बुधवार, 8 अप्रैल 2020

कम्युनिस्ट इसलिए

कम्युनिज़्म इसलिये, क्योंकि सबको सबके साथ रहना है ।
जैसे मेरे ही आसपास, पड़ोसी मित्र और परिजन भी मुझे नापसंद हैं। नालायक हैं और उनसे मेरी बैठती नहीं ? तो क्या करें? साथ तो जीना खाना, उठना बैठना रहना ही है । यह कम्युनिज़्म नहीं तो क्या है? द्वंद्व (तनाव) की वहाँ भी गुंजाइश है । बल्कि विचारधारा का प्रमुख आवश्यक अंग । Dialectical Materialism !
और उदाहरण लीजिये । यूँ कहने का सही समय नहीं है, फिर भी । यदि मुसलमान साम्यवाद अपनाए होते तो क्या धर्म सम्प्रदाय के नाते इतने अपमानित होते ?होते तो उतने, उन्ही के साथ जितने वामपंथी दुत्कारे जाते हैं । पर बचाव और संघर्ष में सब साथ होते ।
यही अवस्था दलित की है । अंबेडकर के नाम पर अलग खिचड़ी पकाते हैं । केवल ब्राह्मणवाद को गाली, जबकि स्वयं हिन्दू हैं । प्रकारांतर हिन्दू को पुष्ट कर रहे हैं, और आक्रामक, जिसका दुष्परिणाम इनके साथ मुसलमानों को भी झेलना पड़ता है ।
और हिन्दू भाई बहन? इनके बारे में कुछ न कहना । इनने अपने कुएँ में भाँग डाल रखी है । जिसे कम्युनिस्ट अफीम कहते हैं ।
(दलितोयवस्की)

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