उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
गुरुवार, 30 अप्रैल 2020
डायरी 30 अप्रेल 20
मंगलवार, 28 अप्रैल 2020
बौद्ध
शनिवार, 25 अप्रैल 2020
दलित एक्टिविस्ट
बुधवार, 22 अप्रैल 2020
अम्बेडकर को माला
आय वर्ग
जात पात कुछ नहीं है । कोई अपनी जाति लेकर हरवक्त उसे चाटता नहीं है । फिर, जो रोग सर्वत्र, सबकी खोपड़ी में व्याप्त हो, वह महत्वहीन हो जाती है । सार्वजनिक होकर अपना महत्व खो देती है । "अरे यह किसी न किसी जाति का होगा ही", यह ज्ञान और भावना जातिवाद का असर समाप्त कर देती है । हाँ, जातिवादी लोग इसका कभी कोई खास इस्तेमाल करने के लिए अपनी जेब से निकाल लेते हैं । जैसे वोट फोट माँगते समय ।
वरना सच बात तो यह है, ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि आदमी अपने आय वर्ग से पहचाना है । खानसामा को पंडितजी कहकर बुला भले लें, उसकी इज़्ज़त उतनी ही है जितनी घर में झाड़ू पोंछा करने वाले की ।
सत्य से मुँह न मोड़ो, न हवा में रहो । फ़र्क़ कम ज़्यादा आमदनी वाले के बीच है । आप चाहे कम्युनिस्ट बनो या बनो, आप जानो , लेकिन बराबरी के लिए संघर्ष का और कोई रास्ता नहीं हॉ ।
- - उग्रता @ श्रावस्ती
सोमवार, 20 अप्रैल 2020
हाथ में हाथ
धार्मिकों की जब आलोचना करो तो वह अपने धर्म पर और दृढ़ आरूढ़ हो जाते हैं । खूंटा कसकर पकड़ लेते हैं । उन्हें छेड़ो नहीं तो वह हाथ ढीले रखते हैं ।
इसलिए मैं उन्हें छेड़ता नहीं । जब उनके हाथ ढीले होते हैं, उन हाथों को अपने हाथ में ले लेता हूँ ।
कॉकरोच
कल आपको हमने अपने धर्म के बारे में बताया । पाखण्ड नाम है हमारे धर्म का । संस्कारों, त्योहारों की नौटंकी । 😢
तदन्तर अपने भगवान को ढूंढने में लग गया । आखिर कौन है मेरा ईश्वर ? तब तो जिन ढूंढा तिन पाइयाँ ।
आख़िर मिल ही गया मुझे मेरे ईश्वर । हिट spray छिड़ककर आखिरी कॉकरोच को घर से भगाया । तो पकड़ में आ गया । कॉकरोच है मेरे ईश्वर का नाम । ये दोनों मेरे घर में नहीं रहने पाते ।
मंगलवार, 14 अप्रैल 2020
मेरा क्या
मेरे विचार यदि किसी अन्य, या किन्हीं दूसरों के विचार नहीं बनते तो वह बेकार हैं । हथेली पर लेकर मुझे चाटना थोड़े ही है !😢
मुराद
Democracy, और democracy के साथ साथ साम्यवाद, communism का कैसे तालमेल बिठाऊँ, यह मेरे लिए बहुत बड़ा उलझन का कारण रहा ।
कल युवा मित्र Gaurav Pratap Singh ने अंबेडकर का विचार उद्धृत कर बहुत कुछ/ क्या पूरा रास्ता साफ किया । उनका आभार, अंबेडकर जी के प्रति अनुग्रहीत ।
लोकतंत्र, democracy के आधार मूल्य समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व (बुद्ध के term में मैत्री) को भारतीय भावभूमि में मैंने केवल "मुहब्बत" के शाश्वत गुण से जोड़ एक कार्यस्थल चुना ।:-
"मुराद" : मुहब्बत राजनीतिक दल
कहने की आज़ादी
कुछ कहने की (अभिव्यक्ति की) आज़ादी का तभी कोई मतलब होगा जब अभिव्यक्ति (कथन) को सुना भी जाय ।
यहाँ तो हाल यह है कि क्यों सुनें? इसे तो गीता रामायण ने कहा, इसे तो बुद्ध चार्वाक ने कहा, इसे तो गांधी अंबेडकर ने कहा, मार्क्स लेनिन ने कहा, जीसस मोहम्मद ने कहा ।
फिर कोई मेरी तुम्हारी बात क्यों सुने? Freedom of thought and expression का क्या अचार डालेंगे ? वह आपको क्यों मिले ?
