मंगलवार, 1 जनवरी 2013

चार शादियाँ हिन्दुओं में


* नव वर्ष = कुछ लोगों को ऐतराज़ होता है इस नव वर्ष पर | असली नव वर्ष तो 'वह ' है | मेरे ख्याल से न यह असली न वह असली | ये तो हमारी मान्यताएँ हैं | ज़िन्दगी का कोई भी पल जहाँ से ज़िन्दगी शुरू करे सार्थक और सकारात्मक वही नए वर्ष का पहला दिन है | सामान्यतः मैं किसी को बधाई नहीं देता , न इस दिन न उस दिन | लेकिन जब भी किसी का आ जाता है , स्वीकार करके सामान्यतः शुक्रिया - धन्यवाद - थैंक्यू कह देता हूँ | शुभ का आदान प्रदान किसी भी अवसर पर हाथ से जाने क्यों दिया जाय ?

* [ खुराफात ] इस्लाम तो बिलावजह शोर मचाकर बदनाम हुआ | चार शादियाँ तो , सच पूछो तो , हिन्दुओं में जायज़ ही नहीं , आवश्यक होनी चाहिए | क्योंकि इसमें चार वर्ण हैं - ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र | हर वर्ण के सदस्यों को हर वर्ण में एक शादी अनिवार्य हो तो जातिप्रथा खटाखट टूट जाय और भाई संदीप वर्मा मोद पाएँ, प्रसन्न हो जाएँ | इसलिए इस शुभ कार्य का प्रथम पुरोहित उन्हें बनाया जाना चाहिए | अब इसमें एक दिक्कत दरपेश हो सकती है | क्योंकि हिन्दुस्तान में लड़कियों का अनुपात कम है और यहाँ तत्कालीन अरब देश जैसी हालत भी नहीं है, जहाँ युद्धों में तमाम पुरुषों के हत हो जाने से स्त्रियाँ अधिकाधिक बच गईं थीं | ऐसी स्थिति में पंडित वर संदीप जी यह मार्ग निकाल सकते हैं कि कुछ स्त्रियों की डबल डबल शादियाँ करवा दें | लेकिन संभव है कि पुरुष होने के नाते वह इसकी ज़िम्मेदारी न उठायें, यद्यपि वह पर्याप्त स्त्रीवादी भी हैं ? तब यह हो सकता है कि कुछ महिलायें लाल पीली नीली आँखें निकाल कर आन्दोलन पर उतर आयें कि हम औरतों के लिए भी चार विवाह सुसंगत करो | अंततः पंडित जी को मानना ही पड़ेगा , और इस प्रकार जातिगत विद्वेष टूटने के साथ साथ स्त्री पुरुष समानता भी स्थापित हो जायगी | भारत वर्ष के दिन फिर बहुर जायेंगे | नए वर्ष के पहले दिन का कितना बढ़िया आइडिया है यह !

‎* हिन्दू [सवर्ण ] बिलावजह रामायण गाकर अपना गला फाड़ रहे हैं और मोहल्ले की नींद उड़ा रहे हैं | जब कि उन्हें हिन्दू [ अवर्ण ] मनुस्मृति के आधार पर गालियों से अभिसिंचित कर रहा है | ऐसी दशा में बिलकुल सीधे और सहज ढंग से बुद्धिमानी तो इसमें है कि सवर्ण जन मनुस्मृति को अपनी पावन पुस्तक घोषित कर दें | उसी का पठन पाठन और पालन करें | जब आखिर गालियाँ खानी ही हैं तो - -

‎* प्रश्न है - दलित जनों को क्या मनुष्य , मनुज कहलाने पर भी ऐतराज़ है ? असंभव तो नहीं , क्योंकि इनके साथ ' मनु ' जो लगा है |


* नारा है - " आरक्षण विरोधी दलित प्रतिनिधियों का बहिष्कार करो " | अरे बबुआ , यही तो ब्राह्मण या ब्राह्मणवाद कहता है ! इसी नाते तो इसने तुमको अछूत मनाया | तुम ठीक कर रहे हो , ऐसा ही करना पड़ता है | अब बेचारे नेता , यूँ भी दलित, ऊपर से दलितों द्वारा बहिष्कृत ! डबल अछूत | कहाँ जाओगे ?
करो विरोध और दो गाली ब्राह्मण को |  लेकिन रास्ता उसी का गहना पड़ेगा अंततः | देखा नहीं मायावती को ?

