अभी समय है , हिंदुस्तान - पाकिस्तान एक करो , चाहें जरदारी को भारत का राष्ट्रपति बना दो | दोनों देशो की समस्याएँ , परेशानियाँ एक हैं अंदरूनी भी , बाहरी भी | कहने दीजिये किसी को , जब बिल्कुल ठीक से बँटवारा नहीं हुआ , हो ही नहीं सकता था , कि सारे हिन्दू हिंदुस्तान में - सारे मुस्लिम पाकिस्तान में , तो फिर यह माना जाना चाहिए कि दोनों का रहन सहन , संस्कृति एक ही है | और जो नहीं है तो भी वे अपनी अपनी मान्यताओं के साथ एक साथ सदियों से रहते आये हैं | इन्हें एक साथ रहने का पूरा अनुभव - अभ्यास है | यह काम जितना जल्दी हो जाय उतना अच्छा | भारतीय मानस इस बँटवारे को स्वीकार नहीं कर पाया है , न कभी इसे पचा पायेगा | यदि ऐसा न हुआ तो पाकिस्तान में हिन्दुओं की दशा अच्छी नहीं होगी , है भी नहीं | उसी प्रकार भारत में मुसलमान भी ढंग से नहीं रहने पायेंगे , चाहें सच्चर कमेटी लागू कर लीजिये चाहें आठ प्रतिशत आरक्षण | कैसे भूल जायेगा हिंदुस्तान जिन्ना की बात कि हम अलग हैं और एक साथ नहीं रह सकते , और इसे पाकिस्तान ने अपने यहाँ हिन्दुओं के साथ वही व्यवहार करके दिखा भी दिया ? यदि जिन्ना की बात गलत करनी है ,अल्लामा इकबाल का कौमी तराना यदि सही ठहराना हो , तो फिर एक होकर दिखाओ | अब इससे कोई लाभ नहीं कि बँटवारे में जिन्ना - -इकबाल का दोष ज्यादा था या गाँधी - नेहरु का | एक होने पर सारा मलाल मिट जायेगा | यह तो तय है कि जनता का तो कोई दोष नहीं था ? उसने बहुत सह ली बँटवारे की त्रासदी | अब वह एक होना चाहती है | ऐसी राजनीतिक इच्छा [Political Will ] जिसके पास हो वह अब अगले चुनाव में उतरे | शेष तो लफ्फाजी बहुत हो चुकी |
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