रविवार, 12 अप्रैल 2020

Love International

घृणा को दिल से निकालने के लिए थोड़ा मशक्कत करनी होती है ।
इसी को इस तरह भी कह सकते हैं कि प्रेम मोहब्बत करने के लिए मन की घृणा को थोड़ा/बहुत दबाना, परे हटाना, उससे मुक्ति पाना होता है।
अब उच्छृंखल, आज़ाद ख़्याल लोग लोकतन्त्र और स्वतंत्रता संग्राम का हवाला देकर इस बंधन को गुलामी या पराधीनता की संज्ञा देकर नकारें नहीं, तो यह मनुष्यता के लिए हितकर होगा ।
इस बात को दो एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जाय तो विचार कुछ ठीक से जन मस्तिष्क तक पहुंचे :-
जैसे हम अधिकांश नागरिकों की प्रवृत्ति में शासन सत्ता सरकार के प्रति एक अजीब सा विक्षोभ, कहें तो घृणा उपजी है । तो क्या इसी से हम अपनी नागरिकता को संचालित होने दें ? नहीं, इस मन को मारकर ही हम अनुशासित व्यवहार द्वारा लिख पढ़कर भी सत्ता पर विचार प्रहार कर सकते हैं । सत्ता से अपना प्रेम, अपनी संलग्नता सर्वथा समाप्त तो नहीं कर सकते?
इसी प्रकार बहुलांश हिन्दू के मन में सहजीवी मुस्लिमों के प्रति आधारहीन, विचारहीन, दुष्प्रचार जनित घृणा जमकर व्याप्त हो गयी है (सरकार सम्मिलित)। हो सकता है इनके पास इसके पक्ष में मजबूत कारण हों । हम उसपर बहस विवाद न कर चलो उनका आरोप सही मान लेते हैं । तिस पर भी अपने मन से, चाहे योग ध्यान अध्यात्म पूजा पाठ द्वारा ही, इस घृणा को उन्हें निकालना ही होगा । चलिए इसे हठयोग कह लेते हैं, यह तो भारतीय है? ऐसा हर युग, सनातन से लेकर अब तक किया गया और आगे भी जब तक सृष्टि है तब तक करना ही पड़ेगा । यही धर्म है, धारण करने योग्य । इसी हठयोग, धर्म और अध्यात्म द्वारा मनुष्य से प्रेम करना ही पड़ेगा । इसे बंधन गुलामी न समझें। यह धर्म है, धर्म का अनुशासन है । इससे बंधना ही पड़ता है ।
तो अपनी घृणा से बलपूर्वक, नफ़रत से ज़बरदस्ती छुटकारा लेकर हिन्दू जमात को मुस्लिम जाति/ जनजाति से एकतरफा मोहब्बत की पैदावार करनी ही होगी, अपनी भारतीयता को सिद्ध (caa?) सफल और उच्चतर बनाने की ख़ातिर ।👍
(Love International)

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