शुक्रवार, 8 जून 2012

डिब्बा लैपटॉप


* डिब्बा बनकर न रह जाये लैपटॉप ' - विरोधी विधायकों का संदेह |
-- मेरा तो कहना है यदि लैपटॉप छात्रों की माओं द्वारा रोटी बेलने के काम न आये तो कहियेगा !
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अफसरों की अशिष्टता ;- विधायकों की बड़ी शिकायत है की अधिकारी उनका महान आदर नहीं करते | विधायक उनके पास जाते ही क्यों हैं , क्या काम कराने ? इस काम के लिए एक पृथक स्पेसल अधिकारी नियत होना चाहिए , केवल उसी के पास वे अपने काम सौंप दें , वह उन्हें सम्बंधित विभाग को भेज देगा | इतने बड़े माननीय होकर क्या छोटे छोटे अफसरों के पास जाते हैं ? काम नहीं अपना धौंस  ज़माने , हनक दिखाने और उनके काम में बाधा डालने जाते हैं | आखिर अफसर इतने सारे माननीयों से आदर पूर्वक मिलने में समय गवांये या अपना कुछ काम भी करे ? आरोप है की पी जी आई के डॉक्टर उनके रिक्मेंडेसन पर ध्यान नहीं देते | तो क्या मरीजों का इलाज़ भी अब विधायकों के कहने पर होगा ? क्या हिंदुस्तान विधायकों का गुलाम बनने जा रहा है ,जिनके आदेश के बगैर पत्ता भी नहीं हिलेगा ? विधायकों द्वारा सरकारी कामों में हस्तक्षेप और विघ्न को रोकना होगा , अन्यथा ये भस्मासुर हो जायेंगे |
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* रामदेव [अब ये राजनीति में आ गए हैं ,इनके नाम के साथ श्री या बाबा लगाना पत्रकारिता के अनुसार अनावश्यक है ] को यह कैसे पता चला , वह कैसे जानते  हैं कि ४०० लाख करोड़ काला धन विदेशों में जमा है ?कहीं श्रीमान जी भी तो उसी व्यापार में लिप्त नहीं और प्रतियोगिता में असफल होने का खुन्नस निकाल रहे हैं ?इनके पास तो केवल १५०० करोड़ ही गेरुआ धन है | अब सच यह है कि न उनका धन जनता के हित के हेतु है , न इनका धन जनता के लिए उपयोगी है |
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* नरेंद्र मोदी को बी जे पी चाहे अपना नेता  नम्बर एक बना ले या अपने सर पर चढ़ा ले ,जनता नरेंद्र मोदी को अपना भारत भाग्य विधाता कभी नहीं बनाएगी | एक दिन जल्दी ही मोदी किनारे लगा दिए जायेंगे और उनके साथ बी जे पी भी चली जाएगी | भारतीय मनीषा की कुछ गुप्त नीतियाँ होती हैं, और वह अंदर अंदर उस के अनुसार काम करती है , और वह किसी पार्टी या व्यक्ति की गुलाम नहीं होती |
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* ज्ञान पीठ में गौरव सोलंकी :-- पहले तो ये लोग इसीलिये छपते और प्रशंसा पाते हैं क्योंकि ये IIT,iim , ETC  ग्रेजुएट हैं | फिर जब कभी इनकी पुस्तक नहीं छपती तो अपने graduation का धौंस दिखाते हैं | अब IAS  वगैरह आने भी लगे हैं बहुत साहित्य के क्षेत्र में ! अरे तुम जहाँ के होगे वहां के होगे तीस मार खान , यहाँ तो तुम्हे हिंदी के बड़े बूढ़ों की ही बात माननी पड़ेगी | नहीं तो सीधे चले जाओ बड़े बड़े प्रकाशकों के पास , तुम्हारा नाम तो यूँ ही चमक जायेगा |      

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