मंगलवार, 14 जून 2011

असभ्य सिविल सोसायटी

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    • यह सब इस्लाम के आने की पूर्व सूचना है | वहां बाबा दाई , आंत्रिक -तांत्रिक के लिए कोई जगह नहीं होती , सिर्फ एक अल्लाह के अलावा , और उसका एकमात्र, अंतिम सन्देश वाहक |
    • जब दो पक्ष एक साथ बात चीत  के लिए बैठते हैं तो कोई पक्ष यह नहीं कह सकता कि  उसकी हर बात दूसरे पक्ष को अनिवार्य रूप से मान ली जाय | लेकिन हमारा असभ्य सिविल सोसायटी लोक पाल बिल का मसौदा करने में यही कर रहा है  | वह जिद पर अड़ा है कि प्रधान मंत्री और मुख्य न्याया धीश को लोकपाल के अधीन लाओ | इसके खतरों से तमाम अन्य बुद्धिजीवी  आगाह कर रहे हैं कि लोकपाल को कोई महा शक्ति मत बनाओ | लेकिन यह अन्ना कम्पनी को समझ नहीं आता | इस से सिद्ध होता है कि ये लोकतान्त्रिक सोच के लोग नहीं हैं | इन्हें लगता है मानो कल को ये ही कल को लोकपाल बनने वाले हैं | कमेटी के बाहर का एक नागरिक , मैं स्वयं इनकी मांग और हठ धर्मी से सहमत नहीं हूँ , तो क्या मैं सभ्य नहीं हूँ ? इनकी यह हालत तब है जब कि इनका कमिटी में लिया जाना ही गलत है [जैसा कि , इनसे कम नहीं पढ़े लिखे विशेषज्ञ  बताते हैं ] , और इनके पास कोई कानूनी ताक़त नहीं है | सोचने की बात है कि कल को यदि सचमुच यही लोकपाल हो गए तो सारी विधायिका , न्याय पालिका , कार्यपालिका की नाक में दम कर देंगे | सचमुच ये तानाशाह लोग हैं , जो बिना चुनाव लड़े बैक डोर से सत्ता हथियाना चाहते हैं | इसीलिये ये लोकपाल के लिए असीम शक्तियों की मांग कर रहे हैं | यह एक तरह से सिविलियन कूप [coup] होगा फौजी कब्ज़े का प्रशांत स्वरुप |भ्रष्टाचार शब्द तो इनके लिए बस आंड  है,जैसे वी  .पी. सिंह ने राजीव गाँधी से सत्ता हथियाने के लिए बोफोर्स का  बहाना लिया था  और बाद में कन्नी काट कर मंडल लागु करने में देश को उलझा दिया |  इसलिए ज़रूर ही   इनकी मंशा को पहले ही भाँप कर विनष्ट किया जाना चाहिए | मैं माँग करता हूँ कि इन्हें कमेटी से निकाल बाहर किया जाय | इनकी जगह पर या तो दूसरे सभ्य नागरिक  रखे जाँय , या फिर सभी राजनीतिक दलों के एतराज़ को देखते हुए सरकार स्वयं बिल तैयार करे | इनके अहंकार की हास्यास्पद हालत यह है  कि इन्हें  अपने अलावा किसी और का देश भक्त होना स्वीकार ही नहीं है | इसलिए ये चाहते हैं कि देश के मालिक यह अकेले बनें , चाहे वह अन्ना हों या बाबा रामदेव |कोई साधारण नागरिक भी ज़रा इनकी हैसियत को चुनी हुयी केन्द्रीय सरकार के मुकाबले रखकर आँक सकता है और इनके दुराग्रह  को  भी  तब ठीक से समझ सकता है | पर दिक्कत यह है कि इस पेंच को तमाम लोग समझते नहीं और लोकतंत्र की हवाई उड़ान में हैं , जिसकी उन्हें कोई समझ नहीं है | 
    • अब इनका यह कुप्रचार जारी है कि ४ जून  को जलियाँ वाला बाग़ हो गया  और हालत इमरजेंसी की है | पहले तो मैं यह गलत बात ही कह दूं कि यदि इसके लायक व्यवहार करोगे तो ऐसा शासन पाओगे ही   | लेकिन यह तो देखो कि जनमत के दबाव का सम्मान करते हुए ही कानून से परे जाकर गैर सरकारी सदस्यों को कमेटी में लिया | अन्धविश्वासी भक्तों का भी आदर करते हुए चार मंत्रियों  ने बाबा रामदेव से बात की , जिसके लिए सरकार ने भीतर -बाहर लांछित भी हुयी | और क्या चाहते हैं ? आप चाहते हैं कि सरकार कुछ काम न करे , पर तमाम लोग सरकार को सुपुष्ट और सक्रिय देखना चाहते हैं , क्योंकि यह उनकी सरकार है , जिसकी कमजोरी का अर्थ है - गुलामी | आप को दिख नहीं रहा है कि आप देश को किस तरह गुलामी में ढकेलते जा रहे हैं |##


    • एक साम्य दिख रहा है नक्सलवादियों और गाँधी वादी कार्य शैली में | माओवादी भोले - भाले जंगल वासियों को अपने काम के लिए तैयार करते , उनका इस्तेमाल करते हैं | सभ्य आन्दोलनकारी किसी सीधे -साधे  गाँधी वादी को पकड़ कर उन्हें आने काम के लिए तैयार करते , उन्हें भूखो मारने का जतन करके उनका इस्तेमाल करते हैं | नतीजा - मरना तो है जंगल वासी को , या गांधीवादी  को | गौर करें , गैर गाँधीवादी बाबा तो मंच से कूद कर भाग जायेंगे | ##
    • ऐसा ही साम्य एक दिशा में और भी है | जैसे N .G .O . लोग काम तो पिद्दी भर करेंगे , पर रिपोर्ट लिखेंगे लम्बी चौड़ी ,खूबसूरत फोटुओं -चार्टों - डिजाइनों के साथ , वैसे ही सिविल सोसायटी [हैं तो एन जी ओ ही] सरकार से अपने वाक् -कर्म को भी वीडिओ ग्राफी  द्वारा अपना प्रचार करना चाहती है | ऐसे में , चाहे फिर मुझे कोई गाली ही दे , मुझे इस्लाम की याद आती है , जहाँ इस तरह फोटोग्राफी , नाच -गाना - बजाना सख्त मन है | मैं विवश हूँ सोचने पर कि क्या कोई समाज बिना किन्ही प्रतिबंधों के चल सकता है ? वह प्रतिबन्ध चाहे धर्म और ईश्वर का हो [जो कि अब रहा नहीं], या फिर राज्य की तरफ से हो [ जिसे तो हम हलुवा -पूड़ी बनाने पर तुले हैं]  |  ###          

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