* बहुत दिनों से यह माँग चल रही है की जन प्रतिनिधियों का कई न्यूनतम qualification होना चाहिए | फिर ऐसी क्या मजबूरी और यह क्यों ज़रूरी हो कि विरोधकर्ता आन्दोलनकारियों की योग्यता हाई स्कूल से आगे न बढ़ने पाए ? चाहे वह अन्ना हजारे हों या बाबा रामदेव |##
* मैया मैं तो चन्द्र खिलोना लैहों |
यही हाल है बाबा रामदेव का | बचकाना आन्दोलन , बचपने की माँग | वरना माँग करने वाले को कम से कम यह तो पता होना चाहिए कि इसे पूरा की हैसियत सरकार में है भी या नहीं | राजनीति करने से पहले कुछ राजनीति की समझ भी तो पैदा करनी चाहिए , या केवल भक्तो के सामने जोर -जोर से चिल्ला कर बोलना और उनसे नारे लगवाना ही पर्याप्त है | गाँधी जी की समाधि पर फूल चढ़ाते हो तो यह भी जानो कि गाँधी जी कितना पढ़े थे , कितने योग्य थे , उनके प्रशंसक किस श्रेणी के लोग थे ? गुरुता कुछ नहीं और चल दिए गुरु बन ने ! अब जो लोग गठिया ,सुगर ,साइटिका, रक्त चाप से पीड़ित हैं और आप से इलाज करने आये हैं वे पुलिस से भिड़ने में कितना समर्थ होंगे ,यह भी तो सोचना चाहिए था |
सीधे प्रधान मंत्री का चुनाव , तकनीकी डाक्टरी की लोक भाषा में शिक्षा , मृत्यु दंड पर विचार , विदेशी बैंक में पैसा क्या कोई नया विषय है ? इस पर बहस चल रही है , पर क्या किसी सरकार के पास लोकतंत्र में इतनी ताक़त है कि वह एक लाइन के आदेश से इसे लागू कर दे ? और आप इसके लिए बचकाना जिद लिए अनशन पर बैठे हैं | इन विषयों पर आप जनता के बीच जाइये , वैदेशिक नियम -प्रोटोकोल समझिये और बताइए कि कैसे हो सकता है यह सब ? पर आपने तो अपने और केवल अपने को पूरा देश समझ लिया और अपने दिमाग कि खब्त को पूरे देश की मांग , तो यह कैसे संभव है ? इतनी सारी मांगों की सूची के साथ आप यह कहना तो बिल्कुल गलत है कि आप भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं | ऐसा होता तो आप अन्ना के ही साथ होते | उसी समूह को अपनी मांगों की प्रासंगिकता समझा लेते तो हम भी समझते कि आप कुछ गंभीर हैं, आप की बातों में दम है | पर आप तो उन्ही की हवा निकलने लगे , उनका सहयोग क्या करते |कारण , आप तो व्यक्तिगत महत्वाकांछा लेकर केवल अपना क़द बढ़ाना चाहते थे | ऐसा संभव नहीं होता लोकतंत्र में , लोक -आन्दोलन इस तरह नहीं होते न सफल होते हैं | आप गंभीर गफलत और भ्रम में हैं |
हम न भी कहें कि धर्म गलत है या योग का कोई महत्त्व नहीं , पर जिस तरह आपने योग के बहाने लोगों को अपने दिमागी कब्ज़े में लिया ,उन्हें अपना अन्धविश्वासी भक्त बनाया , फिर उनसे धन कमाया और फिर उन्हें सत्ता के प्रति अपने व्यक्तिगत मोह के राजनीतिक कुएँ में ढकेल दिया, उस से योग भी बदनाम हुआ और धर्म भी | अब भला कौन सच्चा व्यक्ति योग और योगगुरु पर विश्वास करेगा | हर नया गुरु अब गंभीर शंका की दृष्टि से देखा जायगा | यह सब आप के कारण हुआ | यह अतिरिक्त आरोप आपके ऊपर बनता है | हम लोकतंत्र में जनता के अंधविश्वास में बढ़ोतरी के नहीं , उनमे वैज्ञानिक सोच में अभिवृद्धि के कायल और कार्यकर्ता हैं | हम आपके कृत्य की भर्त्सना करते हैं , समर्थन का तो सवाल ही नहीं उठता , जैसा आप अपने मन में शायद सोचे बैठे हों | ##
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें