गुरुवार, 3 जनवरी 2013

निश्चयात्मा ( नास्तिक जन )


निश्चयात्मा
यद्यपि संशय / संदेह करना वैज्ञानिक प्रवृत्ति है और उसे एक सीमा तक हम स्वीकार करते हैं | लेकिन तदन्तर किसी तो समय हमें किसी निर्णय पर पहुँचना ही पड़ता है | तभी वह हमारा कोई लक्ष्य निर्धारित करता है और हम दृढ़निश्चय होकर किसी मार्ग पर प्रवृत्त होते हैं | सदैव संदेह में रहने वाला तो कहीं का नहीं होगा | संशयात्मा विनश्यते | इसलिए अपने जीवन (सर्वाइवल) के लिए आस्तिक को भी निश्चयात्मा होना पड़ेगा, और नास्तिक को भी संदेहमुक्त होना पड़ेगा | तभी मानुषिक आचरण (धार्मिकता) जीवित रह पायेगी | यह विनष्ट इसीलिये हो रही है क्योंकि आस्तिकों में भी आस्था का छद्म है | जिसे वे आस्था बताते हैं वह तो सर्वांगीण अनास्था है | तनिक से दुःख में या विपरीत स्थिति में वे घंटा घड़ियाल बजने - पूजा पाठ करने - हनुमान चालीसा गाने लगते हैं | या फिर वे पारंपरिक ढोंग का ही पालन करते हैं बिना मन के , बिना सच्ची आस्था और विश्वास के | और यही हाल नास्तिकों का भी है | उन्हें भी विज्ञानंसम्मत ज्ञान तो है कि ईश्वर नहीं है , लेकिन एक संदेह बना रहता है - अरे यदि कहीं वह हो गया तो - - ? इसलिए वे इस दिशा में कोई कार्य नहीं करते जिसके कारण इसका प्रचार प्रसार तो नहीं हो रहा है, यह विचारधारा लुप्तप्राय हो रही है जो कभी अपने उत्कर्ष पर थी | कम से कम भारतवर्ष में तो , लेकिन उस पर अधिक चर्चा संभव नहीं |
किन्तु हम नास्तिकता पर निश्चायात्माओं की तलाश और उनके निर्माण / विकास में सहायक होना चाहते हैं | जो भी जन, स्त्री - पुरुष, इस सत्य पर अपनी अंतरात्मा से दृढ़मत हों कि ईश्वर नहीं है और जो है उसका नाम ईश्वर नहीं है , उनका स्वागत है | फिर उनकी कल्पनाशीलता और रचनात्मकता पर तो कोई प्रतिबन्ध हो ही नहीं सकता | वे चाहें तो अपना अपना ईश्वर अपने अपने लिए नया नया ईजाद करें और हमें (आपस में ) बताएँ |     

नया मनुष्य ( नया अध्यात्म )
  * नया अध्यात्म विवेकानन्द का धर्म होगा , खलील जिब्रान का वचन , सुकरात का किस्सा , मीरा - कबीर का भजन , और छाप तिलक सब छीनने वाले खुसरो का कलाम | और - - और - - कहना न होगा - नीत्शे का ऐलान |
* नया धर्म होगा हर व्यक्ति का व्यक्तिगत , उसकी स्वयं अपनाई गई नैतिकता | वरना दृष्टव्य हैं कि मनुष्य की इच्छा के बगैर आज तक उसे कोई भी धर्म नैतिक नहीं बना पाया |
* नया ईश्वर भी होगा मनुष्य का स्वनिर्मित | ऐसा वह हमेशा ही रहा है किन्तु कुछ परिस्थितियों वश मनुष्य का ईश्वर मनुष्य से दूर होता गया , कुछ गढ़ों में क़ैद हो गया , और मनुष्य भी अपने ईश्वर के सन्निकट आने से वंचित रह गया, वह पाखंडों में फँस गया | अब नया ईश्वर वस्तुतः काल्पनिक होगा , साहित्यिक - सांस्कृतिक , मानववादी और मनुष्य के वैज्ञानिक मन के अनुकूल - किंवा मनोवैज्ञानिक | वह सृष्टि का प्रकृति होगा अन्यथा शून्य तो शून्य - वह ' कुछ नहीं ' होगा | 

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* हाँ , इसी प्रकार वह दामिनी की भी परीक्षा ले रहा था | फेल हो गई बेचारी ? वह बाबरी मस्जिद गिरने और गुजरात के दंगों में ही परीक्षा ले रहा था | लेकिन इस पर तो कुछ लोग हाय तौबा मचा रहे हैं, और कुछ लोग प्रसन्नता मना रहे हैं | सब अल्लाह की मर्जी ? संकोच आना चाहिए ऐसे ईश्वर की तरफदारी में | लेकिन आये कैसे ? सबसे पहले तो वह विनाश काले सामान्य संवेदना , साधारण बुद्धि का ही विनाश जो कर देता है | और इस प्रकार अपना साम्राज्य कायम करता है | 

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