बुधवार, 16 जनवरी 2013

Face Book 15 & 16 -01 -13


*******
*
*अंग्रेजी दवाखाना अंग्रेजी शराब से जब हमें परहेज़ नहीं है बल्कि उन्हें हम उत्तम मानते हैं और ज़रूरी हो गई अंग्रेजी भाषा हमारी नै पीढ़ी के लिए. तो फिर अंग्रेजी संस्कृति से ही हमें क्या दिक्क़त है?

*क्या गालियों में अभिव्यक्तियाँ संपन्न करने के लिए व्यक्ति  का अनपढ़ निरक्षर होना ज़रूरी है?
क्या पढ़े लिखे साक्षरों के लिए फेस बुक को मुक्त रूप से आवंटित नहीं किया जा सकता? सरकार अब अपने नियम कायदे अखबार और टी वी पर लगाये . यह तो हमारे निजी व्यक्तिगत पन्ने हैं.

* * यदि आपका कोई स्वार्थ नहीं होगा  तो आप के दुश्मन भी नहीं होंगे या कम होंगे.
* जाति चिपका,
 धार्मिक आदमी हूँ
तिस पर भी.
* जाति भी पूछो
अब तो हालत है
साधुजनों की.
* अकेला चना 
कुछ चल भी पाया
नहीं तो भला..
* शिक्षा  का अर्थ
बौद्धिक उत्कृष्टता 
नीतिमत्ता से.

*१. इस वैज्ञानिक युग में ईश्वर के रहने का कोई औचित्य तो नहीं बनता बस enchroachment  अन अधिकृत आवास है उसका.अतिक्रमण किये हुए मनुष्य के ह्रदय और बौद्धिक ज़मीन पर.
२. क्या किया जाये, सरासर बकैती है. और उसे भी शायद पता चल गया है कि ये बकैती का ज़माना हैफिर वह तो सर्व ताकतवर रहा है सदा से.
३.* क्या लड़कियां
सहमी हुई होंगी
 देश/दिल्ली की?
4. मूल्यवान है
आदमी की जान
किसी की भी हो.

*धर्म के नाम पर मानव भी लिखें और साथ में धर्म भी जोड़ें पूरा लिखें - मानव धर्म. यह सबको स्वीकार्य होना चाहिए. नास्तिकता हिन्दुत्व ईसाइयत  व्यक्तिगत हो जाएँ. सार्वजनिक बस  मानव धर्म .

*मानव धर्म 
ईश्वर क्या करेगा
कुछ भी नहीं 

*उवाच 
१. दुनिया में जो कुछ भी उपलब्ध है उसका न्यूनतम उपभोग ही मानव समाज को विलुप्त होने से बचाएगा. 
२. स्वीकारता हूँ/ होता तो है पुरानी चीजों से मोह/ उसे मारने/ मरते देखने का/ मन नहीं होता.
३. क्या  इसे  विडम्बना न कहें ? कि अंग्रेजों के शासन को तो गुलामी मान कर उनसे नफ़रत सिखाई जाती है दूसरी ओर अन्य शासन को भाई चारे के रूप में स्वीकार करने को कहा जाता है. 

*कुतर्क समीकरण 
सेक्युलरवाद =इस्लामवाद (अतः) इस्लामवाद=सेक्युलरवाद
मैं इस स्थिति पर बहुत पिनपिनाता था कि भारत में सेक्युलरवाद  मुस्लिम तुष्टिकरणवाद में क्यों बदलता जा रहा है? लेकिन  मैं तो खुश होने के तरीके ईजाद करने में  माहिर हूँ. मैंने अपने मन को सुझाव दिया कि सेक्युलरवाद को ठेठ सैद्धांतिक सेक्युलरवाद माना ही क्यों जाये? यदि इसे इस्लामवाद मान लिया जाये तो सारी मानसिक दुर्दशा दूर हो जाय. इसलिए अब मैं इसे इसी तरह से देखने की कोशिश करूँगा. और फिर तब मैं क्यों नहीं 'इस्लामी-समाजवादी राज्य' बनाने की वकालत करूँगा क्योंकि मैं 'सेक्युलर समाजवादी' संवैधानिक राज्य का कार्यकर्ता हूँ. मानसिक सुकून के साथ कुछ धार्मिक राजनीतिक काम भी करना चाहिए! आखिर बुद्धिजीवियों को उसमें क्या दिक्क़त है?
जिन्ना ने अपने प्रथम भाषण मैं सेक्युलरवाद की ही सलाह तो पाकिस्तान को दी थी. तो, अतः, पाकिस्तान अब जिस राह पर चल रहा है वह सेक्युलरवाद ही तो हुआ?  

