलित है कि
किसी तरफ कंकड़ फेंको
वह किसी एनजीओ पर गिरेगा |
अब यह बात और है कि
न एनजीओ विश्वसनीय हैं
न दिल |
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