मंगलवार, 14 जून 2011

स्वाधीनता के दो पुजारी

* बुरा न मानिये तो अन्ना टीम भी एक नौटंकी में तब्दील हो चुकी है | ८ जून को वह बाबा रामदेव के समर्थन में धरने/अनशन  पर बैठे | सोचने की बात है , यदि उन्हें बाबा से बड़ी सहानुभूति थी तो उन्होंने बाबा को अपनी टीम में क्यों नहीं शामिल किया ? बाबा तो जंतर मंतर गए भी थे | यदि उनकी मांग वाजिब थी तो उसे भी अपनी मांगों में शामिल कर लेते ,तो बाबा को सामानांतर आन्दोलन रामलीला मैदान में न करना पड़ता , न ४ जून की अनावश्यक घटना होती |##

* एक बुज़ुर्ग दिवंगत दार्शनिक शायर की कविता है कि :
" जहाँ स्वाधीनता के दो पुजारी युद्ध करते हों , वहां समझो अभी बाक़ी ग़ुलामी की निशानी है |" 
वहां कवि का आशय गाँधी - सुभाष के बीच मतभेद , तनातनी से था , जब कि दोनों ही भारत की आज़ादी के लिए कृत संकल्प थे | अब वही बात इन दोनों योद्धाओं पर लागू नहीं होती क्या ? ###
  
* सब व्यवसाय है , व्यापार | सरकार खादी वस्त्रों पर सब्सिडी देती है , उसी प्रकार उसने अन्ना को सरकारी  कार्य में नियुक्त कर लिया , भले अब वह सरकार के गले की हड्डी बन गयी | रामदेव , चूंकि स्वयं सफल -समृद्ध उद्योगपति हैं ,इसलिए उसने इनसे कोई पी.पी.पी. नहीं किया | ये सब व्यापार के लक्षण हैं या नहीं ?##

* मनोरंजन के लिए एक बदमाशी की बात यूँ ही दिमाग में सूझ  रही है | अपनी कुछ ऐसी ही हवाई मांगों को लेकर  बाबा के तर्ज़ पर ,आगे के समय में कोई टाटा या बाटा कहीं अनशन पर बैठ जाएँ , मसलन इसलिए कि उन्हें उद्योग के लिए ज़मीनें दी जाएँ , निर्यात का शुल्क माफ़ हो , या कानून बनाकर हर सरकारी कर्मचारी को बाटा के जूते पहनना अनिवार्य किया जाय , तो कल्पना करने  में क्या हर्ज़ है कि तब कैसी स्थिति होगी ? ####    

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