देखिये, क्रोनोलॉजी पकड़िये । बहुत पहले कभी एक निर्जीव वायरस ने मनुष्य के मस्तिष्क पर हमला किया था । तो मनुष्य ने उस अदृश्य अज्ञात को ईश्वर बताकर मंदिर में बैठा दिया । पूजा पाठ आराधना संकीर्त्तन में संलग्न मनुष्य को अब महसूस ही नहीं होता कि यह वही संहारक प्रलयंकारी वायरस है, जिससे संक्रमित होकर अब यह अभ्यस्त, conditioned हो गया है । 👍right?
उसी प्रकार इस नए निर्जीव, अदृश्य महाविनाशक किरोना के समक्ष नतमस्तक होकर इसका मंदिर बना देना चाहिए जिसमें वह पड़ा रहे मुँह पर मास्क लगाकर । अन्यथा तो यह भी सर्वव्यापी की तरह घूमता रहेगा और कहर मचाता रहेगा ।😢
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
सोमवार, 13 अप्रैल 2020
कोरोना मंदिर
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