गुरुवार, 17 जनवरी 2013

Face Book , 17/01/2013


* कोई  लक्षण 
बदलाव के नहीं 
कैसा आदमी ?

* जो मूर्ख नहीं 
सबसे बड़ा , जानो 
मूर्ख वही 

* अपने आप 
अपने आप को मैं 
जीना चाहता |
  
[ पाकिस्तान से ] 
* कौन कह रहा है की लड़ो ?
लेकिन यदि युद्ध की स्थिति हो तो ?
अच्छा चलो , लड़ें नहीं | यह तो ठीक 
लेकिन तब क्या करें ?
बात करें ?
अच्छा तो किस विषय पर बात करें ?
झेलम और गंगा नदियों के सौन्दर्य पर ?
बहुत सुंदर हैं ये | 
क्या समझ कर बात करें ?
किससे बात कर रहे हैं यह तो समझना होगा ?
बतौर दुश्मन ही तो बात कर सकते हैं | 
दोस्त से क्या बात करना होता है , जब सब ठीक ठाक है ?
दोस्त हो , वह ऐसा है तो नहीं | मानना पड़ेगा |
दोस्ती बहुत जोर मारती है तो 
एक हो जाओ दोनों | लेकिन ,
एक होते तो अलग ही क्यों होते ?
जिन्ना का वचन शाश्वत है -
जिस आधार पर उन्होंने देश बाँटा - 
हिन्दू मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते | 
तो यही बात तो हिंदुस्तान पाकिस्तान पर भी लागू होता है |
क्यों ज़बरदस्ती दिल से दिल मिलाते हो ?
क्या बिना दिल मिले अलग अलग अपने घर चैन से नहीं रह सकते ?
क्यों दिलों में तीर चुभाते हो ?

* वहाँ तो अभी लड़ाई छिड़ी नहीं | यहाँ हम ज़रूर लड़े जा रहे हैं |
हाँ , एक सुझाव यह हो सकता है - उत्तमोत्तम | भारत अपनी सेनायें अपनी सीमाओं से बिलकुल हटा ले | न रहे बाँस न बजे बाँसुरी | 

* जातिवाद जायेगा कैसे ?
क्या कौमों के विशिष्ट गुण नहीं होते ? या उन्होंने उनसे छुटकारा ले लिया है ?

* गलत बात है | आध्यात्मिक जगत में आइये | सबका बाप यह सृष्टि है, जिसे कुछ लोग ईश्वर कहते हैं | उसके समक्ष विनम्र हो रहिये | 

[ कविता ? ]     " विश्व सुन्दरी "
* मुझे ज़रुरत थी हेल्थ कार्ड और बैंक पास बुक पर 
लगाने के लिए पत्नी की फोटो की |
मैं उन्हें स्टूडियो ले गया | 
वह बैठ गई एक बिल्ली या उल्लू की तरह बेंच पर |  
कैमरे की और निहारती मूर्खों जैसी मुद्रा में
 चपुरी बाँधे, अपने बाहर निकले 

दाँत छिपाने के लिए |
बिना पलक झपकाए 
न कोई पोz , न कोई अदा, न नाज़ नखरा |

दो दिन बाद मैं फोटो ले आया 
दंग रह गया देखकर -
मेरी पत्नी तो फोटो में विश्व सुन्दरी लगती है 
है ही मेरी पत्नी विश्व सुन्दरी |
# # # 

* यह एक कटु सच्चाई है कि मुसलमान इंसान तो होंगे | अच्छे इंसान होंगे | लेकिन उतना ही जितना इस्लाम उनसे कहेगा | 

Ujjwal Bhattacharya  जैसा कि इन दिनों देखा जा रहा है, पाकिस्तान के साथ युद्ध के विरोध को भी सेक्युलरिज़्म के साथ जोड़ा जा रहा है. जबकि सचाई यह है कि अधिकतर सेक्युलर लोग भी युद्धोन्माद से ग्रस्त हैं, सिर्फ़ शांतिवादी इस उन्माद का विरोध कर रहे हैं. ये शांतिवादी अल्पमत में हैं और मैं भी उनमें शामिल हूं.|
Ugranath नहीं उज्जवल जी, मेरी हैसियत तो नहीं है पर दावे के साथ कह सकता हूँ कि कोई भी समझदार व्यक्ति युद्ध नहीं चाहता | कोई धार्मिक व्यक्ति भी नहीं , और सेक्युलर तो बिल्कुल नहीं | यही तो पेंच है जिसे मैं कहता हूँ - क्या हम वाकयी सेक्युलर हैं ? आप स्वयं इनसे त्रस्त हैं - " अधिकतर सेक्युलर लोग भी युद्धोन्माद से ग्रस्त हैं " | " पाकिस्तान के साथ युद्ध के विरोध को भी सेक्युलरिज़्म के साथ " जोड़ना बस उसी तरह का वार्तालाप है जैसे झगडे में लोग तू तू मैं मैं पर उतर आते हैं , बाप दादे तक पहुँच जाते हैं | कोई कहता है तू चमार या बाभन है इसलिए ऐसा कह रहा है | लेकिन देश की धड़कन और उसके हित को भी देखना होता है | तनाव और उसके निहितार्थ को नहीं देखेंगे तो शान्ति तो नहीं आएगी गांधी की तरह अनसुने रह जायेंगे | गीता के युद्ध में ही शांतिपर्व भी है | अल्पमत में होना श्रेष्ठ है यदि विश्वास हो कि हम सत्य हैं | लेकिन स्थिति यह है कि सेक्युलर जन अपनी करतूतों के कारण अविश्वसनीय हो चुके हैं | उनके सिद्धांत जो कुछ कहते हों | उनसे अपने को मत जोड़िये | The truth always lies with the minority |           

* आखिर सेनायें सीमाओं पर हैं ही क्यों ? क्या सर कटवाने के लिए ?


* हिन्दू तो गाय को पूजते ही हैं | और भारत के मुसलमान पवित्र गाय हैं |

* तुम्हारा नाम मेरी ज़ुबां पर इस कदर आता है ,
जैसे कोई मरीज़ कोमा में बडबडाता है |

* चलेंगे नहीं
रास्ता नहीं कटेगा
चलना तो है |

* आसान नहीं
तो कठिन भी नहीं
इतना काम |

* क्या बोलना है
सुनना ही है अब
ऐसी स्थिति में |

* कई मान्यताएँ वास्तव में गलत चल रही हैं | यदि भारत का मुसलमान मुल्क से प्रेम करे तो वह देशभक्त | और यदि हिन्दू राष्ट्रप्रेम प्रकट करे तो वह सांप्रदायिक ? मुझे लगता है कि हमारी नज़रें कभी साफ़ नहीं हो सकतीं | या मेरी ही आँखों में जाला पड़ा है ?

* धर्म निरपेक्षता [ Secularism ] के एक एक रेशे के खिलाफ सौ सौ मोटी मोटी रस्सियाँ हैं | कैसे न टूटें ये रेशे ? क्या मजबूती होगी इनमें ? कहाँ से आयेगी ताक़त ? जब इसके पास पौष्टिक तो क्या , ठीक से पेट भरने भर को ही भोजन नहीं है | सेकुलर वाद में एक एक व्यक्ति [ Individual ] की प्रतिष्ठा है  | और इधर हालत यह है कि सरे धर्म संगठन आदमी की व्यक्तिमत्ता को छिन्न भिन्न करने में लगे हैं |

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