*पागलपन की सवारी
में दो पागलपन पर सवार हूँ और सवार रहूँगा और यदि अग्रजों का आशीर्वाद तथा अनुजों का सहयोग रहा तो मैं इन पर आजीवन सवार रहते हुए  अंत में इन पर सवार  ही बैकुंठ धाम पहुँच जाऊंगा.
एक पागलपन ये है की भले जातिप्रथा में कुछ सच्चाई हो और आइन्स्टाइन न्यूटन जैसे बड़े बड़े वैज्ञानिक भी पुनर्जन्म ले करये बताएं की जन्म से मनुष्य शूद्र और ब्राह्मण होते हैं तब भी में उसे नहीं मानूंगा.
और दूसरे यदि ईश्वर साक्षात मेरे सामने खड़ा हो कर कहे- देखो यह हूँ में, तुम्हारा ईश्वर तो भी मैं उसे नहीं मानूंगा.
बड़ा मज़ा आता है कोई पागलपन जीने में.

*अंततः आदमी 
विश्वास भी मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- एक अंधविश्वास तो दूसरे दूसरे को कहा जा सकता है जागृत विश्वास . जागृत विश्वास  आपत्तिजनक नहीं कहा जा सकता .
आगे- जागृत विश्वास  के साथ भी आदमी को हिन्दू मुस्लमान होना पद सकता है जन्म के नाते.  तब दो तरह के हिन्दू मुसल मन हो सकते हैं.  अन्धविश्वासी हिन्दू मुसलमान  और जागृत विश्वासी जन्मना हिन्दू मुस्लमान. 
फिर जागृत आस्तिक जन्मना हिन्दू मुस्लमान को भी पूजा पाठ रोज़ा नमाज़ करना पड़ सकता है- समुदाय में रहने की विवशतावश. इसे में जागृत आस्तिक जन्मना हिन्दू मुसलमान भी केवल एक प्रकार के पाए जायेंगे- वे होंगे जागृत आस्तिक जन्मना दिखावटी हिन्दू मुस्लमान .....
पर उन्हें तब एक शब्द 'आदमी', वह भी अभी से क्यों न कहा जाए?

* कैसे हो सकता है वह ?
(सुना है गैर मुस्लिम के लिए अल्लाह का नाम लेना वर्जित है इसलिए अल्लाह के प्रति ससम्मान इसे यूँ लिखता हूँ-  )
जो एक  ईश्वर को मानते हैं वे  दुसरे ईश्वर को नहीं मानते.  जो दुसरे ईश्वर को मानते हैं वे तीसरे ईश्वर को नहीं मानते , बल्कि वे एक दूसरे का बराबर विरोध भी करते हैं. तब भी बाकायदा वे अपने जीवन जी रहे हैं. इसे मेंकैसे कहा जा सकता है की ईश्वर नामक किसी शै का अस्तित्व है? 

* धर्म नहीं है 
धर्म की लकीरें हैं 
पीटे जा रहे |

* बुद्धि विवेक 
जवाब दे रहे हैं 
धर्म होने से |
* बुद्धि विवेक 
साथ नहीं देते हैं
धर्मान्धता में |

* पुलिस चौकी 
न बन जाए देश 
यह देखना |

* नहीं हो पाता
आक्रोश का शमन 
कभी कभी तो |

* सब कुछ तो 
उघाड़ता अपनी 
कविताओं में |

* जंगल में है 
जन गण मन है 
संकट में है | 

* कल्पनाशील  
होकर भी होता हूँ 
यथार्थवादी |

* कहाँ से आये 
कहाँ चले जाते हो 
घनश्याम जी ?

