* दिल्ली किसी के बाप की नहीं -[रामदेव]
$- नहीं -नहीं , ऐसा न कहिये | वह भारत के बाबा - दाईयों की तो है ही | तो यह आप की तो है | आप लोग आराम से उसका अमन -चैन मिटा सकते हैं , नींद हराम कर सकते हैं, दिन -रात के धरना -प्रदर्शनों से | #
* विधेयक बनाना ,लाना सरकार का काम है, या जन -प्रतिनिधियों का |लोकपाल कमेटी से अन्ना पंचारे को निकाल बाहर किया जाय |इनकी जिद है की इन्ही की सारी बातें मानी जाएँ , जब की हठधर्मिता लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं है | ##
* देश की सिविल सोसायटी को इस काम में मज़ा आने लगा है की कैसे सरकार की नाक में हमेशा दम किये रहा जाये | इसके लिए उनके पास पूरी फुरसत है,और क्षमता तथा संसाधन | लेकिन उनका यह मनोरंजन देश के लिए बहुत मँहगा पड़ने जा रहा है |###
*दरअसल ,अब सबके, ज़्यादातर पेट भरे हैं और जेब भी खाली नहीं |इसलिए अब उनका ध्यान राजनीति के ज़रिये नाम कमाने पर ज्यादा लग रहा है | इसमें कुछ ख़ास लगता भी नहीं है | तो ,यह काम शुरू होता है धरना -प्रदर्शन -जुलूस - नारेबाजी -अनशन - भूख हड़ताल से | फिर समस्याओं का हल कुछ हो न हो नेता के नाम का तो ध्यानाकर्षण तो हो ही जाता है | और क्या चाहिए ?####
* अन्ना हजारे जी ! अब आप धरने पर नहीं , अपने घर में ही बैठिये , प्लीज़ ! #####
* लोकतंत्र को इतना परेशान तो नहीं ही कीजिये, की वह देश छोड़ कर भाग जाय | वैसे ही ये आवाजें अभी चुकी नहीं हैं कि , हम लोकतंत्र के लायक नहीं हैं , यह हमारे खून में ही नहीं है | हम गुलाम ही रहने के योग्य हैं - डंडों से हाँके जाने के उपयुक्त | हमारा कोई लौकिक अनुशासन नहीं है ,न कर्तव्य निष्ठ | भारत वर्ष गुलाम रहने के लिए अभिशापित है | क्या सचमुच ऐसा ही है ? ######
* सबकी अपनी -अपनी सीमा है , सबको उसी में रहना चाहिए | उसे तोड़ने से बही घुसपैठियों को अपना रास्ता बनाने का मौका मिल जाता है | जी हाँ , सत्य और न्याय कि भी एक अवश्य सीमा है | पूर्ण निरपेक्ष कुछ भी नहीं | #######7
जनाब, आपने बिंदु तो सटीक उठाए हैं, मगर इस देश में लोग बुद्धि से नहीं दिल से जीते हैं
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