सोमवार, 13 अप्रैल 2020
आह, अफीम
आज एक राजनीतिक पोस्ट पर विचार करते समय मार्क्स की संदेशना का सूत्र समझ में आया (उनका आशय कुछ भी रहा हो)! कि उन्होंने क्यों धर्म को पीड़ितों की आह कहा ?
मैं अभी मानकर चल रहा हूँ कि राजनीति मनुष्य की मौलिक आवश्यकता है - व्यक्ति समूहों की व्यवस्था के काम और जीवनोपयोगी वस्तुओं, संसाधनऔर सुविधाओं के वितरण, नियमन और संचालन के लिए ।
यहाँ तक तो ठीक, लेकिन समूहों का आकार बढ़ने के साथ अपने ही राज्य (शासक सामंत कुछ भी कह लें) पर भुक्तभोगियों की पकड़ समाप्त (नहीं तो कम) होती गयी । मनुष्य सत्ता के सामने लाचार हो गया ।
तब उसने धर्म की ईजाद की जिसका सदस्य वह सत्ता से अलग रहकर भी हो सकता था । और कसरत, गाने बजाने, चीखने चिल्लाने में मस्त रह सकता था ।
राजनीतिक सत्ता में अपना माकूल स्थान न पाकर वह आह, आह कह बैठा। इसीलिए मार्क्स ने "धर्म" को पीड़ित मनुष्यता की "आह" बताना उचित समझा।
और इसी धर्म को अफीम कहना पड़ा, जिसके प्रभाव में मनुष्य हवास खोकर भूल जाता है कि उसका असली काम,कर्तव्य तो राज्य/व्यवस्था को वैज्ञानिक तरीके से चलाना/चलवाना है ।
(उग्र नागरिक, Radical Humanist)
कोरोना मंदिर
देखिये, क्रोनोलॉजी पकड़िये । बहुत पहले कभी एक निर्जीव वायरस ने मनुष्य के मस्तिष्क पर हमला किया था । तो मनुष्य ने उस अदृश्य अज्ञात को ईश्वर बताकर मंदिर में बैठा दिया । पूजा पाठ आराधना संकीर्त्तन में संलग्न मनुष्य को अब महसूस ही नहीं होता कि यह वही संहारक प्रलयंकारी वायरस है, जिससे संक्रमित होकर अब यह अभ्यस्त, conditioned हो गया है । 👍right?
उसी प्रकार इस नए निर्जीव, अदृश्य महाविनाशक किरोना के समक्ष नतमस्तक होकर इसका मंदिर बना देना चाहिए जिसमें वह पड़ा रहे मुँह पर मास्क लगाकर । अन्यथा तो यह भी सर्वव्यापी की तरह घूमता रहेगा और कहर मचाता रहेगा ।😢
रविवार, 12 अप्रैल 2020
प्रेम
मोहब्बत करने वाले बिना ज्ञानवान, धनवान, शक्तिमान होकर भी दुनिया पर कब्ज़ा कर सकते हैं ।
(नागरिकजी @ मोहब्बत International)
Love International
घृणा को दिल से निकालने के लिए थोड़ा मशक्कत करनी होती है ।
इसी को इस तरह भी कह सकते हैं कि प्रेम मोहब्बत करने के लिए मन की घृणा को थोड़ा/बहुत दबाना, परे हटाना, उससे मुक्ति पाना होता है।
अब उच्छृंखल, आज़ाद ख़्याल लोग लोकतन्त्र और स्वतंत्रता संग्राम का हवाला देकर इस बंधन को गुलामी या पराधीनता की संज्ञा देकर नकारें नहीं, तो यह मनुष्यता के लिए हितकर होगा ।
इस बात को दो एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जाय तो विचार कुछ ठीक से जन मस्तिष्क तक पहुंचे :-
जैसे हम अधिकांश नागरिकों की प्रवृत्ति में शासन सत्ता सरकार के प्रति एक अजीब सा विक्षोभ, कहें तो घृणा उपजी है । तो क्या इसी से हम अपनी नागरिकता को संचालित होने दें ? नहीं, इस मन को मारकर ही हम अनुशासित व्यवहार द्वारा लिख पढ़कर भी सत्ता पर विचार प्रहार कर सकते हैं । सत्ता से अपना प्रेम, अपनी संलग्नता सर्वथा समाप्त तो नहीं कर सकते?
इसी प्रकार बहुलांश हिन्दू के मन में सहजीवी मुस्लिमों के प्रति आधारहीन, विचारहीन, दुष्प्रचार जनित घृणा जमकर व्याप्त हो गयी है (सरकार सम्मिलित)। हो सकता है इनके पास इसके पक्ष में मजबूत कारण हों । हम उसपर बहस विवाद न कर चलो उनका आरोप सही मान लेते हैं । तिस पर भी अपने मन से, चाहे योग ध्यान अध्यात्म पूजा पाठ द्वारा ही, इस घृणा को उन्हें निकालना ही होगा । चलिए इसे हठयोग कह लेते हैं, यह तो भारतीय है? ऐसा हर युग, सनातन से लेकर अब तक किया गया और आगे भी जब तक सृष्टि है तब तक करना ही पड़ेगा । यही धर्म है, धारण करने योग्य । इसी हठयोग, धर्म और अध्यात्म द्वारा मनुष्य से प्रेम करना ही पड़ेगा । इसे बंधन गुलामी न समझें। यह धर्म है, धर्म का अनुशासन है । इससे बंधना ही पड़ता है ।
तो अपनी घृणा से बलपूर्वक, नफ़रत से ज़बरदस्ती छुटकारा लेकर हिन्दू जमात को मुस्लिम जाति/ जनजाति से एकतरफा मोहब्बत की पैदावार करनी ही होगी, अपनी भारतीयता को सिद्ध (caa?) सफल और उच्चतर बनाने की ख़ातिर ।👍
(Love International)
ज़िद्दी
ज़िद्दी जमात (fb group)
- - - - - - - - - - - - - - - - --
ज़िद्दी जमात: पिद्दी की ज़ात, खुराफ़ात ही खुराफ़ात, एकलव्य वाला पुरुषार्थ- आत्मविश्वास के साथ, डर को दे मात- बाबू उग्रनाथ!
Sense
ABSolute NONsense (fb group)
हँसते हुए महामारी कोरोना, प्रलयंकारी ईश्वर और विकासवादी राज्य का सामना करना।
(मजदूर वर्ग)
शनिवार, 11 अप्रैल 2020
बच्चों के नाम
प्रेम प्रहार
मुझे सन्देह है कि यदि मेरे बच्चे कल को शारजाह अथवा कनाडा में ही बस जायँ, तो दो तीन पीढ़ी बाद भी वह अपने बच्चों के नाम संस्कृत में धराएँगे ?😢
अकर्म
मैंने काम यह किया कि मैंने कुछ नहीं किया । (अकर्म?☺️)
मैंने अपने परिवार को अपनी ओर मोड़ने की कोई कोशिश नहीं की, बच्चों को कोई दिशानिर्देश नहीं दिया, मित्रों को विचारधारा नहीं पकड़ाई ।
सब उन्होंने अपने मन से अपना काम किया ।
और मेरा काम हो गया, होता गया ।
मैंने कुछ नहीं किया - यही मैंने काम किया ।
शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020
धारणा की स्वतंत्रता
कोई व्यक्ति कोई भी विचार, वाद सिद्धांत कभी भी धारण कर सकता है , इसकी आज़ादी है, होनी ही चाहिए ।
और आगे वह उससे विमत, विरत, असहमत, बल्कि उसका आलोचक और विद्रोही भी हो सके, इसकी स्वतंत्रता भी उसे होनी चाहिये । किसी व्यक्ति या संस्था को उस पर उँगली उठाना नहीं चाहिए । इसी में democracy है, इसी में secularism है ।
- - मित्र नागरिक
बहस
युवावस्था में वैचारिक तीब्रता थी, तब मित्र से बहस में डर नहीं लगता था ।
अब बहस से डरता हूँ कहीं मित्र खो न जाएँ ।
फेल सरकार
दुःखद सूचना --
यह कि भारत ने अपनी ऋषिसुलभ आध्यात्मिक ज़िम्मेदारी नहीं निभाई ।
योगी जी ने, कुछ पुजारियों ने और शिवराज जी अवश्य कुछ हिम्मत दिखाई प्रतिबंध परे सार्वजनिक धार्मिक राजनीतिक कार्यक्रम करके । और चर्च के अनुयायी , इस्लाम के प्रचारकों ने तो अवश्य भक्ति दिखाई । लेकिन सरकार ने कोई भारतीय आध्यात्मिक कर्तव्य नहीं पूरा किया ।
थाली तोड़ने, दिया जलाने के आडम्बर के स्थान पर यह गीता, जिसे ये राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने वाले हैं, का तो उध्दरण देकर देश को आश्वस्त कर ही सकते थे ?
मृत्यु अवश्यम्भावी है । आत्मा अजर अमर है । इससे क्या डरना? अवश्य, संवैधानिक वैज्ञानिक दृष्टि से महामारी से सचेत / बचकर रहना तो लौकिक दृष्टि से आवश्यक है । तो मेरे प्यारे देशवासियो, यह - यह वह एहतियात पूरा बरतो, और अपना सामान्य जनजीवन धैर्य निष्ठा और नागरिकता के साथ जियो । हम और पूरे देश की राजकीय, चिकित्सकीय मशीनरी तुम्हारे साथ है । और किन्ही की यदि मौत आ ही जाती है तो शोक न करो और खुशी खुशी स्वीकार करो । हे पार्थ , गीता।की बात सुनो । जीवन का हथियार कमरे में बन्द होकर मत डालो । तुम्हारा क्या था, क्या लेकर आये थे क्या ले जाओगे । अर्जुन कोरोना से इस प्रकार युद्ध करो ।
अन्यथा किस दिन काम आयेंगी ये धर्म की किताबें जिनमें विश्व का सारा ज्ञान विज्ञान सनातन से भरा पड़ा है ? जिनके बल पर अपनी विश्व गुरुता का दावा सीना ठोंककर करते हो ? अपनी पारी आयी तो देश को अंदर करके निकल लिए?
निश्चय ही भारत ने अपनी आध्यात्मिक, मानसिक, नैतिक साहस की ज़िम्मेदारी नहीं निभाई । इन्हें नम्बर मिले बस दस बटे सौ ।
क्योंकि यदि वायरस पूर्ण समाप्त न हुआ तो क्या साल छः महीने तालाबंदी को खींचना उचित होगा?😢
(गुरुनाथ)
गुरुवार, 9 अप्रैल 2020
धर्म व्यक्तिगत नहीं , राज्य
आप धर्म की बात कर रहे हैं (सेक्युलरवाद के तहत), हम तो राजनीति को भी व्यक्तिगत बनाये हुए हैं । मजबूरन हम राज्य के मामलों में बोल नहीं सकते ।
जबकि विदेशी Secularism की अँग्रेज़ी परिभाषा के अनुसार हमें धर्म को व्यक्तिगत बनाना बताया गया था ।
तो इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि अब हम धर्म को सार्वजनिक मनाये दे रहे हैं, और राज्य को , राज्य की राजनीति को, व्यक्तिगत मान समझ छुपाकर या चुपकर मना ले रहे हैं ।
यह शोध की बात है । secularism के शास्त्रीय विद्यार्थी इस पर चर्चा कर सकते हैं । Secularism and Democracy के इस भारतीय कायापलट पर विश्वविद्यालयों के राजनीति विभाग कृपया इस पर ध्यान दें , यदि उन्होंने secularism के दर्शन को भी व्यक्तिगत न बनाया हो । और वह भी इस syndrome के शिकार न हों कि विदेशी सेक्युलरवाद भारत पर फिट नहीं बैठता, और यह कि इसमें खोट ही खोट है । भला धर्महीन राज्य का क्या मतलब ? etc etc - - ! रामचन्द्र कहि गए सिया से - - - यही तो ?😢
बुधवार, 8 अप्रैल 2020
कम्युनिस्ट इसलिए
कम्युनिज़्म इसलिये, क्योंकि सबको सबके साथ रहना है ।
जैसे मेरे ही आसपास, पड़ोसी मित्र और परिजन भी मुझे नापसंद हैं। नालायक हैं और उनसे मेरी बैठती नहीं ? तो क्या करें? साथ तो जीना खाना, उठना बैठना रहना ही है । यह कम्युनिज़्म नहीं तो क्या है? द्वंद्व (तनाव) की वहाँ भी गुंजाइश है । बल्कि विचारधारा का प्रमुख आवश्यक अंग । Dialectical Materialism !
और उदाहरण लीजिये । यूँ कहने का सही समय नहीं है, फिर भी । यदि मुसलमान साम्यवाद अपनाए होते तो क्या धर्म सम्प्रदाय के नाते इतने अपमानित होते ?होते तो उतने, उन्ही के साथ जितने वामपंथी दुत्कारे जाते हैं । पर बचाव और संघर्ष में सब साथ होते ।
यही अवस्था दलित की है । अंबेडकर के नाम पर अलग खिचड़ी पकाते हैं । केवल ब्राह्मणवाद को गाली, जबकि स्वयं हिन्दू हैं । प्रकारांतर हिन्दू को पुष्ट कर रहे हैं, और आक्रामक, जिसका दुष्परिणाम इनके साथ मुसलमानों को भी झेलना पड़ता है ।
और हिन्दू भाई बहन? इनके बारे में कुछ न कहना । इनने अपने कुएँ में भाँग डाल रखी है । जिसे कम्युनिस्ट अफीम कहते हैं ।
(दलितोयवस्की)
मंगलवार, 7 अप्रैल 2020
Two Pages
हमारी उल्टी माया जानते हैं क्या आप ?
हमारे पास दो Pages हैं internet पर, जो नागरिकमुनीजी ने बनाये ।
तो "नागरिक धर्म" (our citizenship is our religion) के माध्यम से हम राजनीतिक कार्य, चिंतन/ लेखन/ अभिव्यक्ति आंदोलन करते हैं । और
नम्बर दो, दुनियावादी दल (secularist party) के ज़रिए धर्म, अध्यात्म, बुद्धिवाद, नास्तिकता, का प्रचार करते हैं ।
क्योंकि हमें तो कोई संदेह नहीं कि धर्म और राजनीति एकमिक्स हैं । इन्हें अलग नहीं किया जा सकता, यह एक बात है, इन्हें अलग किया भी नहीं जाना चाहिए यह समझने की बात है । यदि आपको सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की दोषपूर्ण विचारधारा से लड़ना है । वह दोनो को एक करके कुएँ में भाँग डालते हैं । तो हमें भी रणनीति के तहत के दवाइयों की पोटली बनाकर पानी साफ करना पड़ेगा ।
तदन्तर, एक और clarification :- हम भारतीय धर्म को सेक्युलर बना रहे हैं, और विदेशी सेक्युलरवाद को भारतीय खाँचे में ढाल रहे हैं ।
और फिर? मियाँ की जूती मियाँ के सर ! ह ह हा☺️👌
आसमानी
मुझे आसमानी / Transcedental किताबों, ईश्वरों, देवदूतों, शिक्षाओं के बारे में कुछ नहीं कहना ।
उसी क्रम में मैं यह जोड़ना, बात आगे बढ़ाना चाहता हूँ कि मनुष्य, नर नारी भी तो आसमानी इयत्ताएँ, Identities हैं बिल्कुल material और चेतन भी ?
और ये लोग भी तो जीवंत, बोलते बतियाते, कुछ कहते सुनते हैं ?
तो ये लोग भी तो आसमानी हैं ? इनकी बात भी सुनी, विवेकानुसार मानी जानी चाहिए ?
सोमवार, 6 अप्रैल 2020
शनिवार, 4 अप्रैल 2020
विश्वास और अंधविश्वास
विश्वास और अंधविश्वास में फ़र्क़ करने का एक तरीका समझ में आया है अभी । यह सोच मुझे नास्तिक और सेक्युलर के बीच अंतर से समझ में आया ।
जानकार कहते हैं राज्य को सेक्युलर होना चाहिए । व्यक्ति सेक्युलर नहीं होता । वह नास्तिक होता है । राज्य नास्तिक नहीं होता ।
बस यही सूत्र मैंने पकड़ ली । व्यक्ति विश्वासी होता है । लेकिन विश्वास यदि सत्तासीन, यानी राज्य को प्राप्त हो जाय तो राज्य अंधविश्वासी हो जाता है । यूँ भी समझें जैसे कि सत्ता पाहि राज्य मद माँहि अंधा हो जाता है ।
व्यक्ति का विश्वास ताक़तवर नहीं, इसलिए खतरनाक नहीं होता । वह केवल व्यक्ति को नुकसान पहुंचाता है । लेकिन राज्य का अंधविश्वास बरबादी ला सकता है । कहर तो ढाता ही है ।
गुरुवार, 2 अप्रैल 2020
मुल्ला सेकुलर
सेकुलर मुल्ला
सेकुलरों के ऊपर आपको एक आरोप का फेनामेना आपको याद है ? जो हिन्दू अतिरेक के विरुद्ध बोले और मुस्लिम को तंग करने की नीति की आलोचना करे उसे मुल्ला की संज्ञा दी दी जाती थी । चिढ़ाया जाता था, खिल्ली उड़ाई जाती थी , एक तरह से अपमानित करने के भाव से । मुलायम सिंह यादव मुल्ला मुलायम प्रसिद्ध हुए । और हम बाबरी विनष्टि के विरोधी भी खूब छींटें खाये । यह क्रम अभी भी रुका नहीं है ।
यहाँ तक कि छद्म विश्व बंधुत्व वाले संघ की छतरी तले विदेशी अवधारणा , सेक्युलरवाद का देसी भारतीय version, परिभाषा ही हो गया - हिन्दू विरोध मुस्लिम तुष्टीकरण ।
कितना भी हमने किया मुस्लिम ताड़न की उनकी मंशा न गयी और अब तो - सत्ता पाई काहि मद नाहीं हो गया । बल्कि इसमें 5000 सालों पुराना राष्ट्रीय सांस्कृतिक दम्भ भी जुड़कर सेक्युलरिज़्म के लोकतांत्रिक, न्यायमूलक अवधारणा को सफ़लतापूर्वक रौंदने लगा ।
ऐसे में मस्तिष्क में एक बदमाश चिंतन आता है । जब आरोप है ही, और वह आरोप माथे पर रहना ही है, तो उसे अपना आई कार्ड, अपना बैज क्यों न बना लें ?
एक ऐसा ग्रुप जो घोषित रूप से मुस्लिम समर्थक हो ?
मतलब उसका नाम ही हो - " मुस्लिम समर्थक सेक्युलर संघ" !👍
अब न्याय के लिए राजनीति का तकाज़ा तो यही है, पूरा हो या नहीं । पूरा हो या नहीं लेकिन राममंदिर भव्य बनेगा । रामायण महाभारत चलेगा, scientific temper का मटियामेट किया जायेगा । फिर मुसलमान से पूछा जायगा तुम नमाज़ क्यों पढ़ते हो, जलसा क्यों करते हो ?
क्या इस दोहरे चरित्र को तोड़ना स्वतंत्रता की देवी के पुजारियों का कार्यभार नहीं बनता ?👍
बुधवार, 1 अप्रैल 2020
मुशायरे में हम
तरीका है क्यों नहीं सत्ता को पकड़ने का ! इन्हीं सत्ताधिकारियों के माध्यम से सत्ता संभालने का !
ये लोग कुछ भी करें, एक शब्द भी बोलें, सही लगे तो वाह वाह बोलें । लेकिन यदि गलत लगे तो मधुमक्खी की तरह छेंक लें , लानत फेंकें, शर्म शर्म के नारे लगाएँ और हूट करें ।
मानो हम मुशायरे में शामिल हों । सुनी कैसे नहीं जायगी हमारी बात ? इसी बहाने उन्ही के माध्यम से हम सत्ता में होंगे । 👍
हीन भाव लाने की ज़रूरत नहीं । यही देखें सांसद विधायक की ही क्या हैसियत होती है सत्ताधारी पार्टी में ? मंत्रियों तक की तो होती नहीं । फिर तो उतनी सत्ता पर हमारा अंकुश पर्याप्त है राजनीति के लिए । 👌
निज़ामुद्दीन
मेरे आदरणीय बड़े भाई ! पहले आरोप तो तय कर लीजिये निज़ामुद्दीन पर । फिर बात करें ।
आपका आरोप यदि ईश्वर अल्ला पर विश्वास, धार्मिक अंधविश्वास पर है तो आपके साथ तमाम भारत है । चलिए इस दिशा में काम किया जाय । हम तो वह कर रहे हैं । नास्तिकता प्रचार ग्रुप में डेढ़ लाख सदस्य जुटे हैं।
और यदि आस्थाओं से कोई ऐतराज़ नहीं, केवल धार्मिक जमावड़े पर आपका प्रहार है, तब भी हम आपके साथ है और हैं तमाम AKSiddiqui, Asghar Mehdi सरीखे मुस्लिम बुद्धिजीवी, नाम बहुत सारे, कहाँ तक गिनाऊँ ।
लेकिन तब यह- वैष्णव देवी में "फँसे" और निज़ामुद्दीन में "छुपे" की शब्दावली नहीं चलेगी । आपको दोनो ही कि मज़ामत करनी होगी । क्या आपको याद नहीं मक्का हज ज़ियारत में भी लोग जानें दे चुके हैं? और कोरोना से कहीं अधिक बलिदान हमसे हिंदुस्तान का "तीर्थयात्रा" वायरस हर वर्ष लेता रहा है - भगदड़ में दुर्घटनाओं में । आस्थाओं की बड़ी कीमतें चुकायी और चुका रहे हैं हिन्दू और मुसलमान सभी । एक को अलग क्यों छोड़ रहे हैं यदि सचमुच न्याय दृष्टि वादी हैं आप ?
अभी ही ताज़ा एक "राम मंदिर" वायरस कुछ दशकों में कितना कहर ढाकर गया (?) क्यों भूल रहे हैं आप ? तब तो इसे आस्थाओं का देश, धर्मप्राण मुल्क बता रहे थे । तो इसी धार्मिक भावभूमि पर मुसलमान भी अपना धर्म निभा रहे हैं । उसी का कार्यक्रम था निज़ामुद्दीन । फ़र्क़ न कीजिये।
अब और अगर इससे भी कोई एतराज नहीं, आरोप केवल तकनीकी पक्ष को लेकर है - क्या सरकारी आदेश था, वीजा की वैधता, एडमिन को सूचित करने को लेकर है तो दीगर बात है । जाँच हो, होगी ही , तो दोषी नियमानुसार सज़ा पाएँगे । दोषी न हों तो बनावटी धाराओं में न फँसायें । वह राजकीय काम हॉ, हम हस्तक्षेप नहीं करते ।
कानून से अलग आपकी मानसिक शुद्धि के लिए सूचित कर दें कि पूरे प्रतिबंध के बावजूद अयोध्या में रामलला जी के मूर्ति की नए घर में shifting बड़े भावपूर्ण तरीके से किया गया, वह भी सरकार के मुखिया द्वारा जिनके जिम्मे पूरे प्रदेश का स्वास्थ्य, सुरक्षा, कानून और व्यवस्था है । क्या कहिएगा ? चूक हो गयी, आस्था की बात थी ? निज़ामुद्दीन के प्रबंधकों से भी ऐसी चूक होने की गुंजाइश दीजिये ।
तो पहले यह तय तय कीजिये कि आपका आरोप क्या है निज़ामुद्दीन पर । फिर अपनी आस्तीन भी झाँक लीजिये ।
हमें तो किसी भी धार्मिक भावना से सहानुभूति है । क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, आस्था तो मारक यंत्र है सबके लिए । लेकिन क्या करें इन्हें धारण करने वाले मनुष्यों से तो हमें प्रेम महब्बत है !
तमाम किस्म के कोरोनाओं से लड़ना है । अज्ञान अशिक्षा बेरोजगारी तो प्रमुख थे । बीच में यह नया, Novel कोरोना आ गया । तो इससे लड़िये । सब मिलकर । इसने तो अपने खिलाफ़ पूरी दुनिया को एक कर दिया । इधर एक हम विश्व बंधुत्व वाले हैं जो हिन्दू मुसलमान किये जा रहे हैं । फिर तो जय कोरोना !