* लूटने वाले 
प्रचार तो करेंगे 
[ विज्ञापन तो देंगे ]
बचो तो बची 
[ सतर्क रहो ]
#
* आयेंगी याद 
गीता की सच्चाईयाँ 
तब जानोगे ! 

* सवाल नहीं 
कोई जवाब नहीं 
मैं निरुत्तर |

* कोई तो गुण 
मुझमे नहीं है जो 
मैं इतराऊँ !

* चलो रे मन , कोई गुनाह करें ;
 उनके दर्शन तो हों अदालत में !

[ कहानी ]       " शरीफ कौन "
* लड़का लडकी , आपस में दोस्त | कोई सप्ताह भर एक साथ एक कमरे में रहे | सोये , उठे बैठे , खाए पिए , घूमे | 
जब विदा होने लगे तो लड़की ने महा - तुम बहुत शरीफ आदमी हो | इतने दिन साथ रहे पर तुमने मेरे साथ कोई ' व्यवहार ' नहीं किया |
लड़के ने जवाब दिया - क्यों , हो क्यों नहीं सकता था , यदि तुम चाहती और कहती तो | आखिर तो पुरुष हूँ मैं , चिर कुख्यात |
वास्तव में तो शरीफ तुम हो |
# # 

* आरक्षण देना गलत नहीं है | आखिर इतनी विविधता वाला देश है | आरक्षण / संरक्षण नहीं देंगें तो न संस्कृति बचेगी और न प्रगति होगी | आखिर रूमी दरवाज़ा ,इमामबाड़ों , राष्ट्रीय धरोहरों आदि को पुरातत्व विभाग संजोता है या नहीं ? इसमें क्या अनुचित बात है ? फिर हमारे साँपों को दूध पिलाने वाले, गाय गोबर पूजने वाले या नंग धडंग नागाओं को उन्हें उनकी तरह रहने की स्वतंत्रता क्यों नहीं देते , उन्हें क्यों चिढ़ाते हैं ? आप दुनिया भर के रहनुमा क्यों बनते हैं ? आप को जो बनना हो, जो बन सकें वह बनिए | वह तो हम भी देख रहे हैं कि आप क्या बन रहे हैं और कितने सभ्य हैं | फिर आप विश्व के सांस्कृतिक पहरेदार और सभ्यता के ठेकेदार क्यों बन रहे हैं | और आप जानते हैं , प्रगति के चलते जो आज लडकियाँ न्यून वस्त्रावृत्त हो रहीं हैं , उसका दर्शन हिन्दुस्तान ने बहुत पहले पा लिया था | अधिक सभ्यता का दावा न कीजिये | देखिएगा , सभ्यता का अगला पड़ाव ही नग्नता है | 

* जब मैं कहता हूँ कि मैं सवर्ण हूँ , या कहता हूँ कि सवर्णों को अपना जातिगत उपनाम हटाने का व्यायाम नहीं करना चाहिए | तो उसका उद्देश्य यह बताना नहीं होता कि मैं जातिवादी हूँ या यह आह्वान  कि हम जातिवादी हो जाएँ | दर असल यह बिलकुल उसी तरह की मजबूरी है जैसे मुझे बताना ही पड़ेगा कि मेरा नाम अमुक है और मैं फलाना वासी हूँ | मैं अमरीकी / अरबी / जर्मन / पाकिस्तानी नहीं हूँ | भाई , मैं हिंदुस्तानी , अंग्रेजी में इन्डियन हूँ | अब मेरा नाम / प्रदेश / हिन्दुस्तान चाहे जैसा भी हो | भारत महान या या फिर Slumdog - - - | 

