[ घोषणा ]
* हमारे लीडरान और कार्यकर्ता पार्टी के संस्थापक या अध्यक्ष वगैरह का जन्मदिन नहीं मनाएंगे और पार्टी को व्यक्तिवादी नहीं बनने देंगे |
* हमारे नेता रोज़ा अफ्तार - होली मिलन कार्यक्रम में भाग न लेंगे | व्यक्तिगत , सामान्य तरीके से वे अपने त्यौहार मनाएं तो मनाएँ |
* सदस्य अपने पूरे नामों के साथ पंजीकृत होंगे जिस से उनकी जन्मना जाती के बारे में कोई भ्रम न रहे | यदि किसी ने सरनेम हटा दिया है या वह लगता ही नहीं था , तो स्वागत है | आशय , कि नाम के साथ कोई छेड़खानी नहीं होगी |
* हमारे दल में विपक्षी सर्व सम्मानित होंगे | उन्हें बैठकों आगे की पंक्ति में बिठाया जायगा | " आँगन कुटी छवाय " |
* राष्ट्रीय त्योहारों पर कोई अधिकारी भाषण नहीं देगा | दफ्तरों में झंडा फहराने के बाद अवकाश हो उनके मनोरंजन या गृह कार्य के लिए | सरकारी इमारतों पर झंडा फहराने का पाखण्ड करने और झाडे का अपमान करने की कोई ज़रुरत नहीं |
* सरकारी नौकरियों को अनाथाश्रम नहीं बनाया जायगा | कर्मचारियों को निष्ठां पूर्वक ईमान दारी से काम करना होगा |
* छात्रों का कोई युनियन नहीं होगा | शिक्षा घरों को राजनीति का वर्कशाप नहीं बनाया जायगा | छात्र समस्याओं के लिए मानिटर होंगे जो इस आशय के लिए बने प्रकोष्ठ के समक्ष ले जायेंगे | [ भविष्य गर्भस्थ ]
] गीतांश [
* ज्ञान से ओझल नहीं मैं ,
ज्ञान से बोझिल नहीं मैं |
* घर में भूजी भाँग नहीं है ,
देखो कितनी शान चढ़ी है |
* मरद मेहरारू मिललें तब्बे भइलीं बिटिया ,
मरद मेहरारू मिलिहें तब्बे होइहैं बेटवा |
[ग़ज़ल ] " कुछ कुछ "
* कोई सवाल उठाना जो तुझमें हो कुछ कुछ ,
कोई जवाब बताना तो तुझमें हो कुछ कुछ |
* ये है जम्हूरियत आज़ादियाँ ले लो सब जन ,
बड़ा नायाब खिलौना , इसे खेलो कुछ कुछ |
* मुझे पानी तो पिलाना ज़रा सा रुक जाओ ,
पहले वह आग दिखाओ जो तुझमे हो कुछ कुछ |
* अज्ञानी , अन्धविश्वासी या चाहे जैसी | भारतीय जनता का यदि कोई [ देसी / विदेशी ] अपमान करता है तो मुझे बुरा लगता है , गुस्सा आता है | यह मेरी लोकतांत्रिक समझ है | भले मैं स्वयं आने सहवासियों से बहुत खुश और संतुष्ट नहीं हूँ |
* दलित साहित्य वह साहित्य है जिसे पढ़कर यह जाना जा सके कि इसे किसी दलित ने लिखा है, यह किसी दलित का ही लिखा हो सकता है |
* बहुत पैसा है रे साम्भा , इन नेताओं के पास !
कहाँ से आया रे , यह इनके पास ?
* देखने योग्य है
कैसे सारे पाप
पवित्र हो जाते हैं ?
संतान जन्म के साथ
स्त्री की यौनिकता ,
पुरुष की कामुकता
पवित्र हो जाती है }
पवित्र हो जाती है
जनता जनार्दन
कुम्भ स्नान के बाद !
# #
* हाथ बढ़ाना
साथी हाथ बढ़ाना |
तो किसलिए ?
* जीते जीते भी
मन भर जाता है
उचट जाता |
* अंध विश्वास
मूर्खता का पैमाना
भारतीयों का |
* कोई समय
पढ़ाई करने में
नहीं गँवाया |:-)
* एक गिराया
एक एक करके
दसो गिराया |
* यदा यदा हि
ग्लानिर्भवतु देश
जनता त्रस्त |
* देखने से भी
दुश्मन डर जाता
आँखें तरेरो |
* आख़िरी बार
हम कब मिले थे
कुछ याद है ?
* तुम्हारे लिए
अनिवार्य चिंतन
तुम कौन हो ?
