शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

फेल सरकार

दुःखद सूचना --
यह कि भारत ने अपनी ऋषिसुलभ आध्यात्मिक ज़िम्मेदारी नहीं निभाई ।
योगी जी ने, कुछ पुजारियों ने और शिवराज जी अवश्य कुछ हिम्मत दिखाई प्रतिबंध परे सार्वजनिक धार्मिक राजनीतिक कार्यक्रम करके । और चर्च के अनुयायी , इस्लाम के प्रचारकों ने तो अवश्य भक्ति दिखाई । लेकिन सरकार ने कोई भारतीय आध्यात्मिक कर्तव्य नहीं पूरा किया ।
थाली तोड़ने, दिया जलाने के आडम्बर के स्थान पर यह गीता, जिसे ये राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने वाले हैं, का तो उध्दरण देकर देश को आश्वस्त कर ही सकते थे ?
मृत्यु अवश्यम्भावी है । आत्मा अजर अमर है । इससे क्या डरना? अवश्य, संवैधानिक वैज्ञानिक दृष्टि से महामारी से सचेत / बचकर रहना तो लौकिक दृष्टि से आवश्यक है । तो मेरे प्यारे देशवासियो, यह - यह वह एहतियात पूरा बरतो, और अपना सामान्य जनजीवन धैर्य निष्ठा और नागरिकता के साथ जियो । हम और पूरे देश की राजकीय, चिकित्सकीय मशीनरी तुम्हारे साथ है । और किन्ही की यदि मौत आ ही जाती है तो शोक न करो और खुशी खुशी स्वीकार करो । हे पार्थ , गीता।की बात सुनो । जीवन का हथियार कमरे में बन्द होकर मत डालो । तुम्हारा क्या था, क्या लेकर आये थे क्या ले जाओगे । अर्जुन कोरोना से इस प्रकार युद्ध करो ।
अन्यथा किस दिन काम आयेंगी ये धर्म की किताबें जिनमें विश्व का सारा ज्ञान विज्ञान सनातन से भरा पड़ा है ? जिनके बल पर अपनी विश्व गुरुता का दावा सीना ठोंककर करते हो ? अपनी पारी आयी तो देश को अंदर करके निकल लिए?
निश्चय ही भारत ने अपनी आध्यात्मिक, मानसिक, नैतिक साहस की ज़िम्मेदारी नहीं निभाई । इन्हें नम्बर मिले बस दस बटे सौ ।
क्योंकि यदि वायरस पूर्ण समाप्त न हुआ तो क्या साल छः महीने तालाबंदी को खींचना उचित होगा?😢
(गुरुनाथ)

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