* केंचुए की तरह यदि आप शरीर को ऐंठना जानते हैं , तो क्या समझते हैं आप सरकार को भी ऐंठ लेंगे ? #
* गलतियाँ तो सरकार ने की ,पर अब उसका स्टैंड सही हुआ है | जैसे मनमोहन का बयान कि इसके अलावा और कोई चारा नहीं था , निर्णय कि ३० जून तक लोकपाल विधेयक लायेंगे चाहे कोई आये या न आये | अब सबको अपनी हैसियत पता लग जायगी , यदि सरकार इस पर दृढ़ रह पाई तो | ##
* सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर क्या विचलित होना | उसे हक है जवाब मांगने का ,स्थितियों को समझने का | उन्हें बताया जायगा और वे मान जांयगे | ###
* रामदेव को अपनी भीड़ पर नाज़ होगा | तो क्या कांग्रेस के पास नहीं है ? बिना किसी ताक़त के वह सत्ता में है क्या ? वामपंथी सरकार होती तो अपना काडर इनसे भिड़ा देती | तब क्या होता ? ####
* जूता प्रकरण एक संस्कृति का प्रश्न है , राष्ट्रीय व्यवहार का | इसकी सख्त निंदा की जानी चाहिए | रामदेव की की बचकानी मांग के तर्ज़ पर कहें तो उसे मृत्यु दंड अथवा आजीवन कारावास दिया जाना चाहिए , जिस से फिर किसी की हिम्मत न हो | सवाल किसी नेता के अपमान का नहीं है राष्ट्र की इज्ज़त का प्रश्न है | आखिर हम क्या दिखा रहे हैं विश्व को | अब संस्कृति -निष्ठ भाजपा देखिये क्या कहती है ? उनका एक मूर्ख मुस्लिम नामधारी सदस्य इसे जनता का स्वाभाविक गुस्सा बता रहा है ,मानो जैसा नरेंद्र मोदी ने गुजरात में होने दिया था | सारे के सारे भारत के गैर ज़िम्मेदार पार्टियों को आगाह करना कर्तव्य समझता हूँ की समझदार सांस्कृतिक राजनीति करें | आज उनके ऊपर जूता पड़ा है तो कल तुम्हारे ऊपर निश्चित पड़ेगा , क्या औचित्य सिद्ध करोगे | और यदि ऐसी गिरी हुयी राजनीती करोगे तो देश शीघ्र ही गुलाम होगा और उसका ज़िम्मेदार कोई यवन -अँगरेज़ नहीं ,तुम होगे | इसलिए कहो की हिंसा का रास्ता गलत है , जूता मरने वाला भी और जंतर मंतर ,रामलीला मैदान पर निजी दुराग्रह करने वाले भी | कोई देश का तानाशाह बन ने की कोशिश न करे तो देश बचेगा | #####
* सत्ता और सरकार भी हमारी सामाजिक सांस्कृतिक - आध्यात्मिक कृतियाँ हैं जैसे की ईश्वर | इसका भी एक निश्चित आदर करना हमें अवश्य सीखना चाहिए | अराजकता में मज़ा लेते लेते धीरे -धीरे यह पर - राज्य में तब्दील हो जाता है | ######
* अंत में -
कोई कांग्रेस , भाजपा , समाज -मार्क्स वादी , कोई संघ , लीग - तबलीग माने न माने , मैं , भारत का एक अदना सा नागरिक स्वीकार करता हूँ कि सारी गलती मेरी है जो अपने सहवासियों में वैज्ञानिक -तार्किक -मानव वादी चेतना नहीं भर पाया | उनका मानसिक -सांस्कृतिक विकास नहीं कर पाया | जिसका नतीजा यह हुआ कि कि एक ताईक्वांडो जैसा योग शिक्षक [ संत तो वह , खैर , कतई नहीं है | इसी समय इस गंदे माहौल में भी तमाम संत आस -पास हैं , जिनका वह धूल भी नहीं है ] इतने सारे लोगों की अविवेकी बुद्धि में घुस कर उसे खोखला बना देता है और उसका चिंतन शक्ति ' चूस ' लेता है | और राम लीला मैदान में उन्हें रावण सरीखा निर्देश देता है और इतने सारे लोग हिप्नोटाइज - मेसमराइज होकर उसके नारे लगते हैं | हमने देश को वज्ज्ञानिक विकास तो दिया , पर उन्हें वैज्ञानिक मानस से लैस नहीं कर पाए | मैं मानता हूँ की हम इस दोष के लिए सजा के पात्र हैं | कोई तो मुझे दंड देने के लिए आगे आये , कोई तो म्याऊँ का ठौर पकड़े ! ####### ,
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