बुधवार, 22 जून 2011

हिजाब और नक़ाब


* लड़कियाँ खूब हिजाब कर रही हैं । बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर एक मित्र ने फेसबुक पर लिखा कि समाधान शरीयत पालन करने में है। हो सकता है इसमें सच्चाई हो , अन्यथा यदि नारी मुक्ति हर हाल में  उन्मुक्तता ही  चाहती है और कोई बंधन उसे मंजूर नहीं ,तो फिर वह उसका खमियाज़ा भी भुगते, कीमत अदा करे या फिर उनसे निपटे  ।
इसी प्रकार राज का काज भी गुप्तचर सेवाओं के बल पर चलता है , यानी नक़ाब से । सब छिन्न भिन्न कर दिया अँग्रेज़ी डिमॉक्रेसी ने पारदर्शिता के नाम पर । फिर आर.टी.आई ने तो प्रशासन की एब्सट्रैक्ट कला को मूर्तिकला में तब्दील कर दिया , चाहे चिड़ियाँ बीट करें या बच्चे पेशाब से तर ।
सोने की चिड़िया
भला कोई बताए, नब्बे किलो लोने में कितनी सोने की चिड़िया बनेंगी और तीन सौ किलो चाँदी में कितनी चाँदी की चिड़िया । अब कोई क्यों नहीं कहता कि देश की सोने-चाँदी की चिड़िया तो बाबाओं के शयन कक्ष में क़ैद है । और यह कि यदि मठों-मंदिरों की संपत्ति यदि सार्वजनिक हो जाय तो भारत का एक रूपया अमरोका के पचास डॉलर के बराबर हो जाय ।

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