गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

डायरी 30 अप्रेल 20

विनम्र निवेदन by उग्रनाथ नागरिक /30-4-20/ 6 pm
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1 - मेरी एक कविता याद आ गयी:-
" जब मन कह दे 
मन को विनय नमन करने दो,
पूजा को लेकिन,
दिनचर्या मत बनने दो !"
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2a - किसी यात्रा में
रुकना न चाहिए
सुस्ता भले लें।
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2b - सच बोलना
जहाँ तक हो पाये,
अच्छा लगता ।
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3 - एक सवाल कल से परेशान किये है :-
क्या विज्ञान के भरोसे जीवन जिया जा सकता है ?😢
आख़िर तो आदमी को, मानव सभ्यता को जीना उसकी मान्यताओं में है ?😘
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4 - मेरा ख्याल है, मनुष्य को अपनी मूर्खता भी जीने का अधिकार होना चाहिए !👌
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5 - मैं भी मामूली आदमी था । सोचने के नाते विशिष्ट हुआ । और इतना विशिष्ट सोचा, कि सब कुछ छोड़-छाड़ कर बेहद मामूली हो गया ।
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6 - क्या कोई मित्र बता सकते हैं कि डॉ आंबेडकर ने बौद्ध धर्म की किस शाखा में दीक्षित हुए थे ? हीनयान, महायान, वज्रयान आदि । बहरहाल हमने उनके लिए "श्रावस्ती बौद्ध" शाखा तजवीज़ की है - बौद्ध की आधुनिकतम ज्ञानी, वैज्ञानिक, प्रगतिशील शाखा, जिसमें दलित पूर्ण सम्मानित हैं । श्रावस्ती उत्तर प्रदेश की वह बौद्ध तीर्थस्थली है बौद्ध परिपथ से जुड़ी, जहाँ बुद्ध ने बीस (या 25?) वर्षावास व्यतीत किये । सहेट महेट, अंगुलिमाल की गुफा यहाँ है । और दुनिया के बौद्ध देशों चीन जापान कोरिया आदि के भव्य स्तूप और विश्राम गृह अवस्थित हैं ।
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7 - Mental Distancing / Distancing with Faith varieties.
इसके बारे में तो किसी ने ध्यान ही न दिलाया, पूरे कोरोना काल में । आज फेसबुक पर हिन्दू मुस्लिम मित्रों को उलझते देखा तब ख़्याल आया । और याद आया रूसो वाल्टेयर का प्रसिद्ध संवाद - I do not agree with you, but I can laydown my life for your right to say.
क्या आप समझते हैं हिन्दू होशियार नहीं होते ? देख लीजिए उनके वैज्ञानिकता के दावे ! सर्व ज्ञान गुण सम्पन्न ! आइंस्टीन, न्यूटन सारे विदेशी गणितज्ञ, सर्जन, चिकित्सक इन्हीं के वेद प्रमाण को पुष्ट करते हैं । 
यही हाल इस्लाम का होगा, यदि उनसे पूछें तो !
तो भैये आप लोग अपने ज्ञान विज्ञान में खुश और मस्त रहिये । कल से हम भी अपने ज्ञान की ऐसे ही भूरि प्रशंसा करेंगे । लेकिन ज़रा दूर रहिये, आपस में भी और हमसे भी। जिससे सबका ज्ञान स्वस्थ सुरक्षित रहे । उस पर आपसी ईर्ष्या घृणा और विवाद का कोरोना हानि न पहुँचा सके । यह विचार मेरा पहले से था, इस वायरस ने आसान कर दिया । वह गंगा जमुना मेरी समझ में कभी न आया । तो गंगा अलग बहे जमुना अलग बहाओ । हम तो सरस्वती हैं , अदृश्य । कहीं नहीं दिखते ।☺️
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अंतिम- मैं चाहता हूँ दिन भर diary लिखता रहूँ । फिर शाम को इकट्ठा post करूँ । हर बिंदु के बाद उसे पोस्ट करना पड़ना पड़ता है और मित्र उसे पढ़ लेते हैं । save as draft करता हूँ, तो वह draft फिर ढूँढे नहीं मिलता । search करना पड़ता है । क्या कोई मित्र सलाह दे सकता है ?
-- बौद्ध श्रावस्ती

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