* जो लोग दलित - सवर्ण संघर्ष के समर्थक हैं , स्वीकारते हैं , हवा देता हैं और उसमे शामिल हैं | वाही लोग हिन्दू मुस्लिम तफ़रके  के समय इससे पल्ला झाड कर साम्प्रदौइक सदभाव की बातें करने लगते हैं |

*  " हम सब दलित "
जिनकी स्थिति इससे अच्छी हो वे कृपया इसे ' LIKE ' न करें |

* जो मित्र हथियारों की संभावित बिक्री [ पाक से तनाव के सन्दर्भ में ] से चिंतित हैं , वे बताएँ - यदि हथियार नहीं बिकेंगे तो लडकियाँ अपनी सुरक्षा के लिए हथियार कहाँ से पाएंगी ? और अब तो उनके दोस्त लड़कों को भी बन्दूक - तोप रखना पड़ेगा अपने खाप पंचायतों से लड़ने के लिए !

* गज़ब की बात है या नहीं | कि कुछ न होकर भी आदमी हिन्दू बन जाता है ?  
[ शून्य वाद ]

* हम मानव धर्म के प्रचारक हैं | [ अलबत्ता ईश्वर विहीन ]

* सही है तो | इस विलुप्त परिभाषा को पुनर्जीवित करना पड़ेगा | ईश्वर का नाम बीच में घसीटने से बचना होगा |

* पश्चिम की नग्नता भी प्रगति के ' फलस्वरूप " है |:-)

* मेरे घर एक वृद्ध मित्र आये | ठंडक भी थी नए वर्ष का आगमन भी | तय हुआ आज अंडा सेवन किया जाय | तो आमलेट ? नहीं मुझे पसंद नहीं , मैं तो ब्वायल खाऊँगा - दूसरे बूढ़े ने कहा | आगंतुक संदीप बाबू , यद्यपि शाकाहारी , किन्तु वृद्धों की सेवा में तत्पर, चल दिए अंडे लाने | दूकानदार से बोले - एक अंडा आमलेट वाला और एक ब्वायल वाला | दूकानदार भी माजरा समझ गया | उसने दो पूड़ियों में दो अंडे अलग अलग दे दिया - बताकर यह ये वाला है और यह वो वाला | इधर नीलाक्षी और राकेश का आगमन | बूढ़ों के लिए अण्डों का ज्योनार बनाने किचेन में प्रस्थान | लेकिन हुआ यह कि उनसे अंडे बदल गए | एक ने आमलेट वाले अंडे को उबाल दिया , तो दूसरे ने ब्वायल वाले अंडे का आमलेट बना दिया | ज़ाहिर है न अंडे ब्वायल बने , न आमलेट बने | कैसे बन सकते थे , अंडे बदल जो गए थे गलती से ? दोनों खिसिया गयीं | क्या करतीं ? उन्होंने उस ब्वायल अंडे का आमलेट और आमलेट अंडे का ब्वायल स्वयं उदरस्थ करके पिछले दरवाजे से निकल गयीं | थोड़ी देर बाद संदीप जी भी निकल गए मुंबई | दोनों बुड्ढे प्रतीक्षारत हैं अभी उनके लिए अंडे बना कर ला रही होंगी राकेश और नीलाक्षी जी |


* हम तेरे प्यार में सार आलम खो बैठे ,
तुम कहते हो कि तेरे प्यार को भूल जाऊँ ?
[ पूर्वज यवनों को भूल जाओ , और दलितों को पूर्वजों के किये का पूरा बदला दो ? ]

* अभी तो नहीं | अभी तो जो भी , जितना भी सशक्तीकरण और सुरक्षा के प्रबंध कर दिए जाएँ | लेकिन कुछ दिन बाद यह स्थिति आनी चाहिए कि यदि लडकी बलात्कार की शिकायत लेकर घर आये तो माँ - बाप उसके गाल पर थप्पड़ जड़ें | - " नालायक , तुम्हारे साथ बलात्कार होने कैसे पाया ? क्या यही सहने के लिए हमने तुम्हे जना था ? मैदान हार कर आई है और बोलती है - बलात्कार हुआ ! "

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें