आप धर्म की बात कर रहे हैं (सेक्युलरवाद के तहत), हम तो राजनीति को भी व्यक्तिगत बनाये हुए हैं । मजबूरन हम राज्य के मामलों में बोल नहीं सकते ।
जबकि विदेशी Secularism की अँग्रेज़ी परिभाषा के अनुसार हमें धर्म को व्यक्तिगत बनाना बताया गया था ।
तो इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि अब हम धर्म को सार्वजनिक मनाये दे रहे हैं, और राज्य को , राज्य की राजनीति को, व्यक्तिगत मान समझ छुपाकर या चुपकर मना ले रहे हैं ।
यह शोध की बात है । secularism के शास्त्रीय विद्यार्थी इस पर चर्चा कर सकते हैं । Secularism and Democracy के इस भारतीय कायापलट पर विश्वविद्यालयों के राजनीति विभाग कृपया इस पर ध्यान दें , यदि उन्होंने secularism के दर्शन को भी व्यक्तिगत न बनाया हो । और वह भी इस syndrome के शिकार न हों कि विदेशी सेक्युलरवाद भारत पर फिट नहीं बैठता, और यह कि इसमें खोट ही खोट है । भला धर्महीन राज्य का क्या मतलब ? etc etc - - ! रामचन्द्र कहि गए सिया से - - - यही तो ?😢
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
गुरुवार, 9 अप्रैल 2020
धर्म व्यक्तिगत नहीं , राज्य
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