* मानना होगा
सबकी इज्ज़त है
लोकतंत्र है |
* रण में आओ
बहाने न बनाओ
पाओ / गवाँओ |
* सारे कुएँ में
यहाँ से वहाँ तक
भाँग पड़ी है |
* सारे कुएँ में ,
राज करना हो तो ,
भाँग डाल दो |
* दूध न दही
भंगेडियों के बीच
भाँग ही सही |
* मैं आप को बता दूँ | पाए (स्तम्भ ) कमज़ोर होंगे तो चार के चारो कमज़ोर होंगे | यह नहीं हो सकता की एक पाया मजबूत हो और तीन पाए लंगड़े चलें | या तीन पाए मजबूत हों और एक पाया उनके साथ घिसटे | इसी प्रकार मजबूत होंगे तो सभी पाए मजबूत होंगे | लोकतंत्र को पौष्टिक आहार मिलेगा तो कोई अकेला स्तम्भ नहीं सारे के सारे स्तम्भ सशक्त होंगे |
[ दो टूक ]
* पकिस्तान से हिन्दुस्तान दोस्ती के अलावा और कोई बात कर ही नहीं सकता, न युद्ध की न युद्ध के प्रतिशोध की | क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों जानते हैं की हिन्दुस्तान में पाकिस्तान विरोधी बहुत कम हैं और पाकिस्तान में हिन्दुस्तान समर्थक कोई नहीं |
[नोट बुक ]
* रीति नीति = वह नीति जो सांस्कृतिक रीतियों से संपोषित हो और वह रीति जो मानव वादी नीतियों से संचालित हो | ऐसा नाम किसी संस्था - संगठन - पार्टी का हो सकता है |
* याद आता है , मेरी एक संस्था हुई थी - सत्यनिष्ठां ( Honesty International ) Amnesty की तर्ज़ पर | एक थी - Duty Parlour ( कर्तव्य बोध ) Beauty Parlour की तर्ज़ पर | फिर एक - Polite Bureau ( विनम्र परिषद् ) Polit Bureau की तर्ज़ पर |:-) हा हा हा , सब मुझमे समां गए |
* विडम्बना की बात है कि लोक और लोक का तंत्र, जन और जन का तंत्र, हमारे साथ नहीं है | वरना कह तो हम सच ही रहे हैं | और अतिरिक्त विडम्बना यह कि हम इनके बगैर चल नहीं सकते | हम साधारण जन की उपेक्षा नहीं कर सकते | उनकी मान्यता के बिना हमारे काम का क्या मतलब ? चाहे हमारे विचार कितने ही सत्य हों ! तिस पर भी , लेकिन , हम कह तो सच ही रहे हैं |
( हम ईश्वर और धर्म के सन्दर्भ में बात कर रहे हैं | अभी समझ में आता है कि क्यों ज्ञान को दो श्रेणियों में बाँटा गया होगा - एक आम जन के लिए, शेष विद्वतजनों के लिए | पर यहाँ तो प्रबुद्ध जन भी सामान्य जन की आंड में हमारी बात नहीं सुनते !)
* हम अपनी बातों का समर्थन करवाने के लिए किसी भीड़ की प्रतीक्षा नहीं करते |
* विडम्बना की बात है कि लोक और लोक का तंत्र, जन और जन का तंत्र, हमारे साथ नहीं है | वरना कह तो हम सच ही रहे हैं | और अतिरिक्त विडम्बना यह कि हम इनके बगैर चल नहीं सकते | हम साधारण जन की उपेक्षा नहीं कर सकते | उनकी मान्यता के बिना हमारे काम का क्या मतलब ? चाहे हमारे विचार कितने ही सत्य हों ! तिस पर भी , लेकिन , हम कह तो सच ही रहे हैं |
( हम ईश्वर और धर्म के सन्दर्भ में बात कर रहे हैं | अभी समझ में आता है कि क्यों ज्ञान को दो श्रेणियों में बाँटा गया होगा - एक आम जन के लिए, शेष विद्वतजनों के लिए | पर यहाँ तो प्रबुद्ध जन भी सामान्य जन की आंड में हमारी बात नहीं सुनते !)
# आप समझ रहे हैं न ?
* मैं व्यक्तिवाची संज्ञा हूँ - Proper Noun . आप समझ रहे हैं न ? मैं अपने व्यक्ति का वाचक हूँ , व्यक्तिगत बातें करता हूँ | अब यह जो व्यक्ति है न ? वह कुछ भी हो जाय , कुछ भी हो सकता है, कुछ भी हो |
* जुगनुओं को कौन ढूंढता है ? सब चाहते हैं जुगनू ही उनके पास आयें | और जुगनू जो हैं वे अपने अंतरिक्ष के सूर्य होते हैं | आप समझ रहे हैं न ?
* निश्चय ही श्रेष्ठता को प्राप्त करना मनुष्य का उद्देश्य तो होना ही चाहिए | अब उसके साथ ब्राह्मण जोड़ना कितना ज़रूरी है , सोचना पड़ेगा | या देश काल के अनुसार कोई रणनीति बनानी पड़ेगी | क्योंकि एक बड़ा तबका ब्राह्मण वाद के खिलाफ है |
Doctrate के लिए मैं भी " पंडित " शब्द पर विचार कर रहा था | जैसे पं हरि प्रसाद चौरसिया |
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