गुरुवार, 3 जनवरी 2013

तीन तीन युद्ध


* अगर वक्तृता, लच्छेदार भाषणों  के बल पर सद्भाव कायम होता , तो अटल बिहारी जी को पाकिस्तान यात्रा बीच में छोड़कर कारगिल न लड़ना पड़ता |  
तीन तीन युद्ध हुए | किसने किया ? कौन जारी रखे हुए है ?

संबंधों को 'गन्दला' करने वाले हुक्मरान और सियासतदान कहाँ से आते हैं ? आप उनसे अपने मुल्क में लड़िये | हम तो यहाँ लड़ ही रहे हैं | इसमें जनता के बीच प्रेम मोहब्बत क्या कर लेगी ?

अजीब बात है | अन्य किन्ही देशों से प्रेम की बल्तों की इतनी नौटंकी नहीं की जाती , पर उनसे सम्बन्ध बिगड़ते तो नहीं हैं | इधर हिन्द -पाक के बीच जितना मोहब्बताना शोर होता है , उतना ही इनके सम्बन्ध बिगड़ते हैं |

[कविता ]
* पता चलता है 
वह शूद्र है ,
विश्वास तो नहीं 
पर शक होने लगता है -
वह शूद्र होगा |
# # 
* समानता भी 
क्या दोनों एक साथ ?
आरक्षण भी ?


* एक दो तथ्य और ध्यान देने योग्य हैं | लोग मृत्यु दंड की बड़ी मांग कर रहे हैं | यदि इस दंड में कोई ताक़त होती तो लोग इसके aagman के भय से ही डर गए होते , जैसे भेड़िया या शेर के अथवा प्रलय आने की सूचना से भय व्याप्त हो जाता है | लेकिन क्या हुआ ? बलात्कार के समाचारों से अखबार पटे पड़ रहे हैं | एक पत्रकार मित्र का आज कहना था कि अब ' बलात्कार समाचार ' नाम से अखबार की गुंजाइश हो गयी है | अतः फाँसी अशक्त और अपर्याप्त है अपराधियों को अपराध से विरत करने में |

दूसरे , अख़बारों में यह कोई गौर नहीं कर रहा है कि आयुर्वेदिक शक्तिवर्द्धक नाना प्रकारेण कैप्सूलों के विज्ञापनों की कितनी भरमार हो गयी है ? 


* एन डी तिवारी शिया कालेज पहुंचे | - - उन्होंने कहा कि समुदाय को शिक्षित करने व उर्दू भाषा के प्रचार - प्रसार के लिए सरकार सहित सामाजिक संगठनों को आगा आना होगा | 
 मुसलमानों को शिक्षित करने के बीच में यह उर्दू भाषा कहाँ से आ गयी ? कहा तो जाता है कि उर्दू किसी संप्रदाय की भाषा नहीं है | तो थोडा तो मूर्ख बनना हमें मनोरंजक लगता है, लेकिन सरासर मूर्ख बनाने कि कोशिशों को हम उचित नहीं समझते | मुसलमानों के निमंत्रण पत्र उर्दू / अंग्रेज़ी में छापते हैं | इसलिए यह कहा जा सकता है कि उर्दू हिंदुस्तानी भाषा है , लेकिन यह मुसलमानों कि थोड़ी ज्यादा है |

* आखिर थानों में महिला पुलिस कान्स्तेबुलों कि संख्या बढ़ानी पडी या नहीं ? मैं कहता हूँ तो मेरी बात कोई मानता ही नहीं - कि देश का बागडोर महिलाओं और दलितों को सौंप दिया जाना चाहिए | फिर चाहे महिलाओं की अस्मिता का प्रश्न हो या आरक्षण की समस्या , सब सुलझ जायगी | और यही केवल एक उपाय है भारत के लिए समुचित | इसमें कई कई गुण हैं | कोई समझे तो ! बस अपने स्वार्थ से निकलने और देश सेवा के भाव से आगे आने की ज़रुरत है |      

* लोग कहते हैं औरत पुरुष से निम्न और भिन्न है | इसे पलट कर क्यों न समझा जाए ? पुरुष औरत से भिन्न अतएव  निम्न है |

* दुर्घटनाओं , अप्रिय घटनाओं का कारण है प्रगति , अंधाधुंध गति | पैसा आ गया , खान पान , कपडे लत्तेवगैरह तो बदल गए पर उस हिसाब से दिमाग नहीं बदला / बढ़ा | उसके अनुकूल मानस तब्दील नहीं हुआ , बुद्धि में अभिवृद्धि नहीं हुई | इसलिए सामाजिक व्यवहार में पाँव लड़खड़ा जाते , क़दम गलत दिशा में पड़ जाते हैं |



एक छोटी सी विनम्र सूचना देनी थी | हम थोडा कट्टर किस्म के धुर नास्तिक Cantankerous Atheist लोग हैं | हम अपनी आस्था और विश्वास का ही प्रचार करते हैं और यूँ अमूमन धर्मों या धर्म विशेष का सन्दर्भ नहीं लेते, फिर भी ज़रुरत पड़ने पर मजबूरन उन पर कटु प्रहार भी कर सकते हैं , क्योंकि स्थितियां सहन शीलता की सीमा से प्रायः बाहर चली जाती हैं | इसलिए धार्मिक सांप्रदायिक आस्तिक मित्रों को सावधान करना है कि यदि उन्हें हमारी आस्था रुचिकर न लगे तो भी उसका आदर करें और हमें चिढ़ाएं नहीं, यदि वे अपनी आस्था का आदर बचाना चाहते हैं तो | बराबरी का [पौरुषेय] व्यवहार वैसे ही करें जैसे एक आस्तिक द्वारा दूसरे आस्तिकों से किया जाना अपेक्षित है | [ नास्तिक जन ]


* लोग मृत्यु दंड की बात करते हैं और यहाँ मैं थानों में थर्ड डिग्री मेथड अपनाने के ही खिलाफ हूँ | नतीजा जो भी हो |
* मैं यह सोच रहा था कि पुलिस थाने अपराध दर्ज करने से क्यों कतराते हैं ? अक्सर सुनने में आता है कि ऍफ़ आइ आर नहीं लिखा जाता | शायद सर्कार द्वारा थानो के मूल्यांकन में यह आंकड़ा काम आता है कि देखो हमारे यहाँ अपराध कम है | यदि सरकार थानों में दर्ज अपराधों को थाने के कार्य प्रणाली से न आंकने की नीति बना ले तो थानेदार उन्हें लिखने से न कतराएँ और सही वस्तु स्थिति , वह जैसी भी हो ठीक हमारे सामने आये |

* प्रमोद जी की बात से , इसीलिये बात आती है कि राज्य कमज़ोर आदमियों के लिए होनी चाहिए | कमज़ोर आदमी ही इकठ्ठा होकर राज्य बनाते हैं , राज्य का निर्माण करते हैं | मजबूत और दमदार लोगों का क्या ? वे तो अपने व्यवसाय - व्यापार का भी प्रबंध कर सकते हैं , अपने बच्चों के लिए शिक्षा का इंतजाम भी और आवास आदि , और अपनी सुरक्षा भी वे भली भाँति कर सकते हैं | इसीलिये हमने [ एकदा फितरतन ] " कमज़ोर पार्टी " बनाने कि सोची, जो हंसी में उड़ गयी मेरे हर ख्याली पुलाव कि तरह |  लेकिन सच यह है तो और ऐसा कहा जा सकता है कि - " राज्य वही जो कमजोरों के काम आये " |


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