बुधवार, 29 दिसंबर 2010

करेला और नीम चढ़ा 17

१ - करेला , और नीम चढ़ा
उसमे भी कीड़ा पड़ा |--
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२ - दुनिया न होती तो क्या होता
न वह होती , न वह होता |----
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३ - सूरज डूब गया , ठंडक बढ़ि आई |
      मनई के देहिन पर कप्दन चढ़ि - चढ़ि आई |  

४   - आज  भी भोजन क्षुधा को मिल गया ,
या खुदाया फिर तुम्हारा शुक्रिया |

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५  -   थोड़ा दोष मुझे भी देना दुनिया नर्क बनाने का
         थोड़ा श्रेय मुझे फिर देना दुनिया में सुख लाने का  |

६  - यदि आप किन्ही रोज़ नाशिस्तों में जायंगे
       तो आप नाशिस्तों में बुलाये भी जायंगे |

७  *   उसने मुझे फँसाना चाहा ,   मैंने फँसना चाहा   ..

 ८ * बहुत गहरे जम गयी काई  . .  .

९  *  तुम कहते हो कोई नहीं था ,
    रोया अतिशय लेकिन वह तो .....

१०  - ऐ हवा मेरे संग - संग चल
      ऐ फिजां मेरी हमवार बन | _ -- - -

११  * - ग़ज़ल
रदीफ़  = पहले के ज़माने में 
      ऐसा  कहाँ होता था  पहले के ज़माने में ,
      ऐसा  नहीं होता था  पहले के ज़माने में |
 
           जो सूख गयी दरिया , सूखेगा समंदर भी
          कुदरत के फिक्र्दान थे , पहले के ज़माने में }

      कहता था वही करता , करता वही जो कहता  ,
      होता था  कोई  संत जो  पहले के ज़माने में |
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१२ -   नहीं संभव , नहीं संभव , नहीं संभव , नहीं संभव ,
     जो तुम कहते हो , वह इस देश में कतई नहीं  संभव |
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१३      तब तो नहीं लगी थी  लेकिन  अब आकार वह लगी ,
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१४ -    शमा  की  तीरगी  को  देखा  है ,    
      मुझे  मत  ले  चलो  उसके  नीचे  |
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१५ -    फूल जो तुमने फेंका उस दिन  तीर समान  लगी   |
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१६ -    जैसे -जैसे हो रही दुनिया हमसे  दूर 
        कहें नागरिक हम हुए  चिंतन को मजबूर   |
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१७ -   सोच रहा है वह दुनिया के बारे में ,
      दुनिया है उसके बारे में  सोच रही |
     क्या होगा अब उसके पुत्र -पुत्रियों  का ,
     उसकी पत्नी  निज नसीब  पर झींक  रही || 
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