शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

धारणा की स्वतंत्रता

कोई व्यक्ति कोई भी विचार, वाद सिद्धांत कभी भी धारण कर सकता है , इसकी आज़ादी है, होनी ही चाहिए ।
और आगे वह उससे विमत, विरत, असहमत, बल्कि उसका आलोचक और विद्रोही भी हो सके, इसकी स्वतंत्रता भी उसे होनी चाहिये । किसी व्यक्ति या संस्था को उस पर उँगली उठाना नहीं चाहिए । इसी में democracy है, इसी में secularism है ।
- - मित्र नागरिक

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