* घर पर आने वाले plumber , electrician या अनजान आगंतुक को चाय पिला तो सकता है , चाहे कुल्हड़ में पिलाये या चुल्लू से | वह भले उसे न छुए या गले लगाये | लेकिन दलित तो दलित को भी पानी न पिलाये, ब्राह्मण को तो दूर से ही भगा देगा | काम करवाएगा और खिसका देगा | उनके संस्कार ही ऐसे हैं, और जहाँ से संस्कार मिल सकते हैं उससे उन्हें सख्त नफरत है | बस एक गालियों की संस्कृति है जिसे वे खूब सीख रहे हैं , उन्हें सिखाया जा रहा है |   

* बलात्कार का माहौल , भावभूमि बनाती हैं बिंदास फ़िल्मी कलाकारान, और परिणाम भुगतना पड़ता है साधारण कन्याओं को | बाजारवाद के सम्बन्ध में भी यही कहा जा सकता है कि इण्डिया की संस्कृति का फल भारतवर्ष को धोना पड़ता है |


* अभी तक भारतीय जातियों / जनजातियों की जीवन शैलियों / प्रथाओं का मजाक विदेशी मीडिया ही उड़ाता था | कि देखो , यहाँ वे नग्न रहता हैं , ऐसे विवाह करते हैं , यह - वह खाते पीते हैं | लेकिन अब देश की कुप्रथाओं को उछाल उछाल कर उनकी खिल्ली अब हमारे महान दलित चिन्तक भी करने लगे हैं | और इसमें उन्हें मज़ा आता है , क्योंकि उस संस्कृति में वे स्वयं को शामिल नहीं समझते | यह देखो यहाँ नारी पूजते हैं , सीता की परीक्षा लेते हैं , गाय खाते थे ,कन्या को दान करते हैं , सांप को दूध पिलाते , होली - दीवाली - दशहरा इस इस कारण से मानते हैं , संस्कृत पढ़ते हैं , पापी राम को भगवान् मानते हैं , ज्ञानी रावण को जलाते हैं , इत्यादि अनंत | चलिए आशा करें , इनकी आलोचना से हिन्दुस्तान कुछ सुधर जाए ! 
विदेशियों को जहाँ भारत का मजाक उड़ना अच्छा लगता है , वहाँ हमारे आलोचकों को हिन्दुओं को अपमानित करने में बड़ा मज़ा आता है | खुश रहो अहले चमन , हम तो सफ़र [ suffer ] करते हैं |  

* ये दलित और पिछड़े सारे के सारे मानते ईश्वर को हैं , और दोष देते हैं ब्राह्मणों का ! जातियां यदि ब्राह्मण की बनाई होतीं तो कब की ख़त्म हो गयी होतीं | यह सार्वकालिक सामाजिक जीवन के अनुभवों और व्यवहारिकता पर दृढ़ता से आधारित है | इसे ये दलित ख़त्म तो क्या करेंगे , उसका पालन पोषण करते हैं और खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे |

* आगे कभी , शीघ्र ही , पुलिस तो प्रदर्शन करेगी [ लाठी भांजने , अश्रु गैस छोड़ने , पानी की बौछार करने आदि का ] , और आन्दोलनकारी उसे पीट पीट कर लहू लुहान कर देंगें |

* देखिये, बात करनी चाहिए साफ़ और जो सच लगे , भले उससे बदनामी मिले | मुझे मोमबत्तियाँ बिलकुल अविश्वसनीय लग रही हैं |


* लगता है जाति प्रथा समाप्त करना आप लोगों के वश का काम नहीं है | अब यह काम मैं करूँगा |


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