भारतीय धर्म
भारतीय होना सिर्फ राजनीतिक पहचान नहीं होना चाहिए | इसे भारतीयों का धर्म होना चाहिए , जिसमे सभी धर्म
सम्मिलित भी हो सकते हैं और बहिष्कृत भी \ तभी वास्तविक सेकुलरिज्म आएगा |
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मानसिक बनावट
धर्म एक मानसिक मेक अप है |यह पूरा हो चुका है तो आप के लिए धर्म ज़रूरी लगेगा | नहीं हुआ है तो धर्म के बगैर भी काम चल सकता है |
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दूर से प्रकृति , नजदीक से ईश्वर
ईश्वर कि अनुभूति नजदीक से अपने शरीर द्वारा ही प्राप्त होती है | शरीर की संरचना , उसका काम -काज ध्यान से
देखें तो ईश्वर की करामात का अनुमान लगता है | दूर से पेड़ -पौधे , हवा -पानी , नदियाँ - पहाड़ देखो तो उसे प्रकृति
कहकर टाला जा सकता है |
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आस्था अटल नहीं
आस्था कोई ऐसी चीज नहीं जो अटल , अजर ,अमर ,चिरस्थायी और अपरिवर्तनशील हो |
राजनीति के तहत लोगों ने इसका इतना मन बढ़ा दिया है की यह लोगो के सर पर चढ़ नाचने लगी है , और
मनुष्य की आत्मिक - वैचारिक क्षमता को कमतर आँका जाने लगा है | वर्ना आस्था - विश्वास यदि इतना ही ज़रूरी ,प्राकृतिक और चट्टानवत होता तो ऐसा क्यों होता कि बगल के , पड़ोस के या परिवार के ही विभिन्न जनों की आस्थाएं अलग -अलग प्रकार की , अलग -अलग मात्राओं में होती | बल्कि हिन्दू -मुसलमान की आस्थाएं इतनी
विपरीत न होतीं | ज़ाहिर है यह सब दिमागी बनावट का खेल है | आदमी को खास विचार में ढाला जाता है , माँ - बाप - परिवार द्वारा समाज द्वारा ,और फिर अब तो राजनीति द्वारा भी | अपनी आस्था , अपने विचार व्यक्ति बदल भी सकता है , नए निजी विश्वास पाल सकता है , या अंधविश्वासों से मुक्ति पा सकता है | आस्था कोई पत्थर पर लकीर नहीं |
[ ugranath nagrik srivastava = 31/12/2010] MOB=09415160913, Email=priyasampadak@gmail.com ]
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