* [कविता ]
समुद्र में ही
घर बना है ,
समुद्र से
कैसे लड़ेंगे ?
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* [अनुभव ]
भारत माता की जब हड्डी चूसनी हो , तब 'भारत माता की जय 'से अच्छा कोई नारा नहीं हो सकता | सुरक्षित और सम्मान जनक | जो इसे जितना जोर से बोलता है,समझिये वह उतना ही देश सेवा के नाम पर स्वयं सेवा के मार्ग पर अग्रसर है | साफ़ कहूँ कि रामदेव,सेवक संघ , विहिप ,भाजपा , शिवसेना आदि के कार्य राष्ट्र हित के प्रतिकूल हैं , किंवा वे राष्ट्र के कारकुन हैं ही नहीं, और केवल कुछ व्यक्तियों , बासी , सड़े- गले विचारों के अहंकार के पोषक है | स्पष्टतः, देश के लिए घातक , विभाजक और प्रतिगामी हैं | और मज़े की ऐतराज़ की बात यह कि वे स्वयं अपने उदघोषणाओं का पालन नहीं करते | यथा कहेंगे -हिन्दू संस्कृति , फैलायेंगे असहिष्णुता, घृणा ,हिंसा , बैर ,किंवा अधर्म के मन्त्र | नाम लेंगे सादे , नैतिकता पूर्ण जीवन का , रहेंगे रंगमहलों में , बटोरेगे धन येन - केन- प्रकारेण | चिल्लायेंगे हिंदी -हिन्दू -हिंदुस्तान , भेजेंगे अपने बच्चों को अमरीका -ब्रिटेन अंग्रेजी पढ़ने - बड़ी नौकरियां करने के लिए | हिंदुस्तान को अपनी चेरी समझेंगे और दलितों ,कृषक- मजदूरों -मेहनतकशों को , जो कि असली हिन्दू हैं , भारत का राज्य नहीं देंगें | सब छद्म , दोमुहाँ आचरण | और बुद्धि से ? कुछ न कहिये | बिलकुल पैदल [हाँ , यह उनके सामूहिक पार्टी / दल के लिए एक अच्छा नाम हो सकता है, पुनः झूठा ही सही ] | अब ऐसे लोग देश की क्या सेवा, उसका क्या भला करेंगे ? कहावत है न ! नादान दोस्त से दानादार दुश्मन अच्छा | अतः ,समझदारी इसी में है कि इन दोस्तों से दूर रहा जाय | ##
* [ टीका ]
सुषमा स्वराज के नृत्य पर भला हमें क्या ऐतराज़ ? हम संगीत -नृत्य -कला कौशल के पक्षधर हैं ,और चाहते हैं कि पूरा देश नाचे - गाये | पर वही छद्म आचरण वाली बात ! अभी रामदेव के लिए रो रही थीं , अभी नाचने लगीं , और वह भी जैसा ऊपर हमने कहा -देश भक्ति के गीत पर, अपनी पार्टी को देशभक्त सिद्ध करने के लिए | क्या इसे नारी चरित्र कहा जाए ? नहीं , सुषमा मामूली नारी नहीं हैं | फिर यह तो हमारी नहीं उनकी 'नैतिकता ' की व्याख्या के विपरीत है - सार्वजनिक स्थल पर नारी का नाच ! बाल /राज ठाकरे उन्हें क्षमा कर दें तो हमें क्या ऐतराज़ ? हमें तो अच्छा लगा | ###
* [टिप्पणी ]
आजकल एकाएक पता नहीं कहाँ से मेंढक की तरह भारत माता पर जान देने वाले इतने सारे लोग निकल आये ! यहाँ तक कि बालकृष्ण भी गोबर्धन उठाकर नेपाल से भागकर भारत को बचाने आ गए हैं | अब भला हमारे मुल्क का कौन बाल बाँका कर सकता है ? पर यक्ष प्रश्न तो यह है कि अब तक कौन लोग देश को दीमक की तरह खा रहे थे ? कौन थे जो भ्रष्टाचारी थे ? एक शायरा का शेर याद आ रहा है :-
" मैं अपने खून के धब्बे कहाँ तलाश करूँ, तमाम[सभी] लोग मुक़द्दस लिबास [पवित्र वस्त्र ]वाले हैं | "
है कोई आश्वस्ति देने वाला जवाब किसी के पास ?
