कुछ कहने की (अभिव्यक्ति की) आज़ादी का तभी कोई मतलब होगा जब अभिव्यक्ति (कथन) को सुना भी जाय ।
यहाँ तो हाल यह है कि क्यों सुनें? इसे तो गीता रामायण ने कहा, इसे तो बुद्ध चार्वाक ने कहा, इसे तो गांधी अंबेडकर ने कहा, मार्क्स लेनिन ने कहा, जीसस मोहम्मद ने कहा ।
फिर कोई मेरी तुम्हारी बात क्यों सुने? Freedom of thought and expression का क्या अचार डालेंगे ? वह आपको क्यों मिले ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें