बुधवार, 1 अप्रैल 2020

निज़ामुद्दीन

मेरे आदरणीय बड़े भाई ! पहले आरोप तो तय कर लीजिये निज़ामुद्दीन पर । फिर बात करें ।
आपका आरोप यदि ईश्वर अल्ला पर विश्वास, धार्मिक अंधविश्वास पर है तो आपके साथ तमाम भारत है । चलिए इस दिशा में काम किया जाय । हम तो वह कर रहे हैं । नास्तिकता प्रचार ग्रुप में डेढ़ लाख सदस्य जुटे हैं।

और यदि आस्थाओं से कोई ऐतराज़ नहीं, केवल धार्मिक जमावड़े पर आपका प्रहार है, तब भी हम आपके साथ है और हैं तमाम AKSiddiqui, Asghar Mehdi सरीखे मुस्लिम बुद्धिजीवी, नाम बहुत सारे, कहाँ तक गिनाऊँ ।

लेकिन तब यह- वैष्णव देवी में "फँसे" और निज़ामुद्दीन में "छुपे" की शब्दावली नहीं चलेगी । आपको दोनो ही कि मज़ामत करनी होगी । क्या आपको याद नहीं मक्का हज ज़ियारत में भी लोग जानें दे चुके हैं? और कोरोना से कहीं अधिक बलिदान हमसे हिंदुस्तान का "तीर्थयात्रा" वायरस हर वर्ष लेता रहा है - भगदड़ में दुर्घटनाओं में । आस्थाओं की बड़ी कीमतें चुकायी और चुका रहे हैं हिन्दू और मुसलमान सभी । एक को अलग क्यों छोड़ रहे हैं यदि सचमुच न्याय दृष्टि वादी हैं आप ?
अभी ही ताज़ा एक "राम मंदिर" वायरस कुछ दशकों में कितना कहर ढाकर गया (?) क्यों भूल रहे हैं आप ? तब तो इसे आस्थाओं का देश, धर्मप्राण मुल्क बता रहे थे । तो इसी धार्मिक भावभूमि पर मुसलमान भी अपना धर्म निभा रहे हैं । उसी का कार्यक्रम था निज़ामुद्दीन । फ़र्क़ न कीजिये।
अब और अगर इससे भी कोई एतराज नहीं, आरोप केवल तकनीकी पक्ष को लेकर है - क्या सरकारी आदेश था, वीजा की वैधता, एडमिन को सूचित करने को लेकर है तो दीगर बात है । जाँच हो, होगी ही , तो दोषी नियमानुसार सज़ा पाएँगे । दोषी न हों तो बनावटी धाराओं में न फँसायें । वह राजकीय काम हॉ, हम हस्तक्षेप नहीं करते ।
कानून से अलग आपकी मानसिक शुद्धि के लिए सूचित कर दें कि पूरे प्रतिबंध के बावजूद अयोध्या में रामलला जी के मूर्ति की नए घर में shifting बड़े भावपूर्ण तरीके से किया गया, वह भी सरकार के मुखिया द्वारा जिनके जिम्मे पूरे प्रदेश का स्वास्थ्य, सुरक्षा, कानून और व्यवस्था है । क्या कहिएगा ? चूक हो गयी, आस्था की बात थी ?  निज़ामुद्दीन के प्रबंधकों से भी ऐसी चूक होने की गुंजाइश दीजिये ।
तो पहले यह तय तय कीजिये कि आपका आरोप क्या है निज़ामुद्दीन पर । फिर अपनी आस्तीन भी झाँक लीजिये ।
हमें तो किसी भी धार्मिक भावना से सहानुभूति है । क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, आस्था तो मारक यंत्र है सबके लिए । लेकिन क्या करें इन्हें धारण करने वाले मनुष्यों से तो हमें प्रेम महब्बत है !
तमाम किस्म के कोरोनाओं से लड़ना है । अज्ञान अशिक्षा बेरोजगारी तो प्रमुख थे । बीच में यह नया, Novel कोरोना आ गया । तो इससे लड़िये । सब मिलकर । इसने तो अपने खिलाफ़ पूरी दुनिया को एक कर दिया । इधर एक हम विश्व बंधुत्व वाले हैं जो हिन्दू मुसलमान किये जा रहे हैं । फिर तो जय कोरोना !

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