ऊपर से हास्यास्पद तो यह है कि जब जान देने का अवसर आता है तब सभी खिसक लेतें हैं | रामदेव कूद कर नारी वेश में भाग खड़े हुए , सुषमा जी जान देते देते नाचने लगीं, बालकृष्ण कुछ दिन गायब रहे ,अब रो - रोकर जान दिए दे रहे हैं | और अन्ना जी पर तो तरस खाना पड़ेगा | अच्छे - भले अपने दुग्ध विहार में पड़े थे , अब ऐसे सभ्य गिरोह के हत्थे चढ़ गए हैं जो उनसे अब जब - तब भूख हड़ताल कराकर मार डालेंगे | लेकिन रुकिए , तब भी अन्ना कहाँ मरेंगे 'नया गाँधी' मरेगा | कितनी बार गाँधी को मारोगे भाई ! मरना हो तो कोई अपनी जान दो ,यदि तुम्हारे पास हो तो,| वह भी अपने मन से ,किसी के उकसाने पर नहीं , न किसी गाँधी पुरस्कार की लालच में |सचमुच आजकल अनेक गाँधी और शहीद भगत सिंह मैदान में हैं | अपमानित करते हैं वे विभूतियों को स्वयं को उनके समकक्ष रखकर | शर्म हमें आनी चाहिए जो हम इनके साथ हो लेते हैं |
देखिये अन्ना कहते क्या हैं ? "लाठी से डरना क्या ? " मानो सरकार का यह शौक है कि वह इनको मार गिराए |बुजुर्गवार ,कुछ तो विश्वास भी दो सरकार को और बचपना न दिखाओ | उधर रामदेव भी अपनी हत्या की साजिश बताकर जन सहानुभूति अर्जित करना चाहते हैं , जो उन्हें नहीं मिलेगी क्योंकि उनकी जान की कीमत इतनी है ही नहीं उनका अपने बारे में अनुमान गलत है | क्षणिक उत्साह -उत्तेजना में एक बार लोग इकठ्ठा तो हो गए , अब वे अपने घरों में तुम्हारा सिखाया योग स्वयं कर लेंगे , आसन लगायेंगे | वे अपनी बीमारी का इलाज करेंगे , न कि तुम्हारे पीछे हर बार अपने हाथ होम करेंगे |
सोचनीय बात है कि कोई आन्दोलनकारी यह तो सोचता ही नहीं कि वह अपने को राज्य के रूप में रखकर देखे | उन्हें भी कभी शासन चलाना पड़ सकता है | तब पता चलेगा आटे-दाल का भाव | चिंता का विषय है कि गैर जिम्मेदाराना बातों और अतिशयोक्तियों से अखबार और चैनेल भरे पड़े हैं | बातों में हिमाकतों की भी कोई सीमा नहीं |
नवाचारी बालकृष्ण मानहानि के अपराध में जेल में होते यदि सरकार सचमुच सरकार होती , और न्यायपालिका सख्त | रामदेव तो थे ही , यह कामदेव सरीखा चेहरे वाला बोलता है कि सरकार भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए हमारे ऊपर इलज़ाम लगा रही है |सचमुच यदि सरकार बचाती न होती तो वह और उसके गुरु कहाँ होते , यह हम भी जानते हैं | आखिर लोग इस तरफ ध्यान क्यों नहीं देते कि भ्रष्टाचार सरकार नहीं करती " लोग " करते हैं ,उनमे वे भी शामिल हैं जो योग करते हैं , और वे भी जो एनजीओ चलते हैं | पर सरकार कानून के दायरे में सीमित अधिकार के वश में होती है , और उसे बाँधने वाले , रोकने वाले , पीछे खींचने वाले बहुत हैं , साथ देने वाले बहुत कम | वह कोई जादू की छड़ी नहीं ,न नृशंस शासक | यही वजह है की आतंकवाद बढ़ा और भ्रष्टाचार भी | यह भारत की आत्मिक - आंतरिक नियंत्रण- अनुशासन के लोप का भी प्रश्न है | यह तो योग की मूल परिभाषा