शनिवार, 5 जनवरी 2013

मजबूरी बहुत ज़रूरी


* अपने स्वार्थ के अलावा कुछ भी न जानने वाला कुछ नहीं जानता | वह कुछ जान ही नहीं सकता | ज्ञानी होना तो बहुत दूर की बात है |

* मुसीबत को मुसीबत की तरह झेलो , नहीं तो मुसीबत झल्ला जायगी और खौखियाकर टूट पड़ेगी |
* ( गीता से सीखा ) अपनी ज़िन्दगी अपने भरोसे जियो | यह न समझो कि तुम्हारे कितने दोस्त हैं, कितने परिवार के लोग, कितने पुत्र पुत्रियाँ |  

* मुझमे तमाम दोष, तमाम खराबियां हैं | लेकिन एक बात है कि मैं अभिव्यक्ति की आजादी का नम्बर एक तरफदार हूँ | इसका भरपूर खिलाड़ी भी हूँ | बल्कि मेरे एक राजनीतिक मित्र का कहना है कि इस आज़ादी का मैंने सर्वाधिक उपयोग [ दुर ?] किया है | तो इस सिलसिले में मैं एक बात अभिव्यक्त कर दूं कि मैं आन्दोलनों के [ सख्त ] खिलाफ हूँ | एक तो इसने मेरा कैरियर चौपट किया | 1963 में कल्पनाथ रे ने गोरखपुर वि.वि. हड़ताल / मार पीट कराकर पूरा साल बर्बाद करा दिया | मै डिप्लोमा होकर रह गया | आगे जे पी के हिलन्त [ movement ] के समय मैं अपरिपक्व था और मुझे कुछ करना नहीं था , इसलिए मूक दर्शक रहा | इधर तो न अन्ना का, न रामदेव का समर्थक बना | ट्रेड यूनियनों के स्वार्थपूर्ण आन्दोलनों के कारण मुझे इससे घिन सी हो गयी | अब तो करे कोई प्रगतिशील मुझसे घृणा |  

* पुरुष होंगे तो पुरुष मानसिकता से ग्रस्त होंगे | भारतीय होंगे तो भारतीय मानसिकता से ग्रस्त होंगे | हिन्दू होंगे तो हिन्दू मानसिकता से ग्रस्त होंगे | कैसे निकलें इन मानसिकताओं से ? कैसे काटकर और कहाँ फेंकें इन्हें ? कैसे बनायें अपनी मानसिकता को राम चरित मानस ?

 * तलाक ज़रूरी है क्या अलग रहने के लिए ? बिलकुल नहीं | मैं रह ही रहा हूँ | तो सोचता हूँ , साथ रहने के लिए विवाह ही क्यों ज़रूरी हो ?




* लोकतंत्र चाहे रहे या जाय , लोकसेवकों [ कर्मचारियों ] को लोकसेवा का काम करना ही पड़ेगा |
लोकतंत्र के नाम पर हड़तालें काम चोरी !

* खुदा, एक एहसास है या नहीं ? यदि एहसास है, तो खुदा हो न हो क्या फर्क पड़ता है ? और यदि एहसास नहीं है तब तो खुदा है ही नहीं |

* कभी कभी मन अकारण ही , दुखी न कहें तो अन्यमनस्क हो जाता है | बुद्ध हर दुःख के पीछे कारण बताते हैं | कोई कारण नहीं होता फिर भी हम दुखी होते हैं | बुद्ध तब भी मुस्कराते हैं |



* मुसीबत को मुसीबत की तरह झेलो , नहीं तो मुसीबत झल्ला जायगी और खौखियाकर टूट पड़ेगी |

* ( गीता से सीखा ) अपनी ज़िन्दगी अपने भरोसे जियो | यह न समझो कि तुम्हारे कितने दोस्त हैं, कितने परिवार के लोग, कितने पुत्र पुत्रियाँ |

* मजबूरी बहुत ज़रूरी है | मजबूरी न हो तो गधे को कोई बाप क्यों कहे ? और गधों को बाप कहना आजकल कितना ज़रूरी हो गया है , यह तो बताने की बात नहीं है !


* मैं प्रेम विवाह का पूरा विरोधी नहीं हूँ | लेकिन इतना तो मानना पड़ेगा कि विवाह व्यावहारिकता का सम्बन्ध है जबकि प्रेम में भावात्मक बहाव होता है |

* ज़बरदस्ती कुछ भी नहीं होना चाहिए | रेप का तो सवाल ही नहीं उठता |

* माँ बाप की गलत बातों को गलत वैसे भी कहा जा सकता है | गाली देना ज़रूरी नहीं है |

* आने वाले समय में " विप्र " उसे कहा जायगा, जो 'विज्ञानं' में 'प्रवृत्त' होगा |

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