एक ज़माने से मुझे दो अशआर बहुत पसंद हैं | वस्तुतः ,ये मेरे जीवन मन्त्र बन गए | इन्हें मैं " प्रिय संपादक " में बाटम लाइन लगाता था | इनमे से एक तो अहसान दानिश का है , दूसरे का पता नहीं | कोई मित्र जानते हों तो कृपया बताएँ |
१ - ज़माना बदले न बदले , खयाल तो बदले ,
न इन्कलाब सही , ज़िक्रे -इन्कलाब तो हो |
२ - मेरी नज़र में वह घर है जहाँ चिराग़ नहीं ,
न होगी जश्ने - बहाराँ की इबादत मुझसे |
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