के अन्दर का विषय था ! तुमने क्या किया ? मंच से तो भाग आये , ज़िम्मेदारी से भाग कर कहाँ जाओगे ? केवल तुम्ही योग नहीं जानते हो | तुम तो खैर जानते ही नहीं , तुम केवल कुछ आसन जानते हो | और हम कोई सरकार नहीं है जो तुम्हारी बन्दर घुड़की से सहम जाएँ | हम वे जोगी हैं जो बीस रूपये रोज़ पर गुज़ारा करते हैं , चार्टर विमान से दिल्ली नहीं जाते | हमें पता है कि गुरुओं का काम व्यक्तियों को सही रास्ते पर लाना होता है | इस कर्तव्य को तुमने कुछ पूरा किया क्या ? तुम्हारे खिलाफ क्या कार्यवाही की जाय, जो उल्टा चोर कोतवाल को डांट रहे हो ? लेकिन छोडो , वह पुराने संतों का काम था | आज के बने साधु अपने गुलाम शिष्यों के कंधों पर चढ़कर [सीकरी के] मंच पर चढ़ना चाहते हैं , और मृत्यु के भय की कल्पना मात्र से काँप , शिष्यों के कंधों पर पाँव रखकर नीचे कूद जाते हैं |" भारत कब मर्दों की भाषा बोलेगा " का नारा गढ़ने वाला स्वयं शिखंडी का रूप धारण करके अपनी जान बचाता है ,और अनुयायियों को त्रास सहने के लिए पंडाल में छोड़ देता है | फिर अनर्गल प्रलाप करता है | क्योंकि वह जानता है कि जनतांत्रिक सरकार किन्ही कारणों से कमज़ोर होती है , कमज़ोर है | तभी प्रायवेट सेना बनाने का हौसला पाला जाता है |आत्मरक्षा के नाम पर | नक्सालियों से जनता की रक्षा या आत्मरक्षा की दुहाई लेकर क्या रामलीला मैदान या जंतर -मंतर पर धरने पर नहीं बैठा जा सकता था ? लेकिन नहीं , न इनको नक्सालियों से खतरा है, न नक्सलियों को इनसे | ये एक दूसरे के प्रतिपूरक हैं | क्योंकि इनके शुभ कार्यों से सरकार कमज़ोर होती हैं , जो कि ये चाहते हैं | पर निरीह जनता की तो उसकी चुनी हुयी सरकार ही हमवार -मददगार होनी है | वरना ये तेंदुए उसे खा जाने के लिए हैं |
एक और भद्र शोषा-यती है जो अपना कुछ न होते हुए , असंवैधानिक होते हुए सरकार को नाकों चना चबवाये हुए है | एक मसौदा कमिटी में रखे गए थे तो सरकारी सदस्यों के साथ ड्राफ्ट बनाते | लेकिन वे तो सरकार के बाप हैं और अपनी ही बात मनवाएंगे , कैमरों के सामने अपनी वक्तृता से देश का मन मोहेंगे | भले तमाम अन्य बाहर के लोग चेताते रहें कि यह गलत है | पर वे तो अब तानाशाह , राजा बाबू ,"साला मैं तो साहब हो गया " |
मैं एक लघुतर साहित्यिक कार्य कर्ता अनेकानेक उग आये कथित क्रांतिकारियों को आगाह करता हूँ कि शुक्र मनाओ कि तुम लोकतान्त्रिक शासन में हो , इसलिए ऐसा सब कर ले जा रहे हो | ख्याल रखो , यदि देश कमज़ोर हुआ या गुलामी की गिरफ्त में आया तो इसके तुम ज़िम्मेदार होंगे, जो बहुत अपने आप को काबिल समझ रहे हो [जी हाँ , अन्ना भी सुनें ] |
चारो तरफ तमाम दुश्मन ताकतें हैं , और वे बड़ी शातिर और सशक्त हैं | उनकी बड़ी टेढ़ी नज़र हिंदुस्तान पर है , जिसकी भक्ति के नाम पर तुम राजनीति की रोटी सेंक रहे हो | ####
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