मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

बौद्ध

नमो बुद्धाय ! चाहे इसे धार्मिक अभिवादन के रूप में लें, बरक्स जयश्रीराम☺️, अथवा बुद्धिवाद, rational, scientific temper के रूप में । यह हथियार काम आता है/ आ सकता है । बिना हथियार (धर्म) हथियारों (धर्मों) से नहीं लड़ सकते, भले वह नाम, प्रतीक मात्र हो , व्यक्ति समाज का पहचान भर हो । कभी कभी पतली सी लकड़ी संटी भी कुत्तों को भगाने के लिए ज़रूरी होती है । मैं तो हिन्दू हूँ, इसे त्याग कर भी । तो क्या बताऊँ परिचय आपको । Atheist rational, बुद्धिमान हूँ तो बौद्ध मुझे सटीक denote करता है । यही कहता/ कहना चाहता हूँ । कोई ज़रूरी नहीं औपचारिक धर्म परिवर्तन । उसमें दिल कहाँ बदलता है । कोई ज़रूरी नहीं भंते मुझे उपदेश दें । और भारतीय रणनीति - बौद्ध अब प्रकटतः दलित, शोषित निम्न वर्ग का धर्म बन चुका है । क्या इसे राजकीय संरक्षण नहीं मिलना चाहिए? या हमारा समर्थन सहयोग ? क्या प्रबुद्ध जन भूल गए कि हिन्दू बौद्ध इस्लाम कोई भी धर्म धर्म के अतिरिक्त सघन राजनीति भी होते हैं ? तो बोलो साथी किस ओर हो तुम ? अमीरों के या वंचितों के ? यहीं, इसी से तुम्हारा नैतिक, आध्यात्मिक गुरुता का भी परीक्षण हो जायेगा । Yes, धर्म आध्यात्मिक आधार भी देते हैं, सिर्फ कर्मकांड और राजनीति ही नहीं । बुद्ध की विपस्सना एक secular सर्वधर्मिक, भेदभाव रहित उपासना है । भारत को ऐसे बुद्धवाद/, बुद्धिवादी मार्ग की ज़रूरत है ।
लेकिन यह सब उनके लिए है जिनमें कुछ कर्मणा है, जिन्हें कुछ करने की अभीप्सा, नैतिक अनुभूति है । जिन्हें कुछ नहीं करना उनसे क्या मतलब धर्म से, क्या मतलब राज्य से, क्या मतलब पीड़ित मानवता से ? धार्मिकता की छिछली समझ से बस रोली चंदन पोत घण्टा मजीरा बजाते रहें । 
- - उग्रनाथ श्रावस्तिक
(बुद्धवादी साम्यवादी संस्कृति)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें