गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

कथित कविता [contd.]

२९ -  
२८ -जब बूढ़ा पेंसन  पाता है तब बेटा उसे खर्चा क्यों दे ?

२७ - प्रेम ही नहीं
मुझसे घृणा भी
सुबूत है कि
आप मेरे हैं |
१ - हम बहस में
नहीं पड़ते
हम निर्णय करते हैं
और चल देते हैं |
                 ===
२ - चुटकी बजाते  ही 
हम  कुछ  कर लेते  ,
चलो चुटकियाँ बजाएं  |
                       ===
३ - अपनी सीमा समझ
मेरे पास आ
मेरे घेरे में
"आ ' जद ' में आ "
आज़ादी कहती  |
                   ===
४ -  कोई ऐसा विषय बताओ
जिस पर मैंने
कविता न की हो ,
तो उसकी
समस्या पूर्ति करूँ  |
                  ===
५ -  मैं कोई पदचिन्ह नहीं छोड़ता
छोडूंगा तो तुम
उस पर चलने लगोगे ,
अपने पैरों  पर चलो |
                 ===
-कहने से
पूरी नहीं होती
हर बात 
चुप  होना पड़ता है  |
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७ - अभी  बहुत  अच्छा  है
बहुत  हल्का  हूँ  मैं
मेरे  शव  को  मेरा  एक  पुत्र
एक   पुत्री   मिलकर
कब्र  में  डाल सकते  हैं  |
लेकिन  यदि
ज्यादा  मान  -सम्मान  ,
प्रतिष्ठा -पुरस्कार  का  भार
तमगों  का  बोझ
अपनी  देह  पर  लादूंगा
तो  मेरे  परिजनों  को
अतिरिक्त  मजदूर  लगाने  पड़ेंगे
मेरी  लाश  को  कब्र  में
आहिस्ता  उतारने  के  लिए  |
मौके  से  कहीं  मजदूर  न  मिले 
तो  कब्र  में  मजबूरन  मुझे
धक्का  देकर  डालेंगे
और  मेरे  शरीर  को  कष्ट  होगा  |

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८ -  बहुत अच्छा , आप
खूब सुंदर तो लिख लेते हैं ,
मेरे जैसा टेढ़ा - मेढ़ा 
लिखिए  तो जानूं  !
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९ -  हम  अजब  संकट  में हैं 
हम जिसको प्यार करते हैं 
वह अपने कुत्ते को 
प्यार करती है /
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१० -  राजा से पूछो 
वह टोपियाँ सिलना 
जानता है या नहीं  !
[or  औरंगजेब को याद करो ,
और फिर अपने मंत्री ,
मुख्य मंत्री - प्रधान मंत्री से पूछो -
उसे टोपियाँ सिलनी
आती हैं या नहीं ? ]
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११ -  हम उस दौड़ में नहीं हैं 
जिसमे तुम हमें 
असफल समझते हो  /
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१२ -  सोच रहा हूँ अभी 
लिखने के बारे में 
सीख रहा हूँ अभी लिखना 
मेरे लेखक बनने की 
संभावना नहीं है /
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१३ -  १५ -अगस्त
सोच रहा हूँ मुझे
कैसे मनाना चाहिए १५ अगस्त
आम आदमी की तरह
यह दिन भी " आया -गया हो गया " जैसा ,
या विशिष्ट बुद्धिजीवी की तरह -
"हाय -हाय क्या हो गया है लोकतंत्र को
इतनी समस्याएं आ गयी हैं
आज़ादी के बाद
कि कलम सूख गयी लिखते -लिखते
गला बैठ गया चिल्लाते - चिल्लाते
आँखें धंस गयीं मोटी -मोटी
किताबें पढ़कर " |
मैं विधान सभा की झांकी
देखने निकल पड़ा , और
रात भर रिक्शे वालों , मजदूरों '
के साथ वहीँ जी पी ओं
पार्क में पड़ा  रहा |
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१४ -जंगल का मज़ा
इसी में है कि
शेर , शेर रहे
बकरी , बकरी रहे   |
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१५  -  क्या  करें
उसे न आने दें
जो पैदा होना चाहता  ?
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१६ -  सोचता हूँ कहीं
भ्रूण हत्या न हो जाये
ईश्वर की
जो पैदा होना चाहता है  !
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१७ -  खुद थूको चाँद पर
और जब थूक
तुम्हारे ऊपर गिरे
तो तुम कह सकते हो
देखो मैं कितना बड़ा आदमी हूँ |
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१८ -  कोई सफ़र 
होता नहीं
कुछ पैदल 
चले बिना  |
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१९ -  इजाज़त किसी को
नहीं है , लेकिन 
इजाज़त मांगता 
कौन है !   [ambiguous ]
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२० - आकर्षक पहाड़
आकर्षक
उन्नत उरोज |
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२१ -  वह करेगा
अपने मन की
करते रहो 
पूजा - पाठ  |
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२२ -  ईश्वर है तो 
उसका कोई 
मतलब भी 
होना चाहिए 
या यूँ ही 
जपे जायेंगे 
माला  , बजाये 
जायेंगे ढपली !
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२३ -  चिंता छोडो 
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ज्यादा चिंता न करो भाई
बस अपनी रोटी और रोज़ी
का इंतजाम करो
और शान्ति से रहो |
रोटी के साथ शान्ति ही जोड़ो
रोटी के साथ कमल मत जोड़ो |
यह कमल- वमल का खेल 
राजा - रानियों का है 
और तुम राजा - रानी नहीं हो | 
जो तुम्हें कमल का वास्ता देते हैं ,
समझ लो वे राजा के आदमी हैं 
तुम्हे राजा की
लिप्सा में शामिल कर  
वे तुम्हे मरवाना चाहते हैं 
और राजा का राज्य 
स्थापित करना चाहते हैं |
वरना भला कमल 
तुम्हारे किस काम का |
शान्ति से काम लो और
रोटी का इंतजाम करो ,बस !
अपना जीवन सत्ता के खेल में मत गंवाओ |
लोकतंत्र के भ्रम में मत पड़ो
यह कभी नहीं होता , कभी नहीं होगा
बहुत शौक हो तो नेताओं के
चक्कर में पड़कर देख लो 
आता - डाल का भाव 
मालूम पड़ जायगा |
इसलिए , केवल आता डाल देखो 
और कायम रखो 
अपने तन मन की शान्ति 
अमन और चैन |
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२४ - कोई किस्सा
केवल आपका नहीं है
वह सबका है |
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२५ - कुछ डाक्टरों की पर्चियां
कुछ दवाओं की रसीदें
जांच की रपटें तमाम
मिलीं उसके बैग से
उसके मर जाने के बाद |
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२६ - मेरा प्रश्न है -
मुझे कविता
लिखनी ही
क्यों पड़ती है ?
=============
~!@#$%^&*()_+  THE  END    [ read 27 pre 1 ]
     

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